खुद की बनाई कंपनियां दूर करेंगी किसानों की गरीबी

Neetu SinghNeetu Singh   14 July 2016 5:30 AM GMT

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कानपुर देहात। 10 बीघे खेत के मालिक विधि चंद्र (55 वर्ष) किसानों की एक कंपनी में निदेशक हैं। पहले वो अपने खेतों में पैदा हुई फसल को औने-पौने दामों पर बगल के कस्बे में बेच देते थे, लेकिन अब जो उनके खेत में उगेगा उसके रेट भी वो खुद तय करेंगे और उसकी बिक्री भी वो खुद ही करेंगे।


विधि चंद्र जिस कंपनी में निदेशक हैं उसमें सात अऩ्य किसान भी निदेशक हैं जबकि 92 अऩ्य किसान सदस्य निवेशक हैं। आने वाले दिनों में संभव है कि विधि सिंह के खेत की सब्जी, फल गेहूं और चावल आपको बिग बाजार जैसे किसी मल्टीस्टोर में बिकते नजर आए।

विधि चंद्र कानपुर देहात जिला मुख्यालय से 47 किलोमीटर दूर पूरब दिशा में सूरजपुर गाँव में रहते हैं। पूर्वांचल से आकर इस गाँव के ज्यादातर किसान छोटी जोत के हैं, जो देश के दूसरे तमाम किसानों की तरह बाजार से महंगे दामों पर सामान तो खरीदते ही थे, साथ ही अपने खेतों में उगे गेहूं, आलू, धान और गन्ना की उचित कीमत के लिए परेशान भी रहते थे, लेकिन अब इस गाँव में खरीद और बिक्री की पूरी व्यवस्था बदल गई है। किसानों ने अपनी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी शोभन एग्रो प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड बनाई है। 

नाबार्ड के ‘कृषक उत्पादन विकास कार्यक्रम’ सहयोग से बनाई गई इस कंपनी में विधि चंद्र के साथ ही आसापास के साठ गाँवों के 100 किसान शामिल हैं। 

प्रति किसान 1000-1000 रुपए के निवेश से बनाई गई ये कंपनी अपने सदस्यों के लिए बाजार से खाद-बीज वगैरह सस्ती दरों पर खरीदने की कोशिश करेगी तो उनके उत्पादों को बेहतर मूल्य पर बेचेगी भी। खरीफ में मक्के की बुवाई के लिए इस कंपनी ने एक बड़ी कंपनी से भारी मात्रा में बीज खरीदा है, इस बीज का बाजार भाव 200 रुपए प्रति किलो था लेकिन उन्हें 150 रुपए में ही पड़ा है लेकिन अगली बार ये कंपनी दूसरी कंपनियों से बीज खरीदने के बजाय अपने ही बीज दूसरे किसानों को बेचेगी।

विधि चन्द्र (55 वर्ष) बताते हैं, “सबके साथ मिलकर काम करने से बड़ा फायदा हो रहा है। अब हम मक्के के बीज की तरह थोक में चीजें खरीदते हैं तो वो सस्ती पड़ती हैं। पहले हमारे अनाज की भी सही कीमत नहीं मिलती थी। पहले हमें उत्पाद बेचने में भी दिक्कत आती थी, अब सब किसान मिल गए हैं हम ही तय करेंगे किस व्यापारी या बड़े दुकानदार को हम अपनी फसल बचेंगे।

“ग्रामीण भारत में रहने वाली 70 फीसदी आबादी में बड़ा हिस्सा खेती पर निर्भर है। वो मेहनत करते हैं खेतों में पैसे खर्च करते हैं, बावजूद इसके उन्होंने उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिलता क्योंकि लाभ का एक बड़ा हिस्सा बिचौलिए खा जाते हैं। ऐसा न हो इसलिए किसानों के समूहों का गठन कर कंपनियां बनाई जा रही हैं, ताकि किसान खुद अपनी उपज के मालिक बन सकें।

