बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में केला उत्पादन की काफी संभावनाएँ हैं, क्योकि यहाँ की जलवायु केला की खेती के लिए सही है।
बिहार में केला वैशाली क्षेत्र (मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, वैशाली, हाजीपुर) और कोशी क्षेत्र (खगड़िया, पूर्णिया, कटिहार, भागलपुर) में उगाया जाता है। वैशाली क्षेत्र में ज़्यादातर लम्बी प्रजाति के केलों की खेती होती है, यहाँ का किसान परम्परागत ढंग से बहुवर्षीय खेती (10-30 वर्ष) करता है, इसके विपरीत कोसी क्षेत्र का किसान बौनी प्रजाति के केला की खेती वैज्ञानिक ढंग से करता है।
केला लगाने के लिए रोपण सामग्री सकर ही ज़्यादा प्रयुक्त होता है, जिसकी वजह से बिहार की उत्पादकता कम है। अगर हमारे किसान टिश्यू कल्चर से तैयार पौधों से केला की खेती करना शुरु कर दें तो निश्तित रूप से केला की खेती में उत्पादकता बढ़ेगी। अभी तक बिहार में टिश्यू कल्चर द्वारा केला के पौधे तैयार करने वाली प्रयोगशालाओं की संख्या बहुत कम थी। जो प्रयोगशाला थी भी, वह भी केवल ग्रैंड नैनो प्रजाति के केलों के पौध बनाते थे, जिन्हें बिहार का उपभोक्ता कम पसंद करता हैं।
बिहार में होने वाली किसी भी पूजा में बौनी प्रजाति के केलों की माँग बहुत कम होती है या लोग उसे पूजा के लिए प्रयोग करना नहीं चाहते हैं, विशेषकर छठ में तो केवल लम्बी प्रजाति के केलों का ही उपयोग होता है।
केला विश्व के 130 से ज़्यादा देशों में उगाया जाता है। भारत, चीन, फिलीपींस, ब्राजील, इंडोनेशिया , इक्वाडोर ग्वाटेमाला, अंगोला बुरुन्डी इत्यादि विश्व के प्रमुख केला उत्पादक देश हैं। विश्व में उत्पादकता के दृष्टिकोण से भारत चौथे स्थान पर है, इसकी उत्पादकता 34.9 टन/हेक्टेयर है। हमारे देश में तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और बिहार प्रमुख केला उत्पादक प्रदेश हैं।
साल वर्ष 2020-21 के आंकड़ों के अनुसार भारत में केला की खेती 924.14 हज़ार हेक्टेयर में होती है, जिससे 33061.79 हज़ार टन उत्पादन प्राप्त होता है। बिहार में केला की खेती 35.32 हज़ार हेक्टेयर में होती है, जिससे कुल 1612.56 हजार मीट्रिक टन उत्पादन प्राप्त होता है। बिहार में केला की उत्पादकता 45.66 टन प्रति हेक्टेयर है। देश में, बिहार केला के क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से नवें स्थान पर, उत्पादन में सातवें स्थान पर है।
लम्बी प्रजातियों के केलों की माँग को देखते हुए ज़रूरत इस बात की है कि लम्बी प्रजाति के केलों का यथा मालभोग, अलपान, चिनिया, कोठिया, और दूध सागर इत्यादि प्रजातियों के केलों का टिश्यू कल्चर द्वारा पौधे तैयार करके किसानों को दिया जाए, जिससे बिहार में केला की उपज में वृद्धि हो सके और किसान वैज्ञानिक ढंग से केला की खेती कर सके।
जो किसान केला की खेती करना चाहते हैं, उन्हें अभी से तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। बिहार में केला लगाने का अच्छा समय जून से लेकर अगस्त तक है। रबी की फसल काटने के बाद खेत खाली हो जाता है। ऐसे में किसान जिस खेत में केला लगाना चाह रहे हो, उसमें हरी खाद के लिए उपयुक्त फसल जैसे, सनई, ढैंचा, मूँग, लोबिया जैसी फसलों में से कोई एक फसल लगा सकते हैं।
इस समय वर्षा होने की वजह से खेत में पर्याप्त नमी है, खेत की जुताई करके उसमे छिटकवा विधि से उपरोक्त में से किसी एक फसल की बुवाई कर सकते हैं। ऐसा करने में हमें कम से कम मजदूरों की जरूरत पड़ेगी।
जब फसल 45-50 दिन की हो जाए, तब मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करके उस फसल को मिट्टी में दबा देते हैं। ऐसा करने से हमारे खेत को हरी खाद मिल जाती है और खेत की मिट्टी का स्वास्थ्य भी सही हो जाता है। इसके बाद केला लगाने से केला का बढ़वार अच्छा होता है और अच्छी उपज मिलती है।