जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहे हिमाचल के सेब किसान, नई फ़सलों की ओर कर रहे रुख़

आप उत्तर भारत में रहते हैं या दक्षिण में, पूर्व में रहते हैं या फ़िर पश्चिम के किसी राज्य में; अगर आपसे कहा जाए कि आने वाले समय में आप तक सेब नहीं पहुँचेगा तो शायद आपको यकीन न हो, लेकिन जलवायु परिवर्तन से परेशान हिमाचल के सेब किसान सेब की खेती छोड़ रहे हैं।
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कोटगढ़ (हिमाचल प्रदेश)

हिमाचल प्रदेश की पहाड़ियों में बसा कोटगढ़, जहाँ भारत की सेब क्रांति की शुरुआत हुई थी,  लेकिन वहाँ अब एक नई बागवानी क्रांति उभर रही है। शताब्दी से भी ज्यादा वक्त से रॉयल और रेड डिलीशियस सेबों ने यहाँ की आर्थ‍िक तस्वीर गढ़ी है, लेकिन अब किसान चेरी, प्लम, आड़ू, बादाम, परिसीमन, कीवी और ब्लूबेरी जैसे फलों की ओर रुख कर रहे हैं। कारण हैं- बढ़ती गर्मी, कम होती सर्दियाँ, बढ़ती लागत और कम देखभाल में मिलने वाला बेहतर मुनाफा।

हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से 80 किलोमीटर दूर कोटगढ़ की पहाड़ियों में हुई थी भारत के सेब उद्योग की शुरुआत,  जहाँ पर अमेरिकी मिशनरी सैमुअल इवांस स्टोक्स ने 1904 में कोटगढ़ में बसने के बाद 1916 में लुइसियाना से सेब के पौधे लगाए थे। यहाँ की सर्द जलवायु और भारी बर्फबारी से सेब को 1000–1600 घंटे की चिलिंग अवधि (45°F से कम तापमान) मिलती थी, जो इसके बढ़ने के लिए ज़रूरी होती है। यह पहल इतनी सफल रही कि गेहूँ और मक्का की जगह बागवानी ने ले ली और कोटगढ़-थनेधर जैसे इलाके दक्षिण एशिया के समृद्ध ग्रामीण क्षेत्रों में शामिल हो गए।

कोटगढ़ के 30 वर्षीय किसान आदित्य ग्रैक कहते हैं, “अब सर्दियों में बर्फ नहीं पड़ती। मेरी फसल आधी रह गई है, और पिछले साल की बारिश ने वो भी बर्बाद कर दी।”

2021–22 में सेब की खेती 1.15 लाख हेक्टेयर में फैली थी और राज्य के कुल फल उत्पादन का 81% हिस्सा थी, जिसमें अकेले शिमला से 80% सेब आते थे। 2,900 करोड़ रुपये की इस सेब अर्थव्यवस्था से 12 लाख किसान जुड़े हुए हैं।

लेकिन अब जलवायु परिवर्तन इस विरासत को चुनौती दे रहा है। वाई.एस. परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के अनुसार सर्दियाँ कम हो रहीं हैं  और बर्फबारी घट रही है, जिससे चिलिंग अवधि कम हो गई है और कुल उत्पादन 40–50% तक घटा है। 2025 के एक अध्ययन के अनुसार, बीते दो दशकों में शिमला और कुल्लू जैसे जिलों में तापमान में 1.8–4.1°C की बढ़ोतरी हुई है और बर्फबारी सालाना 36.8 मिमी कम हुई है। सेब का उत्पादन जो 2010–11 में 8.92 लाख टन था, वह 2023 में घटकर 4.84 लाख टन रह गया। 2023 की ओलावृष्टि और भारी बारिश से 2,500–3,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।

लागत में वृद्धि, मुनाफे में गिरावट

कृषि लागत भी किसानों की परेशानी बढ़ा रही है। खाद की कीमतें 800–1,100 रुपये प्रति 50 किलो से बढ़कर 1,500–2,000 रुपये हो गई हैं और कीटनाशक के दाम दोगुने होकर 800–900 रुपये प्रति ड्रम हो गए हैं। 

कृषि अर्थशास्त्री नीरज सिंह कहते हैं, “सेब और प्लम दोनों का दाम 50–70 रुपये प्रति किलो है, लेकिन प्लम की लागत बहुत कम है।”

कुल्लू और शिमला में फलों से होने वाली आय पिछले एक दशक में 27% घटी है, जबकि लाहौल-स्पीति जैसे ऊंचाई वाले इलाकों में यह 10% बढ़ी है। साथ ही, 2018–19 में भारत ने 2.83 लाख टन सेब आयात किए, जो स्थानीय किसानों पर अतिरिक्त बोझ बन गया।

दूसरे फलों की ओर रुख

कम चिलिंग अवधि और लागत वाले फलों की ओर किसान अब तेजी से बढ़ रहे हैं। कोटगढ़ के किसान और प्लम ग्रोवर्स फोरम के अध्यक्ष दीपक सिंघा कहते हैं, “हम रेड ब्यूटी, ब्लैक एंबर, फ्रायर जैसे प्लम की किस्में आजमा रहे हैं। साथ ही ब्लूबेरी और एवोकाडो पर भी प्रयोग कर रहे हैं।”

उदाहरण के लिए, अजय ठाकुर पिछले आठ साल से चेरी, प्लम और बादाम की खेती कर रहे हैं और कहते हैं कि यह सेब से बेहतर है। ब्लूबेरी तो 1,500 रुपये किलो तक बिकती है। 

कृषि वैज्ञानिक उषा शर्मा कहती हैं, “विविध फसलें मिट्टी की सेहत बेहतर करती हैं और जलवायु जोखिम को कम करती हैं।”

2023 में सेब की खेती का रकबा 1.15 लाख हेक्टेयर था, लेकिन उत्पादन घटकर 4.84 लाख टन रह गया। वहीं परिसीमन की खेती 2013–14 के 403 हेक्टेयर से बढ़कर 2022–23 में 1,000 हेक्टेयर हो गई। कीवी, लीची और जैकफ्रूट की खेती भी बढ़ी है। चेरी का उत्पादन 2015 में 202 टन से बढ़कर 2023 में 981 टन हो गया है।

नीतिगत बदलाव और क्या है भविष्य

स्टोन फ्रूट्स की खेती को बढ़ावा देने के लिए राज्य बागवानी विभाग रूस में विकसित क्रिम्स्क 86 रूटस्टॉक किसानों को देना शुरू करेगा, जो रोग प्रतिरोधक है और नए जलवायु के अनुकूल है।

हिमाचल के बागवानी निदेशक विनय सिंह कहते हैं, “सेब महत्वपूर्ण है, लेकिन अब चेरी, कीवी और परिसीमन जैसी फसलें महानगरों और पश्चिम एशिया में लोकप्रिय हो रही हैं।” 

हालांकि, छोटे किसानों के लिए यह बदलाव आसान नहीं है—नई पौध, सिंचाई, प्रशिक्षण और कोल्ड स्टोरेज की ज़रूरतें बढ़ रही हैं।

बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी विश्व बैंक की सहायता से हाई डेंसिटी सेब बागवानी योजना चला रहे हैं, जिसमें गाला और फूजी जैसी कम चिलिंग किस्मों को बढ़ावा दिया जा रहा है।

पूर्व एचपीएमसी उपाध्यक्ष प्रकाश ठाकुर कहते हैं, “यह परियोजना किसानों की मुश्किलें दूर करने के लिए बनाई गई थी, लेकिन अब भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।”

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