किसानों के लिए बनाई गई ये कंपनियां, किसानों के लिए ही काम कर रही हैं और जो लाभ है वो भी किसानों को मिलेगा। इन किसानों को अच्छी कीमत मिले इसलिए हम लोग फ्यूचर ग्रुप (बिग बाजार), स्पेंसर जैसे मल्टीस्टोर में बात कर कर रहे हैं। डील फाइनल होते ही दूरदराज़ का किसान अपनी सब्जी फल और दूसरे उत्पाद बिग बाजार को बेच सकेगा।” नवीन कुमार राय, सहायक महाप्रबंधक, नाबार्ड बताते हैं।

नाबार्ड की कोशिश रंग लाई तो अब तक असंगठित किसान भी संगठित होंगे और बिचौलियों के हाथ की कठपुतली बनने से बच जाएंगे। कानपुर देहात में विधि चंद को कंपनी बनाने में गैर सरकारी संस्था  निर्माण नॉट्स ने भी सहयोग किया है। नॉट्स के सीईओ सौरभ गुप्ता बताते हैं, “भारत सरकार द्वारा नाबार्ड में स्थापित प्रोडयूस निधि के अंतर्गत देश भर में विभिन्न सहयोगी एजेंसी द्वारा 2000 कृषक उत्पादक संगठनों का विकास किया जा रहा है।

किसान उत्पादक संगठनों के द्वारा अब किसान संगठित हो कर खुद के संगठन (जो कि कम्पनी या सहकारी समिति के रूप में) अपने उत्पादों को उचित दामो पर बेच सकेंगे। कानपुर देहात में तीन जबकि पूरे प्रदेश में ऐसी 130 कंपनियां काम करना शुरू कर चुकी हैं।”

नॉट्स के अनुसार बाजार में 100 रुपए के उत्पाद के सापेक्ष किसानों को सिर्फ 40 रुपए ही मिलते हैं। बाकी का पैसा बिचौलिए खा जाते हैं। कानपुर देहात के साथ ही कानपुर, उन्नाव, बाराबंकी में योजना का काम जोर शोर से जारी है। इऩ कंपनियों में 100 से लेकर 1000 किसान तक हो सकते हैं। बाराबंकी में मशरुम उगाने वाले किसानों ने भी इसी तरह की कंपनी बनाई हैं।

भारत में किसानों को सफलता के गुण सिखा रहे नाबार्ड के जिला विकास प्रबंधक दीपेन्द्र कुमार ने बताया, “कम्पनी बन जाने के बाद किसानों को उत्पादन का लाभ दिलाने के लिए खरीदे गये माल की बिक्री देश की किसी भी मंडी में की जा सकेगी। खर्च काटने के बाद उसका पूरा लाभ किसानों को मिलेगा। देश की किसी भी कम्पनी से किसान बीज, खाद, कीटनाशक दवा सहित कृषि की जरूरतों का सामान मंगा सकता है, इससे किसानों को बहुत कम लागत में सामान मिलेगा। कंपनी की पूंजी के आधार पर भारत सरकार द्वारा भी सामान पूंजी की व्यवस्था अधिकतम 10 लाख तक की गयी है। कंपनी बनने के बाद किसानों का संगठन बीज से लेकर बाजार तक के क्षेत्र में काम कर सकेगा।” 

शुरुआत में कंपनी में किसान जितने पैसे जमा करेंगे केंद्र सरकार उसी रकम के बराबर अपने पास से मदद देगी, ये मदद 10 लाख रुपये तक हो सकती है। नॉट्स के सीईओ सौरभ गुप्ता बताते हैं, हमारे सहयोग से बनाई गई कंपनियों का बिजनेस प्लान तैयार हो गया है, हम जल्द ही इफको में रजिस्ट्रेशन कर थोक में खाद तो खरीदेंगे ही बीज कंपनी बनाकर अपने ही बीज दूसरे किसानों को भी बेचेंगे।” 

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

 

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