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किसानों के लिए फसल उत्पादन के बाद प्रबंधन को किफायती बनाने के लिए सस्टेनेबल कूलिंग

अपर्याप्त कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं के कारण भारत में किसानों को सालाना लगभग 12,520 मिलियन अमरीकी डॉलर का नुकसान होता है। BASE और Empa का 'योर वर्चुअल कोल्ड चेन असिस्टेंट' प्रोजेक्ट भारतीय किसानों के लिए सस्टेनेबल कूलिंग को सुलभ, किफायती और फसल के बाद के प्रबंधन का एक जरूरी हिस्सा बनाने जा रहा है।
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भारत दूध, दाल और जूट का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है, तो वहीं चावल, गेहूं, गन्ना, मूंगफली, सब्जियां, फल और कपास के उत्पादन में दूसरे नंबर पर आता है। लेकिन खाद्य उत्पादन के इतने उच्च स्तर के बावजूद देश 2020 ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 107 देशों में से 94वें स्थान पर आया।

इसकी एक बड़ी वजह खेतों की उपज का एक बड़ा हिस्सा उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंच पाना है। दरअसल ये उपज उचित रखरखाव न हो पाने की वजह से उपभोक्ता तक पहुंचने से पहले ही खराब हो जाती है। उपज के बाद के होने वाले इन नुकसानों के आंकड़े अलग-अलग हैं। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) ने भारत में 8.3 बिलियन अमरीकी डालर के ताजे फलों और सब्जियों के 40 प्रतिशत वार्षिक नुकसान की सूचना दी है। उधर केंद्र सरकार के फूड कॉरपोरशन ऑफ इंडिया ने इस नुकसान का आकलन 15 प्रतिशत किया है। हालांकि नुकसान के आंकड़े अलग-अलग हैं, फिर भी वे देश में भूख और कुपोषण को कम करने के लिए तत्काल कार्रवाई की मांग करने के लिए पर्याप्त चिंताजनक हैं।

फसल की कटाई के बाद का नुकसान, किसानों के लिए एक बड़े आर्थिक नुकसान में तब्दील हो जाता है। कूल कोएलिशन के मुताबिक, अपर्याप्त भंडारण सुविधाओं और बिजली की बुनियादी ढांचे की कमी के कारण हर साल भारत में किसानों को फसल के बाद लगभग 12,520 मिलियन अमरीकी डॉलर का नुकसान होता है। यह चिंताजनक है क्योंकि देश में लगभग 82 फीसदी छोटे और सीमांत किसान हैं, जिनके पास दो हेक्टेयर से कम की जमीन है।

मार्च 2017 में प्रकाशित NITI Aayog का पॉलिसी पेपर – किसानों की आय दोगुनी करना – बताता है कि कृषि उत्पादन में वृद्धि का परिणाम हमेशा कृषि आय में वृद्धि नहीं होता है। रिपोर्ट में लिखा है, “अनुभवों (कृषि नीति के संदर्भ में, जिसमें सालों से कृषि उत्पादन बढ़ाने पर ज्यादा ध्यान दिया गया है और किसानों की आजीविका में सुधार पर उनकी नजर कम ही रही) से पता चलता है कि कुछ मामलों में तो उत्पादन के बढ़ने से किसानों की आय में बराबर की बढ़ोतरी होती है, लेकिन कई में मामलों में किसानों की आय उतनी नहीं बढ़ती, जितनी की उत्पादन में वृद्धि हुई होती है. कुल मिलाकर नतीजा यह रहता है कि किसानों की आय कम रह जाती है, जो खेती से जुड़े परिवारों में बढ़ती गरीबी से साफ नजर आती है.”

