मई महीने में किसान धान की खेती की तैयारी शुरु कर देते हैं; लेकिन जिस तरह से पानी की कमी से किसान जूझ रहे हैं, ऐसे में किसानों को ऐसी तकनीक अपनानी चाहिए, जिससे कम पानी में धान की खेती की जा सके।
धान बिजाई के तीन प्रमुख फायदे हैं, जैसा कि आप जानते हैं, धान बिजाई के पानी की बचत, दूसरा श्रम की बचत और तीसरा ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में कमी होती है।
धान की जो प्रमुख किस्में हैं, उनमें अगर हम बासमती की बात करें तो उसमें कम समय में तैयार होने वाली कुछ किस्में हैं। इनमें पूसा बासमती 1509, पूसा बासमती 1692, पूसा बासमती 1847 जैसी किस्में हैं। ये किस्में 120 से लेकर 125 दिनों में पककर तैयार हो जाती हैं।
इसके साथ ही जो मध्यम अवस्था की किस्में हैं जो 140 दिनों के अंदर तैयार होती हैं, उनमें पूसा बासमती 1121, पूसा बासमती 1718 पूसा बासमती 1885 शामिल है।
इसके अलावा जो लंबी अवधि की किस्में है वो 155-160 दिनों में पककर तैयार होती हैं। उसमें पूसा बासमती 1409, पूसा बासमती 1885, पूसा बासमती 1886 जैसी किस्में हैं। ये किस्में पत्ती झुलसा रोग और झोंका रोग की रोधी किस्में हैं। ये सभी किस्में सीधी बिजाई के लिए सही मानी जाती हैं।
पहली बात आती हैं बीज की क्या मात्रा हम प्रयोग करेंगे। बीजों को सीड ड्रिल के द्वारा बुवाई करने पर करीब आठ किलो बीज प्रति एकड़ लगता है।
बीज उपचार कैसे करें?
सबसे पहले बीज उपचार करें, इसके लिए 10 प्रतिशत नमक के घोल में बीज डुबोकर रखना चाहिए। 10 प्रतिशत नमक का घोल बनाने के लिए एक किलो नमक को 10 लीटर पानी में घोल लेते हैं। इसमें करीब आठ किलो बीज डालकर थोड़ी देर तक किसी डंडे से हिलाइए। जो भारी बीज हैं वो नीचे बैठ जाएँगे वो हल्के बीज हैं वो ऊपर तैरते रहते हैं। हल्के बीज निकालकर फेंक देना चाहिए और जो बीज नीचे सतह पर बैठ जाते हैं, उन्हें तीन-चार बार धो देना चाहिए, जिससे नमक का प्रभाव कम हो जाए।
अब इन बीजों को उपचारित करते हैं, दो दवाएँ हैं, स्ट्रेप्टोसाइक्लीन, जिसकी 2 ग्राम मात्रा बाविस्टीन जिसकी 20 ग्राम मात्रा 10 लीटर पानी में घोल बनाते हैं। इसके बाद इसे नमक पानी से छानकर निकाले गए आठ किलो बीज को इस घोल में 24 घंटे के लिए डुबोकर रख देते हैं। 24 घंटे के बाद बीज को बाहर निकालकर उस बीज को छाया में अच्छी तरह से सुखाकर रख लेते हैं। अब ये बीज बुवाई के लिए तैयार है।
धान बुवाई का सही तरीका
अब आपको खेत की तैयारी करनी होगी; धान बुवाई के दो प्रमुख तरीके हैं।
एक है तरबतर विधि, जिसमें ज़्यादा पानी लगता है। इसके लिए गेहूँ की कटाई के बाद जो खेत हैं, उसकी अच्छी तरह जुताई कर लेते हैं। जुताई करने के बाद उसे अच्छे से बराबर कर लें। फिर उसमें पानी लगा देते हैं। इसके बाद उसकी दो-तीन बार और जुताई कर लेते हैं।
ऐसा करने से जो नमी है लम्बे समय तक बनी रहती है, अब ये खेत बिजाई के लिए तैयार है। इसमें जीरो ड्रिल मशीन या लकी सीडड्रिल मशीन से बुवाई करते हैं। इस विधि में कतार से कतार की दूरी करीब आठ इंच और गहराई करीब डेढ़ इंच के आसपास रखते हैं। बिजाई करने के बाद पाटा लगा देते हैं, इसमें लगभग सात-आठ दिनों में अंकुरित होने लगता है।
दूसरा तरीका जो हम बुवाई के लिए प्रयोग करते हैं उसमें गेहूँ की कटाई के बाद खेत की जुताई करके खेत को बराबर कर लेते हैं। पहले हम ड्रिल से धान की बुवाई कर देते हैं और उसके बाद हम पानी लगाते हैं। पानी लगाने के बाद उसमें अंकुरण जल्दी हो जाता है, लेकिन उसमें ये भी ध्यान रखना चाहिए किं उसमें बीज की गहराई कम रखी जाती है।
इसी तरह से हम पानी बुवाई के बाद लगाते हैं तो उसमें ज्यों ही अगले दिन या एक दो दिन बाद खेत में चलने लायक हो जाता है। उस समय हमें पेन्डीमेथलीन दवा का छिड़काव कर लेना चाहिए।
अब हम ये बताना चाहेंगे की दोनों विधियों में क्या विशेष अंतर हैं, अगर हम तर बतर विधि से धान की सीधी बुवाई करते हैं तो इसमें खरपतवार का नियंत्रण अच्छी तरह से हो जाता है। क्योंकि पहली बार जब हम पानी लगाते हैं और उसके बाद अंकुरण खरपतवार का हो जाता है और जुताई करने के साथ साथ खरपतवार खत्म हो जाता है।
अगर आप इस बात का ध्यान रखें कि जिस खेत में धान की वही किस्म लगाई गयीं थीं और उसी किस्म को दूसरी भी आप लगा रहे है तब तो कोई चिंता की बात नहीं है। लेकिन किस्म आप बदल रहे हैं तो इस बात का जरूर ध्यान रखें कि जब हम बुवाई के तुरन्त बाद पानी लगाते हैं तो उस तरीके में खरपतवार की समस्या थोड़ी आती है और उसको हमें ठीक से नियंत्रित करना चाहिए । जब पेन्डीमेथलीन का छिड़काव करते हैं तो काफी खरपतवार का शुरू में नियंत्रण होता है।
इसके करीब 20 से 22 दिन बाद हम खेत में पानी लगाते हैं और उस पानी लगाने के बाद जब चलने लायक हो जाता हैं तब उसके बाद हम नॉमिनी गोल्ड दवा का छिड़काव करते हैं इसमें करीब सौ मिली मात्रा में दवा 200, 250 लीटर पानी में घोल करके उसका छिड़काव करते हैं। इससे जो खरपतवार उगे होते हैं वो नष्ट हो जाते हैं। अगर हम इन बातों का ध्यान रखें तो सीधी बिजाई से हम अच्छी फसल प्राप्त कर सकते हैं।
(डॉ अशोक कुमार सिंह, आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक हैं।)