वो आइडिया जो बदल सकता है अफ़्रीकी किसानों की क़िस्मत

स्मार्ट कृषि तकनीकों और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का बढ़ता इस्तेमाल अफ्रीका के कृषि क्षेत्र को न सिर्फ जलवायु परिवर्तन से बचा सकता है, बल्कि यह खाद्य सुरक्षा और समृद्धि के लिए एक मजबूत आधार साबित हो सकता है।
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अफ़्रीका के आधा दर्जन से अधिक देशों के किसानों की किस्मत बदलने वाली है। मॉरीशस सहित नाइजीरिया, युगांडा और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में स्मार्ट कृषि तकनीक को बढ़ावा देने के लिए अफ्रीकी विकास बैंक के अलावा थाईलैंड और फिलीपींस आगे आए हैं। माना जा रहा है कि इससे सबसे अधिक फायदा छोटे किसानों को होगा। कृषि एक्सपर्ट का मानना है कि अफ्रीका में छोटे किसानों के लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल बढ़ रहा है, जिससे कृषि उत्पादकता और खाद्य सुरक्षा में सुधार हो रहा है। इन देशों में छोटे किसानों के लिए खेती शुरू से बड़ी चुनौती रही है। जलवायु परिवर्तन, संसाधनों की कमी और आधुनिक तकनीक की पहुंच की दिक्कतें उन्हें पहले ही परेशान कर रही थीं। लेकिन अब, इन नयी तकनीकों और सहयोगों के जरिए, कृषि के क्षेत्र में सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए जा रहे हैं।

अफ्रीका का कृषि क्षेत्र बड़े बदलावों की ओर बढ़ रहा है, और इन सुधारों का मुख्य केंद्र छोटे किसान हैं। इनमें से अधिकांश किसान पारंपरिक तरीके से खेती करते हैं और उनकी समस्याएँ कहीं न कहीं एक जैसी हैं। सूखा, असमय बारिश, सीमित पानी, खराब जमीन और कीटों का हमला। विश्व मौसम संगठन के मुताबिक, अफ्रीका में जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि उत्पादकता में 10 प्रतिशत से 20 प्रतिशत  की गिरावट हो सकती है, जिससे खाद्य सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। ऐसे में इन देशों में कृषि क्षेत्र को प्रौद्योगिकी और स्मार्ट समाधानों की आवश्यकता है।

इन समस्याओं का समाधान लाने के लिए कई संगठन और देश मिलकर काम कर रहे हैं। ‘फार्म अफ्रीका’, ‘वन एकर फंड’ और ‘किकस्टार्ट इंटरनेशनल’ जैसे संगठन छोटे किसानों को कृषि की नई तकनीकों से परिचित करवा रहे हैं। ये संस्थाएँ किसानों को बेहतर बीज, उर्वरक, सिंचाई उपकरण और जलवायु अनुकूल कृषि विधियाँ उपलब्ध करा रही हैं। उदाहरण के तौर पर, फार्म अफ्रीका ने 12 लाख किसानों को प्रशिक्षण दिया है, जिससे उनकी उत्पादन क्षमता में औसतन 50 प्रतिशत  की वृद्धि हुई है।

इसी तरह, वन एकर फंड ने छोटे किसानों को अपनी फसलों को सुरक्षित रखने और बेहतर तरीके से उगाने के लिए सहायता दी है। किकस्टार्ट इंटरनेशनल ने किसानों को सस्ती सिंचाई तकनीकों से जोड़ने का काम किया है, जिससे वे सीमित जल संसाधनों का सही तरीके से उपयोग कर सके। इन पहलुओं ने अफ्रीका के किसानों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाए हैं।

भारत जैसे देशों से भी अफ्रीका के किसानों को प्रेरणा मिल रही है। भारत में कृषि बीमा योजनाएँ, सूखा-प्रतिरोधी बीज, और सिंचाई प्रणालियाँ किसानों के लिए एक बडी मदद साबित हो रही हैं। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएकेएसवाई) के तहत भारत ने 40 मिलियन हेक्टेयर जमीन को सिंचाई सुविधाओं से जोड़कर कृषि उत्पादकता को बढ़ाया है। इस मॉडल को अफ्रीका में भी लागू किया जा सकता है, खासकर ऐसे क्षेत्रों में जहाँ पानी की कमी और असमय बारिश बड़ी समस्या है।

