लखनऊ। अभी तक आपने धान-गेहूं की फसल की बुवाई श्री विधि से की होगी, जिसमें सामान्य बुवाई से ज्यादा उत्पादन मिलता है। किसान धान-गेहूं ही नहीं सरसों की श्री विधि बुवाई कर दोगुना उत्पादन पा सकते हैं।
सरसों अनुसंधान निदेशालय, राजस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अशोक कुमार शर्मा श्री विधि से सरसों की बुवाई के बारे में बताते हैं , “ज्यादातर किसान सरसों की बुवाई सामान्य तरीके से ही करते हैं, जबकि श्रीविधि से बुवाई कर ज्यादा उत्पादन पा सकते हैं। इस विधि से बुवाई करना ज्यादा मुश्किल भी नहीं होता है, अभी अक्टूबर से नवंबर तक किसान सरसों की बुवाई कर सकते हैं।
बीज का चुनाव: इस विधि से बुवाई करने में किसी खास किस्म के बीज की जरूरत नहीं पड़ती है, आप अपने क्षेत्र के हिसाब से विकसित बीज का ही चयन करें। अगर बीज पुराना हो नए बीज का प्रयोग करें।
बीज की मात्रा: बीज की मात्रा फसल की अवधि पर निर्भर करती है। यदि अधिक दिनों की किस्म है तो बीज की मात्रा कम लगेगी और यदि कम दिनों की किस्म है तो बीज की मात्रा ज्यादा लगेगी।
ये भी पढ़ें : फसल का हाल बताती हैं पत्तियां, रंग देखकर जानिए किस पोषक तत्व की है कमी
बीज शोधन/बीज उपचार: बीज के मात्रा हिसाब से दोगुना पानी लें। बीज गुनगुने पानी में डालकर हल्के और ऊपर तैर रहे बीजों कों बाहर कर दें। गुनगुने पानी में और अच्छे बीज में बीज की मात्रा से आधी मात्रा गोमूत्र, गुड़ और वर्मी कम्पोस्ट मिलाकर छह से आठ घंटे छोड़ दें। बीज को तरल पदार्थ से अलग कर दो ग्राम बाविस्टीन या कार्बेण्डाजिम दवाई मिलाकर सूती कपड़ा में बांधकर पोटली बनाकर अंकुरित होने के लिए 12 से 18 घंटे के लिए रख दें। स्थानीय मौसम के हिसाब से समय कम अधिक लग सकता है। अंकुरित बीज को नर्सरी में 2गुणा2 इंच की दूरी में आधा इंच गहराई में डाल दें।
नर्सरी की तैयारी: नर्सरी के लिए सब्जी वाले खेत का चुनाव करें, फसल की अवधि के हिसाब से नर्सरी के लिए नर्सरी बेड का छोटा-बड़ा निर्माण करें। जैसे कम दिन वाले किस्मों के लिए अधिक। जिस खेत में नर्सरी बेड तैयार किया जा रहा हो उस खेत में नर्सरी के क्षेत्रफल के प्रति वर्ग मी. में 2 से 2.5 किग्रा. वर्मीकम्पोस्ट, 2 से 2.5 ग्राम कार्बोफ्यूरान मिट्टी में अच्छी प्रकार से मिला लें।
ये भी पढ़ें : अब नहीं जलाना पड़ेगा फसल अवशेष, बीस रुपए में बना सकते हैं जैविक खाद
नर्सरी बेड की चौड़ाई एक मीटर और लम्बाई सुविधानुसार रखें। यह ध्यान रखें कि नर्सरी बेड जमीन से चार से छह इंच ऊंचा हो दो बेड के बीच एक फिट की नाली बनाएं। नर्सरी में बीज की बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी का होनी चाहिए।
अंकुरित बीज को दो इंच कतार से कतार और दो इंच बीज से बीज की दूरी पर और आधा इंच की गहराई पर डालकर रखें। नर्सरी बेड को बीज की बुवाई के बाद वर्मीकम्पोस्ट और पुआल से ढक दें। सुबह- शाम झारी (हजार) से सिंचाई करें। 12 से 15 दिनों में रोपाई के लिए पौध तैयार हो जाती है।
खेत की तैयारी: जिस खेत में श्री विधि से सरसों की रोपाई करनी हो उस खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। यदि खेत सूखा है तो सिंचाई (पलेवा सिंचाई) करके जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लें और खरपतवार को हाथ से ही निकालकर खेत से बाहर कर दें।
