बांकुड़ा, पश्चिम बंगाल। किसान शांतिमय डे पिछले कई महीनों से अपनी बेटी की शादी की तैयारियाँ कर रहे थे और जब शादी के दिन आया तो कई रिश्तेदार उनके घर नहीं पहुँचे, क्योंकि लोग हाथियों के हमले से डरे हुए हैं।
पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिले के दक्षिण सागरारा गाँव के रहने वाले 58 वर्षीय शांतिमय गाँव कनेक्शन से अपना दु:ख साझा करते हुए कहते हैं, “17 नवंबर को मेरी बेटी की शादी थी, लेकिन कई रिश्तेदार और मेहमान अचानक हाथी के हमले के डर से शादी में शामिल नहीं हो सके। तैयार किया गया खाना बर्बाद हो गया। सोचिए, हम कितनी भयानक स्थिति में जी रहे हैं।”
पिछले कई दिनों से हाथी का एक झुंड बांकुड़ा के कई गाँवों में घूम रहा है, ये पहली बार नहीं है जब हाथियों का झुंड गाँवों में आया है, पिछले चार दशकों से ये सिलसिला ज़ारी है, अब तो यहाँ के लोगों ने मान लिया है हर साल उन्हीं इस तबाही का सामना करना होगा।
सितंबर महीने में 74 हाथियों का झुंड झारखंड के दलमा हिल्स क्षेत्र से बांकुड़ा जिले में आए। ये हाथी पश्चिम बंगाल के झारग्राम और पश्चिम मेदिनीपुर के गरबेटा से होते हुए बांकुड़ा जिले के बिष्णुपुर ब्लॉक के बासुदेवपुर जंगल में प्रवेश करते हैं। कुछ दिन यहाँ ठहरने के बाद, ये हाथी दरकेश्वर नदी पार कर जॉयपुर, पतरसायर, सोनामुखी, बड़जोड़ा और बेलियाटोर पहुंचते हैं। यह झुंड यहां लगभग चार महीने तक रहता है। फिलहाल बड़जोड़ा और बेलियाटोर क्षेत्रों में लगभग 90 हाथी हैं। पिछले वर्षों की तरह, इस बार भी कई हाथियों ने बच्चों को जन्म दिया है, और बैांकुड़ा उत्तर वन प्रभाग और पंचायत के अधिकारियों के अनुसार, इस झुंड में कुल हाथियों की संख्या 100 से अधिक होने की संभावना है।
इस समय धान कटाई का मौसम चल रहा है। खास बात यह है कि पहले से ही यहां 17 स्थानीय हाथी मौजूद हैं। ये 100 से अधिक हाथी रोजाना बिष्णुपुर, जॉयपुर, बड़जोड़ा, बेलियाटोर, सोनामुखी, पतरसायर, गंगाजलघाटी और बांकुड़ा- II ब्लॉक के आसपास के जंगलों के सटे कई गाँवों में फसलों को काफी नुकसान पहुंचा रहे हैं।
किसान सुशांत डे ने धान की फसल लगाई ही थी कि यहाँ के हाथियों ने पूरी फसल बर्बाद कर दी, किसी तरह से उन्होंने दोबारा पैसे जमा किए और फिर धान की रोपाई की, लेकिन इस बार दालमा से आए हाथियों के झुंड ने फ़सल बर्बाद कर दिया। ये सिर्फ एक सुशांत अकेले की परेशानी नहीं है, यहाँ के किसान पिछले कई दशकों से यही मुसीबत झेलते आ रहे हैं।
किसान सुशांत डे पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिले के सागरारा गाँव के रहने वाले हैं, दर्दभरी आवाज़ में कहते हैं, “खेत ही नहीं बर्बाद हुए, खाने की तलाश में हाथियों ने कई कच्चे घर भी गिरा दिए है।
सिर्फ फसलों को ही नहीं लोगों के अंदर इस तरह से डर समाया है कि लोग बाहर जाने से भी डरने लगे हैं। ख़ासकर के छात्र, दोपहर के बाद काम या पढ़ाई के लिए बाहर जाने से डरते हैं।
17 जनवरी, 2024 की रात, कड़ाके की सर्दी में, कोलकाता से 190 किलोमीटर दूर, बांकुड़ा जिले के बड़जोड़ा ब्लॉक के घुटगोरिया हरिचरणडांगा गाँव की 24 साल की ममनी घोरुई की दुखद मौत हो गई। जब वह अपने घर से बाहर निकली, तभी पास में मौजूद एक हाथी ने जोर से चिल्लाया और उसे अपनी सूंड से पकड़ लिया, जिससे उसकी तुरंत मौत हो गई।
