हरियाणा के मोहित सिंह ने अपने खेत में धान, सूरजमुखी, मक्का और गन्ना की फ़सल लगाई है, अभी एक हफ़्ते पहले तक फसले लहलहा रहीं थीं, लेकिन अब सब कुछ पानी पानी हो गया है। गन्ने को छोड़कर कोई भी फ़सल नज़र तक नहीं आ रही है।
चंडीगढ़ से क़रीब 47 किलोमीटर दूर अंबाला ज़िले के नारायगढ़ के किसान मोहित सिंह की सारी मेहनत बर्बाद हो गई है। ऐसा ही हाल पंजाब के किसानों का है, जहाँ 2.40 लाख हेक्टेयर धान की फ़सल पानी से बर्बाद होने की आशंका है।
मोहित गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “मेरे 9 एकड़ खेत में से दो एकड़ बाढ़ की चपेट में है, इसी खेत में धान लगा है जो पूरी तरह से डूब गया है। अभी कहा नहीं जा सकता कि कितना नुकसान हुआ है, पानी निकलने के बाद ही कुछ बता सकते हैं।” मोहित के गाँव के पास से ही बेगना नदी बहती है, जिसमें आयी बाढ़ से खेत डूब गए हैं। हालाँकि 2013 जैसी बाढ़ से इसकी तुलना नहीं करते हैं।
पानी से मोहित के ख़ेत में लगा ट्यूबवेल और सोलर पैनल भी पूरी तरह से टूट गया है। मोहित आगे बताते हैं, “अभी जून में धान की रोपाई की गयी थी, लेकिन अब धान का खेत पूरा डूब चुका है। इन्हें लगाने में लगभग 60,000 हज़ार रुपए की लागत आयी थी, लेकिन अब सारी मेहनत और पैसे पानी में डूब चुके हैं।”
बाढ़ से कितना हुआ नुक़सान
पिछले कुछ दिनों में भारी बारिश से हरियाणा सहित कई राज्यों में किसानों को काफ़ी नुकसान हुआ है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, 6 जुलाई से 12 जुलाई के बीच हरियाणा के अंबाला में 362 प्रतिशत बारिश हुई, जबकि अगर दूसरे ज़िले की बात की जाए तो पंचकुला 550 प्रतिशत, यमुनानगर में 541 प्रतिशत, कुरुक्षेत्र में 669 प्रतिशत, कैथल में 317 प्रतिशत, पानीपत में 228 प्रतिशत बारिश हुई है।
भारी बारिश से ज़्यादातर ज़िलों में खरीफ़ की फ़सलें प्रभावित हुई हैं। यहाँ के अंबाला, फतेहाबाद, फरीदाबाद, कैथल, करनाल, कुरुक्षेत्र, पानीपत, पंचकूला, पलवल, सिरसा, सोनीपत, यमुना नगर बाढ़ से प्रभावित हैं।
मोहित की तरह ही उनके आसपास के ज़्यादातर किसानों का यही हाल है, किसानों के अनुसार लगभग 80 प्रतिशत तक फसलें बर्बाद हो गईं हैं। नारायणगढ़ गन्ना की ख़ेती के लिए जाना जाता है, धान के साथ यहाँ गन्ने के खेत भी डूबे हैं। कई किसानों के खेत तो बाढ़ के कारण कट गए हैं।
मोहित बताते हैं, “नारायगढ़ गन्ना बेल्ट है, लेकिन इस बार उतना ही धान भी था, गन्ना फिर भी अभी बच गया, जितना भी एरिया है जो नदी के तरफ हैं वो लगभग सभी प्रभावित है। खेत बह चुके हैं पानी कितना अन्दर है अभी मालूम नहीं हो रहा है। हमारे ख़ेतों के ऊपर वाटर लेवल 20 फीट तक है।”
नारायणगढ़ से लगभग 114 किमी दूर करनाल ज़िले के नबीपुर में यही स्थिति है। भारी बारिश से किसानों को काफ़ी नुकसान हो रहा है, नबीपुर गाँव के किसान कमल कुमार कंबोज गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “हमारी तरफ़ बाढ़ की स्थिति नहीं है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से बारिश लगातार हो रही है,पहले ऐसा 2013 में हमने देखा था जब खेत बारिश के पानी में डूब गए थे।”