अफ्रीका महाद्वीप की पहचान जहाँ एक ओर प्राकृतिक विविधता और सांस्कृतिक धरोहर से होती है, वहीं दूसरी ओर यह क्षेत्र खेती-किसानी की दृष्टि से गहरे संकटों से गुजर रहा है। उप-सहारा अफ्रीका के अधिकांश देशों में 80 फीसदी  से अधिक लोग आज भी कृषि पर निर्भर हैं, फिर भी किसान वर्ग सबसे अधिक संघर्षरत है।

मॉरीशस और इज़राइल जैसे देशों ने हालाँकि अपने कृषि क्षेत्रों में विशेष सुधार किए हैं। मॉरीशस में जैविक खेती और पानी जुटाने की तकनीकों को लागू किया गया है, जबकि इज़राइल ने अपनी ड्रिप इरिगेशन तकनीक के द्वारा पानी की बचत करते हुए कृषि उत्पादकता में वृद्धि की है। इज़राइल की तकनीकों को अफ्रीका में लागू करके जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम किया जा सकता है।

ये प्रयास अब तक सीमित रहे हैं, लेकिन आने वाले समय में अगर ये और तेज़ी से लागू हों, तो अफ्रीका के किसानों को बड़ी राहत मिल सकती है। यह समय की जरूरत है कि इन नयी तकनीकों और विधियों को व्यापक स्तर पर अफ्रीका के विभिन्न हिस्सों में लागू किया जाए ताकि छोटे किसानों के लिए खेती को आसान और लाभकारी बनाया जा सके।

मॉरीशस में कृषि क्षेत्र में 2025 में कई महत्वपूर्ण बदलाव हो रहे हैं, जो छोटे किसानों की स्थिति में सुधार और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। मॉरीशस चेंबर ऑफ एग्रीकल्चर (एमसीए) ने 7 अप्रैल 2025 को “स्मार्ट एग्रीकल्चर” पहल के तीसरे चरण की शुरुआत की। इस चरण का मकसद कृषि क्षेत्र में पर्यावरण तंत्र के अनुकूल प्रथाओं को बढ़ावा देना और किसानों को लगातार कृषि तकनीकों के लिए प्रेरित करना है। इस परियोजना को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के ग्लोबल एनवायरनमेंट फैसिलिटी (जीईएफ) स्मॉल ग्रांट्स प्रोग्राम से 75,000 डॉलर का अनुदान मिला हुआ है। इसका लक्ष्य 30 किसानों को जैविक कृषि में प्रशिक्षित करना और उन्हें मौरी गैप और मेड इन मोरिस  जैसे प्रमाणपत्र प्राप्त करने में सहायता करना है। 

मॉरीशस ने 2030 तक अपनी बिजली का 60 फीसदी नवीकरणीय स्रोतों (सौर ऊर्जा या  पवन ऊर्जा) से उत्पन्न करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस दिशा में, भारत से तकनीकी मदद लेने की बातचीत चल रही है। खबर है मई 2025 में भारतीय विशेषज्ञों की एक टीम मॉरीशस के केंद्रीय विद्युत बोर्ड (सीईबी) के साथ मिलकर ऊर्जा नियोजन और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं पर काम करेगी। यह सहयोग मॉरीशस की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने और साफ-सुथरी ऊर्जा अपनाने में मदद करेगा।  

स्मार्ट कृषि तकनीकों और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का बढ़ता इस्तेमाल अफ्रीका के कृषि क्षेत्र को न सिर्फ जलवायु परिवर्तन से बचा सकता है, बल्कि यह खाद्य सुरक्षा और समृद्धि के लिए एक मजबूत आधार साबित हो सकता है। अगर अफ्रीकी देशों में इन पहलों को सही दिशा में बढ़ावा दिया जाता है, तो निश्चित रूप से आने वाले समय में अफ्रीका के किसान एक नई राह पर चलने में सफल होंगे।

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