हर साल देश में सैकड़ों एकड़ कपास की फसल सफेद मक्खी बर्बाद कर देती हैं, जिसके बचाव के लिए किसान कई सारे उपाय करते हैं लेकिन वो उतने कारगर नहीं ही पाते है। वैज्ञानिकों ने कपास की एक कीट-प्रतिरोधी ट्रांसजेनिक किस्म विकसित की है। यह किस्म सफेद मक्खी के हमले से कपास की फसल को बचाने में मददगार हो सकती है।
राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) के वैज्ञानिकों ने कपास की नई किस्म विकसित की है, जिसे सफेद मक्खी बिल्कुल भी नुकसान नहीं पहुंचाएगी। एनबीआरआई के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ पी.के. सिंह बताते हैं, “इस कीट प्रतिरोधी किस्म को विकसित करने के लिए हमने 250 ऐसे पौधों की पहचान की, जो सफेद मक्खी के लिए विषैले होते हैं। सभी पौधों के पत्तों के अर्क को अलग-अलग तैयार किया गया था, और सफेद मक्खी को उन पत्तों को खाने के लिए दिया गया। इन पौधों में से, एक खाद्य फर्न टेक्टेरिया मैक्रोडोंटा का पत्ती अर्क सफेद मक्खी में विषाक्तता पैदा करते हुए पाया गया है।”
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना के फरीदकोट केंद्र में अप्रैल से अक्टूबर के दौरान कपास की इस किस्म का परीक्षण किया जाएगा।
सफेद मक्खियों को जब कीटनाशक प्रोटीन की सीमित मात्रा के संपर्क में रखा गया तो उनके जीवन-चक्र में कई महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिले हैं। इन बदलावों में सफेद मक्खी द्वारा खराब और असामान्य अंडे देना और निम्फ, लार्वा और मक्खियों का असाधारण विकास शामिल है। लेकिन, दूसरे कीटों पर इस प्रोटीन को प्रभावी नहीं पाया गया है। ऐसे में इन कीटों की संख्या आगे बढ़ नहीं पाती है और इससे कपास की फसल बच जाती है।
डॉ सिंह आगे कहते हैं, “अभी फील्ड ट्रायल में काफी समय लगेगा, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के साथ अभी ट्रायल चल रहा है, जिसके बाद इसे तीन अलग-अलग राज्यों में इसका ट्रायल किया जाएगा, क्योंकि पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में इसका ज्यादा प्रकोप होता है, इसलिए कोशिश की जाएगी कि यहीं पर ट्रायल किया जाए।”
सफेद मक्खी न केवल कपास, बल्कि अन्य फसलों को भी नुकसान पहुंचाने के लिए जानी जाती है। यह दुनिया के शीर्ष दस विनाशकारी कीटों में शामिल है, जो दो हजार से अधिक पौधों की प्रजातियों को नुकसान पहुंचाते हैं और 200 से अधिक पादप वायरसों के वेक्टर के रूप में भी कार्य करते हैं। कपास की खेती पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, तेलंगाना, तमिलनाडू, और कर्नाटक जैसे राज्यों में होती है, लेकिन उत्तरी राज्यों में इसका ज्यादा प्रकोप रहता है।
वर्ष 2015 में सफेद मक्खी के प्रकोप से पंजाब में कपास की दो तिहाई फसल नष्ट हो गई थी, जिसके कारण किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा और वे कपास की खेती से मुँह मोड़ने लगे थे।
वैज्ञानिकों का कहना यह भी है कि बीटी (बेलिस थ्यूरेनजिनेसिस) कपास मुख्य रूप से बॉलवर्म जैसे कीटों से निपटने के लिए विकसित की गई थी, जो फसल को सफेद मक्खी के प्रकोप से बचाने में कारगर नहीं है। फसलों पर इसके प्रकोप को देखते हुए वर्ष 2007 में एनबीआरआई के वैज्ञानिकों ने सफेद मक्खी से निपटने के लिए कार्य करना शुरू किया था।
डॉ सिंह ने आगे बताते हैं, “यह कई कारकों पर निर्भर करता है। सफेद मक्खी-रोधी जिन गुणों को कपास में शामिल किया गया है, यदि फील्ड में किए गए परीक्षणों में भी उन्हें प्रभावी पाया जाता है, तो इस किस्म को किसानों को खेती के लिए दिया जा सकता है। इससे पहले हमें यह देखना होगा कि क्या यह विशेषता कृषि वातावरण में भी उसी तरह देखने को मिलती है, जैसा कि प्रयोगशाला के परीक्षणों में देखी गई है।”