किसानों की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए व्यापार के तरीकों में सुधार करना होगा – यह एक ऐसा लक्ष्य (मार्च 2017 में नीति आयोग की रिपोर्ट में भी उल्लेख किया गया है) है जिसे देश की कोल्ड चेन के बुनियादी ढांचे को बढ़ाकर पाया जा सकता है. यह किसानों की सौदेबाजी करने की संभावनाओं को काफी हद तक बढ़ा देता है, उनका विस्तार करता है। अगर किसान के पास बेहतर कोल्ड स्टोरेज की सुविधा होगी तो वह अपनी फसलों को तब तक रोके रख सकता है, जब तक कि उसे इसके लिए सही कीमत न मिल जाए।

मौजूदा समय में 25 से 35 फीसदी के बीच की उपज उचित रेफ्रिजरेशन की कमी और सप्लाई चेन में आने वाली अन्य रूकावटों के कारण बर्बाद हो जाती है। भारत में उत्पादित फूड का सिर्फ छह प्रतिशत ही कोल्ड चेन के जरिए बेचा जाता है।

2020 की शुरुआत में देश में एक करोड़ 26 लाख टन कोल्ड स्टोरेज क्षमता की कमी थी। यह जानकारी जल्द खराब होने वाले कृषि और बागवानी उत्पादों के लिए कोल्ड चेन स्थापित करने वाले भारत सरकार के एक स्वायत्त निकाय ‘नेशनल सेंटर फॉर कोल्ड चेन डेवलपमेंट’ (NCCD) ने दी थी।

देश में फसल की कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने के लिए, बेसल एजेंसी फॉर सस्टेनेबल एनर्जी (BASE) और Empa (द स्विस फेडरल लेबोरेटरीज फॉर मैटेरियल्स साइंस एंड टेक्नोलॉजी) ने मिलकर एक प्रोजेक्ट – योर वर्चुअल कोल्ड चेन असिस्टेंट (your VCCA) को शुरू किया है। डेटा साइंस, डिजिटलाइजेशन और बिजनेस मॉडल इनोवेशन का इस्तेमाल करके, योअर वीसीसीए का मकसद छोटे किसानों को साफ-सुथरे डिसेंट्रलाइज्ड कोल्ड स्टोरेज सुविधाएं देने के साथ-साथ, कटाई के बाद फसल को लंबे समय तक भंडारण में बनाए रखने की महत्वपूर्ण जानकारी देना है।

बेस के सीनियर सस्टेनेबल एनर्जी फाइनेंस विशेषज्ञ थॉमस मोटमैन ने गांव कनेक्शन को बताया, “दुनिया भर में कोल्ड चेन के बुनियादी ढांचे में कमी के चलते ताजा उपज का एक तिहाई हिस्सा बर्बाद हो जाता है। ऐसा नहीं है कि जलवायु के अनुकूल कूलिंग टेक्नोलॉजी उपलब्ध नहीं है. लेकिन इलेक्ट्रिसिटी तक पहुंच की कमी, उच्च-अग्रिम लागत, रखरखाव न हो पाना, सीमित फाइनेंस के विकल्प और उसकी जानकारी न होना, इसके रास्ते की सबसे बड़ी बाधाएं है. इनोवेटिव बिज़नेस मॉडल इन बाधाओं को दूर करने में मदद कर सकता है।”

BASE और Empa पहले उन स्थानीय साझेदारों की पहचान करते हैं जो ‘पे-पर यूज़ मॉडल के तौर पर कूलिंग’ प्रोजेक्ट पर काम करने के इच्छुक हैं। मौजूदा समय में, योर वीसीसीए प्रोजेक्ट भारत में तीन जगहों पर शुरू किए जा रहे हैं – बिहार में मुजफ्फरपुर, ओडिशा में राउरकेला और हिमाचल प्रदेश में शिलादेश (शिमला जिला)। इन्हें स्थानीय क्लीन टेकनॉलोजी कंपनियों के साथ साझेदारी में लागू किया जा रहा है. इसका मकसद फसल के बाद के खाद्य नुकसान को कम करना और किसानों की आय में वृद्धि करना है। इस प्रोजेक्ट में कूल क्रॉप टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड (हिमाचल प्रदेश), कोयल फ्रेश प्राइवेट लिमिटेड (ओडिशा), और ऊर्जा डेवलपमेंट सॉल्यूशंस लिमिटेड (बिहार) शामिल हैं।