ये भी पढ़ें : तालाब नहीं खेत में सिंघाड़ा उगाता है ये किसान, कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने भी किया है सम्मानित
सरसों की फसल की अवधि के हिसाब से उचित अंतराल पर (कतार से कतार और पौध से पौध) 6 इंच चौड़ा तथा 8 से 10 इंच गहरा गड्ढा कर लें। इसे दो से तीन दिनों के लिए छोड़ दें। एक एकड़ खेत के लिए 50 से 60 कुंतल कम्पोस्ट खाद में चार से पांच किग्रा. ट्राइकोडर्मा, 27 किग्रा. डीएपी, और 13.5 कि.ग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश को अच्छी तरह मिला लें और प्रत्येक गड्ढे में बराबर मात्रा में इस खाद को डालकर एक दिन के लिए फिर छोड़ दें।
रोपाई के दो घंटे पहले नर्सरी में नमी बना कर रख लें सावधानी पूर्वक मिट्टी सहित पोध को नर्सरी बेड से निकालें। नर्सरी से पौध निकालते समय यह ध्यान रखें कि पौध को खुरपा या कुदाल की सहायता से कम से कम एक से दो इंच मिट्टी सहित नर्सरी से निकालें।
पौध को नर्सरी से निकालने के बाद आधा घंटे के अंदर गड्ढे में रोपाई कर दें। रोपाई पहले यह सुनिश्चित कर लें कि प्रत्येक गड्ढे में सावधानी पूर्वक मिट्टी सहित लगा दें। ध्यान रखें कि रोपाई ज्यादा गहराई में ना हो। रोपाई के बाद तीन से पांच दिन तक खेत में नमी बनाकर रखें। ताकि पौधा खेत में अच्छी तरह से लग जाए। जहां मिट्टी भारी हो वहां सूखी रोपाई गोभी की तरह करें और रोपाई के तत्काल बाद जीवन रक्षक सिंचाई करें।
ये भी पढ़ें : वैज्ञानिकों ने विकसित की मटर की नई प्रजाति, इसकी खेती से मिलेगी बंपर पैदावार
फसल की देखरेख: रोपाई के 15 से 20 दिन के अंदर पहली सिंचाई की जानी चाहिए। सिंचाई के तीन से चार दिन बाद जब खेत में चलने लायक हो जाए तब तीन से चार कुंतल वर्मी कम्पोस्ट में 13.5 किग्रा. यूरिया मिलाकर जड़ों के समीप देकर कुदाल या खुरपा या वीडर चला दें। दूसरी सिंचाई सामान्यता पहली सिंचाई के 15 से 20 दिन बाद करते हैं, सिंचाई के पश्चात रोटरी वीडर/कोनीबीडर या कुदाल से खेत की गुड़ाई आवश्यक है। आवश्यकतानुसार पौधे पर हल्की मिट्टी भी चढ़ा दें।
फसल की देख रेख (रोपाई के 35 दिन बाद): रोपाई के 30 दिन बाद से पोधे तेजी से बड़े होते हैं। साथ ही नई शाखाएं भी निकलती रहती हैं इसके लिए पौधों को अधिक नमी और पोषण की जरूरत होती है। इसलिए रोपाई के 35 दिन बाद आवश्यकतानुसार तीसरी सिंचाई करें। सिंचाई के तीन से चार दिन पश्चात जब खेत में चलने लायक हो जाए। तब 13.5 किग्रा. यूरिया और 13.5 किग्रा. पोटाश को वर्मीकम्पोस्ट में मिलाकर जड़ों के समीप डालकर वीडर या कुदाल से अच्छी प्रकार मिट्टी हल्का कर जड़ों के ऊपर मिट्टी चढ़ा दें।
मिट्टी नहीं चढ़ाने से पौधे के गिरने का डर रहता है और मिट्टी चढ़ाने से पौधे के फैलाव करने मदद मिलती है। जिस प्रकार आलू की फसल में मिट्टी चढ़ाते हैं ठीक उसी प्रकार से कतार से कतार एक फीट ऊंची तक श्री विधि से सरसों की खेती में भी मिट्टी चढ़ाना आवश्यक है। पौधों में फूल आने लगते हैं, फूल आने एवं फलियों में दाने भरने के समय पानी की कमी नही होनी चाहिए अन्यथा उपज में काफी कमी हो जायेगी।