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अब हर कोई नहीं लिख सकेगा ‘गोवा काजू’, जीआई टैग मिलने से बाज़ार में बना ट्रेडमार्क

गोवा के काजू को अब अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में एक ट्रेडमार्क के रूप में पहचान मिल सकेगी; उसे जीआई टैग यानी भौगोलिक संकेत टैग दे दिया गया है। पिछले साल यहाँ के खोला मिर्च को भी ये टैग दिया गया था।
#Cashew cultivation

अगर आप गोवा के मशहूर काजू खाने के शौक़ीन है तो अब बाज़ार में बिना इधर उधर भटके ‘गोवा काजू ‘ लिखा पैकेट खरीद सकते हैं।

गोवा की इस विरासत को संरक्षित करने के लिए अब उसे जीआई (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन्स) टैग दे दिया गया है। ये टैग बाज़ार में एक ट्रेडमार्क के रूप में काम करता है जिसे चेन्नई में भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री की तरफ से दिया जाता है।

अब कोई भी व्यापारी या कारोबारी बिना रजिस्ट्रेशन के पैकेट पर गोवा काजू लोगो का इस्तेमाल नहीं कर सकेगा।

जीआई टैग खरीदारों को प्रामाणिक गोवा काजू और राज्य के बाहर से आने वाले काजू के बीच अंतर करने में मदद करेगा, जिन्हें अक्सर ‘गोवा काजू’ के रूप में बेचा जाता है।

राज्य में काजू उद्योग के लिये इसे एक बड़ा कदम और ‘स्वयंपूर्ण गोवा मिशन’ की दिशा में एक उपलब्धि माना जा रहा है।

काजू का कारोबार करने वालों का कहना है इससे गोवा के काजू को दुनिया के बड़े बाज़ार में भी पहचान मिल सकेगी।

मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत कहते हैं, “मैं इसका स्वगात करता हूँ, ये स्थानीय काजू क्षेत्र के लिए एक ख़ास मौका और ‘स्वयंपूर्ण गोवा मिशन’ को साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।”

गोवा में काजू निर्माताओं के लिए जीआई टैग बड़ी सम्भावनाएँ रखता है। उनके मुताबिक यह दूसरे राज्य या बाहर से आने वाले काजू को गलत तरीके से ‘गोवा काजू’ का लेबल लगाकर बेचने वालों पर लगाम कसने जैसा है।

जीआई टैग के साथ, प्रामाणिक गोवा काजू पर एक ख़ास लोगो होगा, जो इसके अनधिकृत उपयोग को रोकेगा और गुणवत्ता मानकों को पक्का करेगा। इस कदम का मकसद गोवा के काजू की प्रतिष्ठा की रक्षा करना है, जिन्हें स्थानीय उत्पादों के रूप में बेचे जाने वाली सस्ती आयातित किस्मों से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा है।

गोवा के काजू कारोबारियों की पुरानी शिकायत रही है कि दूसरे राज्यों और देशों से घटिया गुणवत्ता, सस्ते काजू की आमद ने स्थानीय प्रसंस्करण इकाइयों पर ख़राब असर डाला है। कुछ व्यापारियों ने, गुणवत्ता मानकों की अनदेखी करते हुए, बाज़ार में गलत लेबल वाले उत्पादों की बाढ़ ला दी है, जिससे स्थानीय उत्पादकों और ‘ब्रांड गोवा’ की छवि दोनों प्रभावित हो रही हैं।

काजू गोवा कैसे पहुँचा

काजू कभी सिर्फ लैटिन अमेरिका में पूर्वोत्तर ब्राज़ील में पाया जाता था, लेकिन 16वीं शताब्दी (1570) में इसे पुर्तगालियों द्वारा गोवा लाया गया और गोवा काजू नाम दिया गया।

शुरुआत में इसका इस्तेमाल वनीकरण और मृदा संरक्षण के लिये किया गया था, इसके आर्थिक मूल्य के बारे में एक सदी बाद पता चला। फिर कुछ समय बाद काजू उत्पादन कुटीर उद्योग से बढ़कर गोवा की अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख योगदानकर्ता बन गया, जिसका मुख्य कारण अमेरिका में इसकी अधिक माँग थी।

काजू की गोवा में पहली फैक्ट्री 1926 में शुरू हुई और काजू गिरी की पहली खेप 1930 में निर्यात की गई।

इन राज्यों में भी होता है काजू

भारत में काजू की खेती ज़्यादातर तटीय क्षेत्रों में फैली हुई है। महाराष्ट्र, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, गोवा, ओडिशा , पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों और उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के कुछ हिस्सों में भी काजू उगाया जाता है।

राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (एनएचबी) के मुताबिक महाराष्ट्र 2021-22 के दौरान 0.20 मीट्रिक टन के साथ सालाना काजू उत्पादन में पहले स्थान पर है, जबकि गोवा में बागवानी फसलों में इसका क्षेत्रफल सबसे अधिक है।

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