कहीं आपके प्याज की फ़सल में तो नहीं लग रहा है ये रोग

पर्पल ब्लॉच रोग प्याज के उत्पादन में एक बड़ी चुनौती है, लेकिन इसके सही प्रबंधन के ज़रिए से फसल को बचाया जा सकता है। जैविक और रासायनिक उपायों का संतुलित उपयोग, साथ ही कृषि पद्धतियों का पालन, रोग को नियंत्रित करने में मददगार साबित होता है।

प्याज में पर्पल ब्लॉच रोग (Alternaria porri) एक प्रमुख समस्या है। यह रोग पत्तियों और तनों पर असर डालता है, जिससे पौधों का विकास रुक जाता है और फसल उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। रोग की गंभीरता को कम करने और फसल की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए इसका प्रभावी प्रबंधन ज़रूरी है।

रोग के लक्षण

पत्तियों पर धब्बे: शुरूआत में छोटे, पानी से भरे हल्के पीले धब्बे दिखाई देते हैं। ये धब्बे धीरे-धीरे बढ़कर भूरे या बैंगनी रंग के हो जाते हैं। चारों ओर पीले रंग का घेरा बनता है।

पत्तियों का झुलसना: गंभीर संक्रमण होने पर पत्तियां सूख जाती हैं। तने भी प्रभावित हो सकते हैं।

बल्ब का विकास रुकना: पत्तियों का समय से पहले सूखना बल्ब के विकास को रोकता है, जिससे उत्पादन में कमी आती है।

पर्पल ब्लॉच रोग का प्रसार
यह रोग मुख्य रूप से हवा, संक्रमित पौधों के अवशेष, और नमी के कारण फैलता है। अनुकूल परिस्थितियां, जैसे: उच्च आर्द्रता (80-90%),18-25 डिग्री सेल्सियस तापमान, और बारिश या भारी सिंचाई, रोग के प्रसार को तेज करती हैं।

रोग प्रबंधन के उपाय

  1. कृषि वैज्ञानिक प्रबंधन
    फसल चक्र अपनाएं:
    प्याज को अन्य फसलों के साथ चक्रीय रूप से उगाएं।
    साफ-सफाई: खेत में पुराने पौधों के अवशेषों को हटा दें। ये रोग का मुख्य स्रोत होते हैं।
    जल निकासी का प्रबंधन: खेत में पानी का जमाव न होने दें।
    संतुलित उर्वरक का उपयोग: नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, और पोटाश का संतुलित मात्रा में उपयोग करें।नाइट्रोजन की अधिकता रोग के प्रकोप को बढ़ा सकती है।
  2. प्रतिरोधी किस्मों का चयन
    उस क्षेत्र विशेष के लिए संस्तुति रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें। जैसे प्याज की ‘Agrifound Dark Red’ और ‘Arka Kalyan’। प्रतिरोधी किस्में रोग के प्रसार को रोकने में मदद करती हैं।
  3. जैविक प्रबंधन
    ट्राइकोडर्मा spp. जैसे जैव-एजेंट का उपयोग करें। ट्राइकोडर्मा, पर्पल ब्लॉच रोग के रोगजनक पर नियंत्रण पाने में सहायक है।
    निमोल (नीम का तेल): 5% निमोल का छिड़काव करें।
    काउ डंग स्लरी:जैविक खाद का उपयोग पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद करता है।
  4. रासायनिक प्रबंधन
    रोग के प्रकोप की प्रारंभिक अवस्था में निम्न रासायनिक फफूंदनाशकों का उपयोग करें जैसे मैनकोजेब (Mancozeb) 75 WP की
    2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें या प्रोपिकोनाज़ोल (Propiconazole) 25 EC की 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें या क्लोरोथैलोनिल (Chlorothalonil) नामक कवकनाशक की 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। छिड़काव 10-15 दिन के अंतराल पर दो बार करें।
  5. सिंचाई प्रबंधन
    सुबह के समय ड्रिप सिंचाई का उपयोग करें।
    ओवरहेड सिंचाई (स्प्रिंकलर) से बचें, क्योंकि यह पत्तियों पर नमी बढ़ाकर रोग को बढ़ावा देती है।

रोग रोकथाम के सुझाव

खेत की निगरानी: प्रारंभिक अवस्था में लक्षण देखकर रोग का प्रबंधन शुरू करें।
बीज उपचार: बुवाई से पहले बीज को थायरम या कैप्टन (2-3 ग्राम/किलो बीज) से उपचारित करें।
पौध संरक्षण: 30-35 दिन की फसल पर फफूंदनाशकों का छिड़काव करें।
खेत का उचित रखरखाव: खरपतवार और रोग फैलाने वाले कारकों को नियंत्रित करें।

Recent Posts



More Posts

popular Posts