किसान अमरुद की शीतकालीन फसल से कमाएं मुनाफा

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किसान अमरुद की शीतकालीन फसल से कमाएं मुनाफाफोटो साभार: इंटरनेट

रिपोर्टर- सुधा पाल

लखनऊ। अमरूद की साल में दो फसलें, पहली बरसात में और दूसरी सर्दियों के मौसम में तैयार की जाती हैं। ज़्यादातर किसान शीतकालीन फसल पर निर्भर हैं। इसका कारण यह है कि बरसात में होने वाली फसल की गुणवत्ता कम पाई जाती है। इसके साथ ही फसल में कीटों का भी प्रकोप होता है इसलिए व्यवसाय को देखते हुए किसान शीतकालीन फसल को अपनाकर अच्छी पैदावार से मुनाफा कमा रहे हैं।

अमरूद की मिठास से ही उसकी गुणवत्ता का पता लगाया जाता है लेकिन अमरूद की मिठास से बरसात के मौसम में (जुलाई- अगस्त) इसकी फसल में कीड़े लग जाते हैं। यही वजह है कि इस मौसम में अमरूद की खेती करने वाले किसानों को अच्छा उत्पादन नहीं मिल पाता है। इसके साथ ही फल में बरसात के कीड़ों का भी प्रकोप तेजी से बढ़ता है। कुछ कीड़ों की वजह से तो पूरी फसल ही नष्ट होने की कगार पर आ जाती है। इसके बावजूद कुछ किसान जल्दबाजी में फसल को बाजारों में बेचने के लिए उतार देते हैं और बाद में नुकसान झेलते हैं। इसी नुकसान से बचने के लिए ज़्यादातर किसान सर्दियों के मौसम में अमरूद की शीतकालीन फसल को बाजारों में उतारते हैं। किसान इस फसल को सितम्बर महीने के अंत से लेकर दिसंबर तक बाजारों में बेचते हैं। अच्छे स्वाद, कीटरहित और गुणवत्तायुक्त होने से ग्राहक भी इसे पसंद करते हैं। इस तरह व्यवसायिक तरीके से इसकी बिक्री भी जोरों पर होती है।

मौसमी फल को वैसे भी लोग ज़्यादा पसंद करते हैं। प्रदेश में पिछली साल लगभग 914.360 हजार मीट्रिक टन उत्पादन हुआ था। लगभग 11 हजार मीट्रिक टन तक होगा इस साल का प्रदेश में अमरूद का उत्पादन।
जयप्रकाश पाल (अधिशासी अधीक्षक) उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग, (उ. प्र.)

शाकभाजी विभाग, लखनऊ के सेवानिवृत्त अधीक्षक प्रभाकर त्रिपाठी ने बताया कि लगभग 70 फीसदी अमरूद का उत्पादन राज्य में किया जाता है। इसके साथ ही दूसरी फसल (जाड़े के समय की) को अपनाने से किसान फसल के उत्पादन में लगभग 30 से 35 फीसदी तक बढ़ोतरी कर रहे हैं। बरसात के मौसम के फल फीके स्तर के होते हैं इसलिए उन्हें विकसित नहीं होने देना चाहिए। प्रभाकर त्रिपाठी के अनुसार बरसात की फसल न लेने के लिए मार्च के महीने में ही फसल को पानी देना तब तक बंद कर देना चाहिए जब तक मार्च में आए हुए फूल पानी की कमी से गिर न जाएं। इस तरह किसान बरसाती फसल की जगह उच्च कोटि के मौसमी फल पा सकते हैं।

अमरूद की मुख्य किस्में

प्रभाकर त्रिपाठी के अनुसार, ‘राजधानी के मलीहाबाद और बक्शी का तालाब अमरूद के लिए ही जाने जाते हैं। अमरूद की कई किस्में प्रचलित हैं जिनमें इलाहाबादी सफ़ेदा, सरदार (लखनऊ -49), लालगुदी अमरूद (एप्पल कलर ग्वावा), इलाहाबादी सुरखा, श्वेता, ललित और संगम शामिल हैं।’

कीटों से सुरक्षित होती है शीतकालीन फसल

अमरूद की फसल में मक्खियां और छाल खाने वाली सूड़ी लग जाती हैं। ये कीट अधिकतर बरसात में किए जा रहे इस फल के उत्पादन के दौरान लगते हैं। मक्खियों का बरसाती फसल पर अधिक प्रकोप होता है। मक्खियां फलों में छेद करके छिलके के नीचे अंडे दे देती हैं। इसके साथ छाल खाने वाली सूड़ी का वृक्षों पर आक्रमण अधिक होता है। ये कीट दिखाई नहीं देता लेकिन जहां टहनियां अलग होती हैं वहां इसका मल व लकड़ी का बुरादा जाल के रूप में नज़र आता है।

लोगों को सर्दियों में अमरूद पसंद आते हैं। कहते हैं कि बरसाती अमरूद में कीड़े होते हैं इसलिए खाने लायक नहीं होता है। ठंड में लोग ज़्यादा खरीदते हैं।
अयोध्या (किसान), बक्शी का तालाब

राजधानी में अमरूद की पसंदीदा किस्में

इलाहाबादी सफ़ेदा और सरदार (लखनऊ -49) अपने स्वाद और फलत के लिए विशेष तौर से मशहूर हैं। सरदार किस्म के पौधे छतरीनुमा आकार के होते हैं तथा उकटा रोग के प्रति काफी प्रतिरोधी भी होते हैं। इस किस्म के फल मध्यम आकार के चपटे गोल होते हैं। फल मीठा और सफेद गूदे का होता है। इसके साथ ही इसकी पैदावार भी सफेदा किस्म की तुलना में अच्छी होती है।

इन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर की जाती है खेती

आगरा- 29.866 हजार मीट्रिक टन

अलीगढ़- 69.339 हजार मीट्रिक टन

बदायूं- 74.318 हजार मीट्रिक टन

इटावा- 54.054 हजार मीट्रिक टन

फर्रुखाबाद- 61.195 हजार मीट्रिक टन

कासगंज- 70.852 हजार मीट्रिक टन

   

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