खून की कमी ले रही जान

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खून की कमी ले रही जानगाँव कनेक्शन

लखनऊ/उन्नाव। रामसिंह (35 वर्ष) की पत्नी सीमा (35 वर्ष) को प्रसवपीड़ा होने पर स्वास्थ्य केन्द्र ले जाया गया। प्रसव के दौरान लगातार उनकी हालत बिगड़ती गई और मौत हो गई। स्वास्थ्य विभाग ने जब मामले की जांच की तो पता चला कि सीमा को खून की कमी थी।

गर्भावस्था में महिलाओं में खून की कमी ज्यादा होती है, जिसके कारण कई बार उनकी मौत भी हो जाती है। सरकार द्वारा 4 जनवरी 2016 को जारी शासनादेश में भी ये लिखा है कि उत्तर प्रदेश में लगभग 50 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में खून की कमी (एनीमिया) पाई जाती है, जो अत्यधिक मातृ मृत्यु-दर का कारण है। 

वर्ष 2015 के दिसंबर माह तक उन्नाव ज़िले में मातृ मृत्यु के 14 केस दर्ज किये गए थे। मातृ मृत्यु के इन सभी मामलों में विभागीय अधिकारियों की जांच में मौत की वजह अलग अलग दिखाई गई है लेकिन सभी महिलाओं में खून की कमी भी थी। 

लखनऊ जिले से लगभग 34 किमी दूर दक्खिन टोला गाँव की रहने वाली राजमाला (25 वर्ष) चार माह के गर्भ से हैं। खानपान के बारे में पूछने पर वो बताती हैं, ''खाना खाते हैं जो भी बनता है, बाकी डॉक्टर ने बताया था कि आपको खून की कमी है तो अब दूध भी पीने लगे हैं रात को। दवाएं जो लिखी हैं वो खाते हैं।’’

''गर्भावस्था में महिलाओं को आयरन, विटामिन, मिनरल सबकी ज्यादा जरूरत होती है। भोजन में पोषक तत्वों की कमी महिलाओं को एनीमिक बना देती है। महिलाओं में हिमोग्लोबिन 12 ग्राम होना चाहिए, जबकि पुरूषों में 13.5 ग्राम होनी चाहिए। गर्भावस्था के दौरान खून की कमी से समय से पहले प्रसव दर्द, शिशु का कम वजन या कभी कभार मौत भी हो जाती है।’’ लखनऊ जिले की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ पुष्पा जायसवाल बतातीं हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं व किशोरियों में खून की कमी की समस्या आम है। उचित पोषण न मिलने से यह समस्या समय के साथ गंभीर हो जाती है। किशोरावस्था से ही उन्हें खून की कमी की समस्या से बचाने के लिए उचित पौष्टिक आहार मिलना चाहिए, लेकिन प्राय: देखा जाता है कि ऐसा नहीं हो पाता है।

दक्खिन टोला गाँव की रहने वाली सुकन्या (17 वर्ष) के खाने पीने को कोई निश्चित समय नहीं है और चौंकाने वाली बात ये है कि उनके घर में दूध केवल पुरूषों को दिया जाता है, लड़कियां और महिलाएं जब बीमार होती हैं तभी उन्हें दूध दवा की तरह दिया जाता है।

स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2015 के नवंबर माह तक खून की जांच के लिए उन्नाव जिले में 36,073 महिलाओं का पंजीकरण कराया गया था, जिसमें से 30,729 महिलाओं की ही जांच हो सकी। जांच में 10,180 महिलाओं में खून की कमी पाई गई, जिन महिलाओं में खून की कमी पाई गई उनमें से 281 महिलाओं में सात ग्राम से भी कम हीमोग्लोबिन था।