योर वीसीसीए प्रोजेक्ट: कटाई के बाद के नुकसान को कम करना

योअर वीसीसीए प्रोजेक्ट जनवरी 2021 में भारत में शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य देश में खाद्य सुरक्षा में योगदान देना, फसल के बाद के नुकसान को कम करना और छोटे जोत किसानों की आमदनी को बढ़ाना है। योअर वीसीसीए प्रोजेक्ट में दो घटक शामिल हैं. इसमें से पहला एक इनोवेटिव पे-पर-यूज बिजनेस मॉडल है, जिसे कूलिंग ऐज़ सर्विस (CaaS) कहा जाता है. यह किसानों के लिए कोल्ड स्टोरेज को अपनाने में आने वाली मार्केट बाधाओं को दूर करता है. दूसरा है एक डेटा-विज्ञान-आधारित मोबाइल एप जिसे कोल्डिवेट कहा जाता है। यह CaaS के कार्यान्वयन को सहज बनाने में मदद करता है।

यह बिजनेस मॉडल उस पारंपरिक बिक्री मॉडल के बिलकुल विपरीत है, जिसमें किसान एक कंपनी से कूलिंग यूनिट खरीदता है और फिर उसका मालिक बन, पूरी जिंदगी उसके रख-रखाव में बिता देता है। दरअसल CaaS सर्विटाइजेशन मॉडल पर आधारित है। मतलब यहां उपभोक्ता को प्रोडेक्ट के पैसे नहीं देने होते हैं बल्कि उसकी सर्विस के लिए वह भुगतान करता है। इस मॉडल में कोल्ड रूम (आमतौर पर सौर ऊर्जा से संचालित और डिसेंट्रलाइज) का स्वामित्व स्थानीय प्रोवाइडर के हाथों में होता है। दूसरे शब्दों में, ऑपरेटर कोल्ड रूम के संचालन के लिए भुगतान करता है और बदले में अंतिम उपयोगकर्ताओं, जैसे सीमांत किसानों और छोटे समय के व्यापारियों से मामूली शुल्क लेकर उन्हें अपनी सेवा देता है। सर्विटाइजेशन मॉडल ग्राहकों को महंगे उपकरण लगाने में आने वाले खर्च से बचाता है, साथ ही संचालन और तकनीक के जोखिमों को कम करता है। यह समग्र उपयोगिता लागत को भी कम करता है।

उपकरण के रखरखाव, मरम्मत और अपडेट की जिम्मेदारी तकनीकी प्रोवाइडर की होती है. ऐसे में अंतिम उपयोगकर्ता अपने मुख्य व्यवसाय पर ध्यान दे सकता है। ऊर्जा-कुशल और सस्टेनेबल तकनीक तक पहुंच की सुविधा के लिए सर्विटाइजेशन के इस्तेमाल से देशों को अपने जलवायु लक्ष्यों में योगदान देते हुए कूलिंग की जरूरत को पूरा करने में मदद मिलती है।

कोल्ड्टीवेट ऐप

योर वीसीसीए प्रोजेक्ट का अन्य घटक – कोल्डटीवेट ऐप – यह सुनिश्चित करता है कि जब एक बार किसानों के पास कूलिंग यूनिट तक पहुंच हो जाए, तो वे इसके इस्तेमाल से ज्यादा से ज्यादा फायदा उठा सकें। कोल्ड्टीवेट रियल टाइम सेंसर डेटा (ठंडे कमरे में तापमान और आर्द्रता) और उपज की प्रारंभिक गुणवत्ता के आधार पर फसल की शेल्फ-लाइफ (कोल्ड स्टोरेज से परिवेश के तापमान पर भंडारण से) बढ़ाने के बारे में बताता है। इस जानकारी के बाद, किसानों के पास दिन के आखिर में उपज को नुकसान में न बेचने का विकल्प होता है और वे अपनी फसल को बेहतर ऑफ-सीजन कीमतों को सुरक्षित करने के लिए लंबे समय तक स्टोर कर सकते हैं. साथ ही उनके पास अपनी फसल की गुणवत्ता खराब होने से पहले उसे बेचने की पूरी जानकारी होती है।