कमल कुमार ने सात एकड़ में धान और गन्ने की फ़सल लगाई है। कमल कहते हैं, “अगर ऐसे ही चलता रहेगा तो हमारी सारी फ़सल बर्बाद हो जाएगी, मैंने तीन एकड़ में धान की फ़सल लगाई है,जबकि मेरे पूरे गाँव में 80 एकड़ के क़रीब धान के खेत हैं। सभी के ख़ेतों में चार फीट तक पानी भर गया था।”
नबीपुर गाँव से लगभग 15 किमी दूर घग्गर नदी का बाँध टूट गया था, जिससे आसपास के गाँवों में पानी भर गया। कमल कहते हैं, “बाँध टूटने के बाद पानी तेज़ी से गाँवों को डुबाते हुए आगे बढ़ रहा था, लेकिन हमारे गाँव से थोड़ी दूर पहले ही पानी ने रास्ता बदल दिया। उससे बहुत सारे किसानों के खेत पानी में डूब गए।” करनाल के साथ ही सिरसा के मीरपुर और सहारणी के पास नदी का बाँध तीन जगह से टूट गया।
हरियाणा के पड़ोसी राज्य पंजाब में भी स्थिति ऐसी ही है, फरीदपुर ज़िले के किसान मनप्रीत गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “हमने नौ एकड़ में धान लगाया है, जिसमें से आधी फ़सल पानी में डूबी हुई है। पानी से लगभग 50 प्रतिशत तक फ़सल बर्बाद हो गई है, जिसे दोबारा लगाना पड़ेगा।”
कहाँ कितनी हुई बारिश
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, 06 जुलाई से 12 जुलाई के बीच पंजाब के फरीदपुर में लगभग 386 प्रतिशत बारिश हुई है, जबकि होशियारपुर में 395 प्रतिशत, तरण तारण 510 प्रतिशत, फरीदकोट 386 प्रतिशत ,फिरोजपुर 431 प्रतिशत, फतेहपुर साहिब 439 प्रतिशत और रूपनगर में 589 प्रतिशत बारिश हुई।
क्यों आती है बाढ़
जानकारों के मुताबिक़ ऊपरी इलाकों में पानी को रोकने की क्षमता धीरे- धीरे कम होती जा रही है। जंगल, ग्रासलैंड और वेटलैंड कम हो गए हैं, फ़्लड प्लेन को नुकसान होता जा रहा है जिससे निचले इलाकों में पानी ज़्यादा आ जाता है।
पंजाब में धान की फ़सल को मुख्य रूप से पटियाला, संगरूर, मोहाली, लुधियाना, जालंधर और फतेहगढ़ साहिब ज़िलों में नुकसान हुआ है। पंजाब में लगभग 30 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में धान की ख़ेती होती है।
मोहाली के किसान कमलजीत सिंह बताते हैं, “बारिश में खेत एकदम डूब चुके हैं, जिनका कुछ कहा नहीं जा सकता अब ख़ेतों में दोबारा बुवाई करनी पड़ेगी, इससे किसानों का काम बढ़ जाएगा और अगर अब अब ये फ़सल लेट हुई तो आगे रबी की फ़सल में भी देर होगी।”
कमलजीत के अनुसार बारिश और बाढ़ परेशानियों के साथ प्रकृति के लिए अच्छी भी है, क्योंकि ख़ेतों में पहाड़ों से बहकर अच्छी मिट्टी भी आती है। जो ख़ेतों को उपजाऊ बनाती है, जिनका अपना अलग फायदा है।
बाढ़ से ख़ेती के साथ पशुओं के लिए भी समस्याएँ बढ़ गईं हैं। कमलजीत बताते हैं, “ज़्यादा दिनों तक ख़ेतों में पानी रहा तो पशुपालकों के लिए भी समस्या बढ़ जाएगी, क्योंकि हरे चारे की फ़सल भी डूब गई है और बहुत से पशुपालक अपने पशुओं को चराने जाते हैं। “