उन्नाव जिले के उप मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आरके गौतम बताते हैं, ''मातृ मृत्यु-दर के अधिकतर मामलों में खून की कमी प्रमुख कारण बनती है। गर्भावस्था के दौरान व इससे पहले खून की कमी होने के बावजूद महिलाएं अपने स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दे पाती हैं। खून की कमी की वजह से प्रसव के दौरान महिलाओं की हालत बिगड़ जाती है और उनकी मौत हो जाती है।’’

मातृ मृत्यु-दर के तेजी से बढ़ते आंकड़ों में कमी लाने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने आशा बहुओं को जिम्मेदारी दे रखी है कि वह ग्रामीण क्षेत्रों में गर्भवती महिलाओं का स्वास्थ्य कार्ड बनाने के साथ ही उनका नियमित चेकअप कराएं। गर्भावस्था के दौरान आयरन की सौ गोलियां खाने के लिए गर्भवती महिलाओं को प्रेरित करें। हीमोग्लोबिन की भी नियमित जांच कराएं। लेकिन धरातल पर ऐसा नहीं हो पा रहा। 

मगरवारा निवासी राजेंद्र (40 वर्ष) बताते हैं, ''ग्रामीण क्षेत्र में आशा बहू द्वारा दवाओं का वितरण कभी कभी ही किया जाता है। गर्भवती महिलाओं की जांच में भी आशा बहू लापरवाही बरतती हैं। यही नहीं किसी भी महिला की हालत बिगड़ने पर जब आशा बहू को सूचना दी जाती है तो वह भी समय से नहीं पहुंचती।’’

आयरन की गोलियों में वितरण पर लखनऊ जिले के मोहनलालगंज ब्लॉक की आशा बहू नाम न बताने की शर्त पर कहती हैं, ''हमें जब गोलियां समय पर मिलेंगी तभी बांटेगें। एनएएम कभी देती हैं तो कभी देती ही नहीं हैं, जबकि गाँव में तो हम रहते हैं, हमें पता है कि किसे जरूरत है और किसे नहीं।’’

शुक्लागंज स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सक डॉ अतुल वार्ष्णेय बताते हैं, ''अधिकतर महिलाओं को सरकारी अस्पतालों से मिलने वाली आयरन की दवाओं को लेकर संशय बना रहता है। सरकारी अस्पताल से मिलने वाली दवा की गुणवत्ता पर भी लोग अक्सर सवाल उठाते रहते हैं, जबकि आयरन की जो दवा सरकारी अस्पतालों में मिलती है वह पूरी तरह से गुणवत्तायुक्त है। स्वास्थ्य विभाग खून की कमी को दूर करने के लिए भले ही कई योजनाएं चला रहा हो लेकिन उनका लाभ धरातल पर लोगों को नहीं मिल पा रहा है।’’ 

गर्भावस्था के दौरान खून की कमी से बचने के लिए डॉ पुष्पा आगे बताती हैं, ''महिलाओं को गर्भवती होते ही अपने खान पान पर दोगुना ध्यान देना चाहिए। खाने में हरी सब्जियां, चुकंदर, पालक, दूध, फल को शामिल करना चाहिए। इसके अलावा समय-समय पर जांच कराते रहनी चाहिए आयरन की गोलियां या डॉक्टर ने जो भी दवाएं कमी को पूरा करने के लिए बताई हों उन्हें जरूर नियमित तौर पर लें।’’

उन्नाव जिले के सीएमओ डॉ गीता यादव बताती हैं, ‘‘मातृ मृत्यु-दर को कम करने के लिए सभी प्रयास किए जा रहे हैं। आशा बहू व एएनएम को जिम्मेदारी दी गई है कि वह सभी गर्भवती महिलाओं का फॉलोअप करती रहें। खून की जांच कराने के बाद अगर खून की कमी मिलती है तो उसे उचित पोषण देने के साथ ही दवाएं भी दी जाती हैं। साथ ही दोबारा जांच कराने के साथ ही यह भी देखा जाता है कि खून की कमी दूर हुई है या नहीं।

रिपोर्टर - श्रीवत्स अवस्थी/श्रृंखला पाण्डेय

 

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