अपने खेत में आप भी अगर बैंगन, आलू, भिंडी या टमाटर जैसी सब्ज़ियाँ लगाईं हैं और अचानक पौधा ख़राब हो जा रहा है तो कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर सुभाष पालेकर की ये तरकीब राम बाण का काम कर सकती है।
उनके मुताबिक गेंदे की जड़ो में ऐसा रसायन होता है जो मिट्टी के ख़राब कीटों को पनपने नहीं देता है।
“गेंदे की जड़ों से निकलने वाले बायोएक्टिव रसायन मिट्टी के ख़राब कीटों को ख़त्म करने में काफी कारगर है। अल्फा टर्थिएनिल नाम के केमिकल कम्पाउंड को प्राकृतिक दवा समझिए जो आपकी बागवानी को ख़राब नहीं होने देता है।” डॉक्टर सुभाष पालेकर ने गाँव कनेक्शन से कहा।
“गेंदे के पौधे से उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है। हम भारत की मिट्टी की बात करें तो ऑर्गेनिक कार्बन यहाँ सही मात्रा में नहीं है। अगर ये 5 फीसदी से ज़्यादा है तब तो अच्छा है, लेकिन पिछले कुछ सालों में देश के कई हिस्सों में मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा 0.5 फीसदी या उससे भी कम पर पहुँच गई है जो खतरनाक स्थिति है। हमारे यहाँ (सुभाष पालेकर कृषि अनुसंधान केंद्र ) तीन प्रतिशत है।”
“दरअसल आपकी सब्ज़ी के पौधे में मिट्टी से जो कीड़ा पहुँचता है वो उसे बढ़ने नहीं देता है, चूस लेता है फिर पौधा कमजोर हो जाता है। दो तरह का कीड़ा होता है,एक अच्छा दूसरा ख़राब। हम यहाँ खराब वाले की बात कर रहे हैं।” डॉक्टर पालेकर ने कहा।
गेंदे के पौधे में कई औषधीय गुण होते हैं। इसके फूल में विटामिन ए, विटामिन बी, मिनरल्स और एंटीऑक्सिडेंट होते हैं, जो बालों को बढ़ने में में मदद करते हैं। यह एंटी बैक्टीरियल और एंटी फंगल भी होता है। इसलिए संक्रमण के कारण होने वाले हेयर फॉल (बाल गिरने) को यह रोक देता है।
“गेंदे को लगाने से हर तरीके से फायदा है। आपकी फ़सल को इसकी जड़ से बचाव तो होता ही है इसके फूल से आमदनी होती है वो अलग। खाली पड़ी जमीन पर गेंदे की खेती करके काफी अच्छी कमाई कर सकते हैं। ” नेचुरल फार्मिंग को बढ़ावा देने वाले डॉक्टर सुभाष पालेकर ने कहा।
अगर किसान नियमित फसल के साथ अलग से कुछ कमाना चाहते हैं तो वे खाली पड़ी ज़मीन पर गेंदे की खेती कर सकते हैं। गेंदे के फूलों की बाज़ार माँग को देखते हुए किसानों के लिए इसका उत्पादन फायदेमंद साबित हो सकता है। अगर आपके पास 1 हेक्टेयर भी ज़मीन है तो इसकी खेती से हर साल करीब 15 लाख रुपए तक की कमाई हो सकती है।
खास बात ये है कि 45 से 60 दिनों के अंदर इसकी फसल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसे बारहमासी पौधा भी कहा जाता है। यानी थोड़ा ध्यान दिया जाए तो साल भर में किसान तीन बार इसकी खेती कर सकते हैं।