कहीं आपके भी आम के छोटे फलों को तो बर्बाद तो नहीं कर रहा यह नया कीट

बिहार के मोतिहारी और आसपास आम के बागों में, नया कीट देखा जा रहा है। यह कीट 10 से 15 साल पुराने आम के पेड़ों में ज़्यादा देखने को मिल रहा है।
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पिछले दो साल से बिहार के मोतिहारी जिले में आम के बाग में बौर और फलों पर एक कीट दिखाई दे रहा है। अभी तक इसे अरहर, मक्का, कपास जैसी फसलों में देखा जाता रहा है।

इस कीट की पहचान हेलिकोवर्पा आर्मिगेरे के रूप में हुई है, इसके पहले इसे बिहार में कहीं भी रिपोर्ट नहीं किया गया था। मुख्य फसल के अभाव में भोजन के लिए यह कीट किसी भी फसल को खा सकता है क्योंकि यह सर्वभक्षी स्वभाव का होता है।

इस कीट की गतिविधि आम के पुष्पक्रम (मंजर) और छोटे टिकोलो तक सीमित है। इस कीट का लार्वा छोटे फलों को खुरचकर खा रहा है।

छोटे फलों को आंशिक रूप से लार्वा द्वारा खुरच कर खाने के लक्षण देखने को सामान्य रूप से देखने को मिल रहे हैं। मोतिहारी के एक प्रगतिशील किसान के अनुसार इस कीट से आक्रांत आम के बागों में 20 से 30 प्रतिशत तक नुकसान होने की संभावना है। कीटों की 400 से अधिक प्रजातियाँ आम की फसल को प्रभावित करती हैं। इनमें पत्ती हॉपर, तना छेदक, स्टोन वीविल और फल मक्खियाँ आर्थिक नुकसान पहुँचाने वाली मानी जाती हैं।

पश्चिमी चंपारण के आस पास आम के बागों में हेलिकोवर्पा आर्मिगेरा को एक प्रमुख कीट के तौर पर देखा जा रहा है। हेलिकोवर्पा आर्मिगेरा जो दुनिया भर में 200 से अधिक मेजबान पौधों पर हमला करने के लिए जाना जाता है। मटर अवस्था वाले आम के फलों पर हेलिकोवर्पा आर्मिगेरा के संक्रमण से गंभीर क्षति होती है, जिससे उपज में नुकसान होता है और किसानों के लिए आर्थिक नुकसान होता है। इस कीट के प्रभाव को कम करने और आम की फसलों की सुरक्षा के लिए प्रभावी प्रबंधन रणनीतियाँ आवश्यक हैं।

मटर अवस्था में आम के फलों पर प्रभाव

मटर अवस्था आम के फल प्रारंभिक विकासात्मक अवस्था को संदर्भित करते हैं जब फल छोटे होते हैं और आकार में मटर के समान होते हैं। इस अवस्था में, आम के फल विशेष रूप से हेलिकोवर्पा आर्मिगेरा संक्रमण के प्रति संवेदनशील होते हैं। लार्वा फलों को खुरच कर खाते हैं, जिससे शारीरिक क्षति होती है और रोगाणुओं के लिए प्रवेश बिंदु बन जाते हैं, जिससे फल सड़ जाते हैं। गंभीर संक्रमण के परिणामस्वरूप फलों की गुणवत्ता में कमी, फलों का समय से पहले गिरना और उपज में महत्वपूर्ण कमी होती है।

आम में हेलिकोवर्पा आर्मिगेरा कीट को कैसे करें प्रबंधित?

मटर अवस्था आम के फलों पर हेलिकोवर्पा आर्मिगेरा संक्रमण के प्रभावी प्रबंधन के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जिसमें कृषि कार्य, यांत्रिक, जैविक और रासायनिक नियंत्रण विधियों का संयोजन होता है।

कृषि कार्य

स्वच्छता: सर्दियों में जीवित रहने वाले लार्वा और प्यूपा की आबादी को कम करने के लिए संक्रमित फलों और पौधों के मलबे को हटा दें और नष्ट कर दें।

यांत्रिक नियंत्रण

ट्रैपिंग: वयस्क पतंगे की गतिविधि पर नज़र रखने और संभोग की सफलता को कम करने के लिए फेरोमोन ट्रैप का उपयोग करें।

यांत्रिक निष्कासन: संक्रमित फलों से लार्वा और अंडे को हाथ से चुनें और नष्ट करें।

जैविक नियंत्रण

प्राकृतिक शत्रु: हेलिकोवर्पा आर्मिगेरा के प्राकृतिक शिकारियों और परजीवियों, जैसे शिकारी भृंग, परजीवी ततैया और शिकारी कीड़ों की उपस्थिति को बढ़ावा दें।

सूक्ष्मजीव नियंत्रण: बैसिलस थुरिंजिएंसिस (बीटी) जैसे सूक्ष्मजीवी एजेंटों का उपयोग हेलिकोवर्पा आर्मीजेरा लार्वा को प्रभावी ढंग से लक्षित कर सकता है जबकि लाभकारी कीटों को होने वाले नुकसान को कम से कम कर सकता है।

रासायनिक नियंत्रण

हेलिकोवर्पा आर्मीजेरा लार्वा को लक्षित करने वाले चुनिंदा कीटनाशकों का उपयोग अंतिम उपाय के रूप में किया जा सकता है जब संक्रमण आर्थिक सीमा तक पहुँच जाता है। क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल (कोरिजन) @ 1 मिली प्रति 3 लीटर पानी या इमामेक्टिन बेंजेट @ 1 ग्राम प्रति 3 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से इस कीट की उग्रता में कमी लाई जा सकती है। हालाँकि, पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने और गैर-लक्षित जीवों को होने वाले नुकसान से बचने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए।

एकीकृत कीट प्रबंधन (आईपीएम): एक ऐसा आईपीएम दृष्टिकोण अपनाएँ जो कीटनाशक प्रतिरोध को कम करने और स्थायी कीट प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए अन्य प्रबंधन रणनीतियों के साथ रासायनिक नियंत्रण के विवेकपूर्ण उपयोग पर जोर देता है।

निगरानी और प्रारंभिक पहचान

हेलिकोवर्पा आर्मिगेरा संक्रमण के संकेतों के लिए आम के बागों की नियमित निगरानी, जैसे कि भोजन से होने वाली क्षति और अंडों और लार्वा की उपस्थिति, आबादी के हानिकारक स्तर तक पहुँचने से पहले समय पर हस्तक्षेप करने के लिए प्रेरित करता है।प्रारंभिक पहचान लक्षित नियंत्रण उपायों के कार्यान्वयन को सक्षम बनाती है, जिससे व्यापक कीटनाशक के प्रयोग की आवश्यकता कम हो जाती है।

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