सीमा का एक एकड़ खेत है जो इस गर्मी के मौसम भी हरा भरा रहता है। इस खेत में कई तरह की जैविक सब्जियां उगाई जाती हैं। उत्तर प्रदेश की बहराइच जिले की मिहिनपुरवा ब्लॉक के उर्रा गाँव की 33 वर्षीय सामुदायिक कार्यकर्ता 9 महीने से अधिक समय से अपने घर पर ही खाद बना रही हैं।
सीमा ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हमें खाद बनाने के तरीके के बारे में सिखाया गया था, जिसको मैंने अपने घर पर और बेहतर बनाया और गाँव की कुछ दूसरी महिलाओं को भी सिखाया। अब मैं अपनी खाद का उपयोग करके लौकी और भिंडी जैसी सब्जियां उगाती हूं।”
और ये कोई साधारण कम्पोस्ट नहीं है जिसको उर्रा गाँव की सीमा और अन्य महिलाएं बना रही हें और अपने खेत में इसका इस्तेमाल कर रही हैं। उन्हें बर्कले कम्पोस्ट बनाना सिखाया गया है। इसका नाम बर्कले रखा गया क्योंकि इस पद्धति को संयुक्त राज्य की कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले ने बनाया था। ट्रांसफार्म रूरल इंडिया फाउंडेशन (टीआरआईएफ़) जमीनी स्तर का गैर सरकारी संगठन है, जिसने राज्य के बहराइच जिले के एक ब्लॉक में उत्तर प्रदेश ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत इस पद्धति की शुरुआत की है।
ग्रामीणों को बर्कले विधि का इस्तेमाल कर के खाद बनाने और अलग अलग तरह की सब्जियां उगाने के लिए खेतों में इसके इस्तेमाल करने के लिए ट्रेनिंग दी जा रही है। इस स्कीम के तहत क्लस्टर लेवल फेडरेशन और 150 महिला किसानों ने ट्रेनिंग ली है।
सीमा ने बताया, “बर्कले विधि से खाद बनाना काफी मेहनत का काम है, शुरू में हमें काफी मुश्किल लगा। इसके लिए हमें काफी मात्रा में सूखे और हरे कचरे को इकट्ठा करने की भी जरूरत होती है। लेकिन ट्रेनिंग और मार्गदर्शन की वजह से अब हम माहिर हैं।”
कैसे बनाते हैं बर्कले खाद
बर्कले खाद बनाने की प्रक्रिया में तीन परतें शामिल हैं। जिसमें पहली परत बायोडिग्रेडेबल सूखे कचरे की होती है, दूसरी परत हरे कचरे यानी हरी पत्तियों और घास की होती है और तीसरी यानी ऊपरी परत गाय के गोबर की होती है। एक छोटी मीनार जैसा बनाने के लिए इन परतों को एक दूसरे के ऊपर 5 से 8 बार गोल आकार में दोहराया जाता है। संबंधित तीनों परतों में 3:2:1 अनुपात का पालन किया जाता है।
खाद में नमी को बनाए रखने के लिए हर स्टेप में पानी के छिड़काव की जरूरत होती है। स्ट्रक्चर तैयार होने के बाद उसे प्लास्टिक शीट से ढक दिया जाता है। बर्कले विधि में खाद तैयार होने में सिर्फ 18 दिन लगते हैं।
मंसूर नकवी, प्रोग्राम मैनेजर, बहराइच, टीआरआईएफ ने बताया, “बर्कले विधि खाद बनाने का एक गर्म तरीका है, गैर-वैज्ञानिक पद्धति के विपरीत जहां बायोडिग्रेडेबल कचरे को खाद में बदलने के लिए खुले में बिना किसी निश्चित अनुपात में इकट्ठा किया जाता है। पुरानी विधियों में आमतौर पर प्रयोग करने लायक खाद का बनाने में छह से आठ महीने लगते हैं।”
उन्होंने आगे बताया, “बर्कले खाद के कई अन्य लाभ हैं जैसे इस खाद को साल में 6 से 8 बार तैयार किया जा सकता है, क्योंकि इसे तैयार होने में सिर्फ 18 दिन लगते हैं और गाय के गोबर की जरूरत कुल कच्चे माल के छठवें हिस्से के बराबर है। जरूरी कच्चा माल आसपास से इकट्ठा किए गए सूखे पदार्थ हैं, इसे कचरे के खास इंतजाम के रूप में देखा जा सकता है, न कि सिर्फ मिट्टी की स्थिरता में हस्तक्षेप की शक्ल में।”
बर्कले खाद की गुणवत्ता का मूल्यांकन उसके रंग, नमी, तापमान और गंध के मापदंडों पर किया जाता है। नकवी ने बताया, “मेरा मानना है कि हम अभी भी परीक्षण के चरण में हैं। इस खाद के वास्तविक प्रभाव को समझने के लिए हमें कम से कम तीन साल बाद परिणामों का परीक्षण करना होगा।”
बर्कले खाद का पायलट परीक्षण
बर्कले खाद के फायदों का आकलन करने के लिए, किसान पहले से ही अपने खेतों में इसका टेस्ट कर रहे हैं। बहराइच जिले के उर्रा गांव की एक किसान रामावती ने अपने लौकी के खेत को दो भागों में बांट दिया है। उन्होंने एक भाग में बर्कले खाद और दूसरे भाग में नियमित उर्वरक का इस्तेमाल किया है।
रामावती ने गाँव कनेक्शन को बताया, “बर्कले खाद के साथ की गई खेती हरी थी और उसी अवधि के अंदर पौधे खेत के दूसरे हिस्से की तुलना ऊंचाई में लम्बे थे।”
चुनौतियों का हल निकाला जा रहा
किसानों ने कहा कि बर्कले खाद तैयार करना काफी मेहनत का काम है क्योंकि यह शुरुआती 4 दिनों के बाद खाद की संरचना बदलने के साथ मानव संसाधनों की मांग करती है जब तक कि यह 18 दिनों में तैयार न हो जाए।
गर्मियों में हरा चारा भरपूर मात्रा में उपलब्ध नहीं होता है, जिसे खाद बनाने की प्रक्रिया में डालना पड़ता है। इसी तरह बरसात के मौसम में सूखा कचरा ढूंढना मुश्किल होता है और खाद को बारिश के पानी से बचाने की जरूरत होती है।
मीरा कुमारी बहराइच जिले के उर्रा गाँव की 32 वर्षीय किसान हैं, जिन्होंने इस साल जनवरी में बर्कले खाद तैयार की थी। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, “गर्मियों में हरे चारे की कमी हो जाती है और इसलिए मैं दोबारा खाद बनाने में असमर्थ हूं।”
हालांकि, किसानों को लगता है कि बर्कले खाद के लाभ इसकी समयबद्धता और लागत-प्रभावशीलता के कारण चुनौतियों से कहीं अधिक हैं। नकवी ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हमने अलीगढ़, बनारस, मिर्जापुर, चंदौली, लखीमपुर खीरी और बस्ती जिलों में भी इस पद्धति की ट्रेनिंग शुरू की है।”
यह स्टोरी ट्रांसफॉर्म रूरल इंडियन फाउंडेशन के सहयोग से की गई है।
अनुवाद: मोहम्मद अब्दुल्ला सिद्दीकी