ममनी की चीख सुनकर उसके बड़े भाई, गंगाधर घोरुई, घर से बाहर भागे, लेकिन तीन जंगली हाथियों ने उन्हें रोक लिया, जिससे वे अपनी बहन तक नहीं पहुंच सके। 9 डिग्री सेल्सियस की ठंड के बावजूद, गंगाधर पसीने से लथपथ थे, क्योंकि उन्होंने अपनी छोटी बहन की जिंदगी को अपनी आँखों के सामने खत्म होते देखा।
इसी तरह की घटना पिछले दिनों गोपबंदी गाँव में हुई। यह गाँव बड़जोड़ा ब्लॉक के सहारजोर ग्राम पंचायत के अंतर्गत आता है और वहाँ से 21 किलोमीटर दूर है। 16 जनवरी को, 75 वर्षीय किसान शंभुनाथ मंडल अपने आंगन में एक जंगली हाथी के हमले में मारे गए। दो हाथी उस समय वहां मौजूद थे।
जुलाई 2024 में, एक और दु:खद घटना घटी, जब बड़जोड़ा ब्लॉक के खरारी गाँव की बसंती मंडल की एक हाथी ने सुबह के समय खेतों की ओर जाते समय हत्या कर दी गई।
हाथियों के हमलों का कहर, जो लोगों की जान ले रहा है, बंगाल के बड़जोड़ा, बेलियाटोर और सोनामुखी पुलिस थाना क्षेत्रों के विभिन्न गाँवों में बढ़ रहा है। इन हमलों की चिंताजनक बात यह है कि हाथी शाकाहारी होते हैं और आम तौर पर इंसानों के प्रति आक्रामक नहीं होते।
“इस क्षेत्र के लोग डर के साये में जी रहे हैं, और इसका कोई अंत नजर नहीं आ रहा। ज्यादातर लोग यह नहीं जानते कि अगला हाथी हमला कब और कहाँ हो सकता है। बारजोड़ा, बेलियाटोर और सोनामुखी क्षेत्रों में डर का माहौल है, “बारजोड़ा के पूर्व विधायक सुजीत चक्रवर्ती ने कहा।
उन्होंने जोर देकर कहा कि पिछले दशक में, इन तीन पुलिस थाना क्षेत्रों में जंगली हाथियों के हमलों के कारण 137 लोगों की जान जा चुकी है, साथ ही कृषि क्षति में भी अरबों रुपये का नुकसान हुआ है। इसके अलावा, हाथियों के भय के कारण वन के पास के गाँव के लोगों के काम नहीं बचा है।
इस गंभीर स्थिति में, स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया है कि वन विभाग, स्थानीय पंचायत और प्रशासन निष्क्रिय रहे हैं, जिससे प्रभावित समुदायों के पास बहुत कम विकल्प बचे हैं। हाथियों के हमलों को रोकने और नियंत्रित करने के वादे किए गए हैं, लेकिन ठोस कार्रवाई अभी भी अधूरी है।
हाथी हमलों को कम करने के लिए वन विभाग क्या कर रहा प्रयास
10 जनवरी, 2023 को, 56 साल के तुलसी बटब्याल 45 साल के और गोविंदा बाउरी (45) की अलग-अलग हाथियों के हमलों में बांकुड़ा के जारिया और बंधकाना गांवों में मौत हो गई। अगले दिन, बेलियाटोर वन बंगले में एक उच्च स्तरीय बैठक आयोजित की गई, जिसकी अध्यक्षता मुख्य वन संरक्षक (सीसीएफ) एस. कुंडलदिवेल ने की, जिसमें स्थानीय पुलिस और वन अधिकारी उपस्थित थे।
इसके बावजूद, 15 जनवरी को एक और व्यक्ति की मौत सग्राकाटा, बड़जोड़ा में हुई, जब एक ग्रामीण को एक हाथी ने मार दिया। 30 जनवरी को, गुरुदास मुर्मू (32), जो कि एक हुला पार्टी के सदस्य थे, की सोनामुखी ब्लॉक के रोपट जंगल में हाथियों के झुंड का पीछा करते समय मौत हो गई।
रिटायर्ड वन रेंजर सुभ्रता दास ने बताया कि 1985 से हाथी अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में बांकदाहा क्षेत्र में प्रवेश करते रहे हैं। पहले केवल 20-25 हाथी ही आते थे, लेकिन समय के साथ उनकी संख्या बढ़ती गई।
रिटायर्ड वन अधिकारी मुकुल रे ने नवंबर की फसल कटाई के दौरान हाथियों द्वारा धान के खेतों को नष्ट किए जाने को करते हुए कहते हैं, “इस समस्या को हल करने के लिए, प्रशासन, पंचायत समिति और ग्रामीणों के साथ बैठकें आयोजित की गईं ताकि हाथियों के हमलों से निपटने की रणनीति बनाई जा सके।”
हाथियों के डर से लोग मजदूर काम पर नहीं जा रहे हैं, दयामीय बाउरी भी उन्हीं में से एक खेतिहर मजदूर हैं। दयामीय बाउरी गाँव कनेक्शन से कहते हैं, “पूरे समुदाय में जो डर फैल गया है, उसके कारण बहुत से लोग अपने खेतों को छोड़ने को मजबूर हैं। इससे किसानों और मजदूरों पर गंभीर असर पड़ा है।”
इन समस्याओं के बीच पश्चिम बंगाल वन विभाग की कार्रवाई पर सवाल उठाए जा रहे हैं। जब इस स्थिति पर सवाल किया गया, तो उमर इमाम, जो बैंकुरा नॉर्थ डिवीजन के डिवीजनल फॉरेस्ट ऑफिसर (DFO) हैं, ने कहा, “हमारे कर्मचारी और हुला पार्टियां हाथी के हमलों को रोकने के लिए सक्रिय रूप से प्रयास कर रही हैं।”
सांकर माजी, जो बैंकुरा जिला पंचायत के पूर्व सदस्य और झोरिया गांव के निवासी हैं, ने इन प्रयासों की आलोचना करते हुए कहा कि जबकि हाथी को पकड़ने के लिए हर साल काफी बजट पास होता है, हुला पार्टियों में भर्ती किए गए अधिकांश लोग प्रशिक्षित नहीं होते हैं और वे क्षेत्र के बारे में अनभिज्ञ होते हैं। ये लोग बाहरी क्षेत्र से लाए जाते हैं, जो अपने व्यक्तिगत जोखिम पर काम करते हैं और केवल 264 रुपए रोजाना कमाते हैं। इसके अलावा, वे इलाके और हाथियों के व्यवहार से परिचित नहीं होते हैं।
सुनील बासुली, जो हाल ही में रिटायर हुए वन अधिकारी हैं, ने बताया कि पिछले कुछ साल में वन विभाग की टीमों में भारी कमी आई है, और नई भर्तियाँ नहीं की गईं। अब रेंजर्स को दो या तीन रेंज का प्रबंधन करना पड़ता है, और यही स्थिति कार्यालय प्रशासन में भी है। जबकि हाथी की गतिविधियों पर निगरानी रखने के लिए कई वॉचटावर लगाए गए थे, लेकिन स्टाफ की कमी के कारण ये प्रयास प्रभावहीन हो गए हैं। स्थानीय लोग यह भी दावा करते हैं कि वन विभाग और प्रभावित समुदायों के बीच संचार पूरी तरह से बंद हो गया है, और हाथी के आंदोलनों को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक उपकरणों की आपूर्ति भी बंद हो गई है, जिससे लोग निराश महसूस कर रहे हैं।
एके झा, जो बैंकुरा के उत्तरी क्षेत्र के अतिरिक्त जिला वन अधिकारी हैं, ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि हाथियों का झुंड वर्तमान में सहरजोरा जंगल में है, जहाँ बिजली की बाड़ और पर्याप्त भोजन की आपूर्ति की जाती है। हालांकि, स्थानीय लोग दावा करते हैं कि हाथियों को पर्याप्त आहार नहीं मिल रहा है। उनके पास जो सीमित मात्रा में गोभी और आलू दिए जा रहे हैं, वह उनकी भूख को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। स्थानीय लोग यह भी आरोप लगाते हैं कि वन विभाग बिना किसी पूर्व सूचना के हाथियों को उनके इलाके में छोड़ देता है, जिससे तबाही मच जाती है क्योंकि हाथी खाने के लिए इधर-उधर दौड़ते हैं। इसके परिणामस्वरूप हाथी और अधिक आक्रामक और बदमाश होते जा रहे हैं, जिससे और अधिक जानमाल के नुकसान का खतरा बना हुआ है।
एके झा आगे कहते हैं, “इस साल दलमा के हाथी ने धान और सब्जियों को काफी नुकसान पहुँचाया है, साथ ही कुछ घरों को भी नुकसान हुआ है, लेकिन अब तक किसी की मौत या सीधे हमले की रिपोर्ट नहीं आई है। स्थानीय आबादी में भय की स्थिति बरकरार है। लोग लगातार अनिश्चितता में जी रहे हैं, उन्हें नहीं पता कि अगला हाथी हमला कब, कहाँ, और किस पर होगा।”