बेस में कैपेसिटी बिल्डिंग अधिकारी सिमरन सिंह ने बताया, “ऐप को तीन लोगों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है – कोल्ड स्टोरेज की सुविधा देने वाले स्थानीय उद्यमी, कोल्ड रूम का संचालन करने वाले समुदाय के सदस्य और सबसे महत्वपूर्ण छोटे किसान और छोटे व्यापारी हैं जो इन कूलिंग रूम का इस्तेमाल करते हैं। ऐप का इस्तेमाल फिलहाल तो कूलिंग सर्विस देने वाली कंपनियां ही कर रही हैं, लेकिन साल के आखिर तक किसानों के लिए इसे उपलब्ध करा दिया जाएगा।”

BASE में डेटा विज्ञान और डिजिटलीकरण विशेषज्ञ रॉबर्टा ने समझाया “ऐप का मौजूदा संस्करण दो प्रमुख विशेषताओं के जरिए बिजनेस मॉडल को लोगों के बीच लोकप्रिय बनाता है: ठंडे कमरे में चेक-इन और चेक-आउट को डिजिटल करना और फसलों की बची हुई शेल्फ-लाइफ के बारे में पहले से जानकारी देना”

भंडारण की गई फसलों की शेल्फ लाइफ कितनी है, इसके बारे में बताने के अलावा ऐप के नए संस्करणों में बाजार मूल्य के पूर्वानुमान भी शामिल किए जाएंगे. ऐप कोल्ड रूम के आसपास के विभिन्न बाजारों में वस्तुओं की कीमत का पूर्वानुमान लगाएगा। कोल्ड रूम के यूजर को पिक अप के लिए बचे हुए समय के साथ-साथ यह जानकारी भी दी जाएगी कि भंडारण में रखी फसलों को कब और कहां बेचना है।

इवेंजलिस्ट ने बताया, “ऐप के अभाव में तकनीकी प्रोवाइड मैन्युअली कोल्ड रूम का संचालन करता है. इसमें गलती होने की संभावना ज्यादा होती है और यूजर आसानी से अपनी उपज की निगरानी नहीं कर पाता। कोल्ड रूम लेनदेन को डिजिटल बनाना, बिजनेस मॉडल को सहज बनाने के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है। यह किसानों के बीच कोल्ड रूम का इस्तेमाल करने के लिए विश्वास पैदा करता है।”

कोल्ड्टीवेट में एकीकृत नॉलेज हब में हर वस्तु के लिए ऑपटिमल भंडारण तापमान और औसत भंडारण समय के बारे में जानकारी होती है. इसमें नवीनतम शोध के अनुसार कटाई के बाद के प्रबंधन के बेहतरीन तरीकों को नियमित रूप से विस्तारित और समृद्ध किया जाएगा। कोल्ड स्टोरेज यूजर और ऑपरेटरों के पास हमेशा इस महत्वपूर्ण जानकारी तक पहुंच हो, इसके लिए नॉलेज हब को ऑफ़लाइन भी उपलब्ध कराया जाएगा।

नॉलेज हब में ऐसी जानकारी है जो कोल्ड रूम को ऑपरेट और इस्तेमाल करने की सुविधा प्रदान करती है. यह ऑपरेटरों को बताया है कि सभी फसलों की देखभाल बेहतर तरीके से की जा रही है और उसकी उच्च गुणवत्ता को बनाए रखा हुआ है (ताकि किसानों को उनकी उपज की सही कीमत मिल सके)।

1.26 करोड़ टन कोल्ड स्टोरेज क्षमता की कमी

योअर वीसीसीए प्रोजेक्ट के महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक, फलों और सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और समुद्री, मांस और पोल्ट्री उत्पादों का पर्याप्त उत्पादन होने के बावजूद, भारत में इन उत्पादों के लिए कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं की भारी कमी है। ये सभी उत्पाद तापमान के प्रति संवेदनशील हैं और इनके भंडारण और परिवहन के लिए विशिष्ट तापमान रेंज की जरूरत होती है।

नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज की 2019 पॉलिसी ब्रीफ नंबर 5 ने निष्कर्ष निकाला कि भारत में सभी तरह की फसल की कटाई के बाद होने वाले नुकसान का प्रमुख कारण भंडारण है. जल्दी खराब होने वाले माल का नुकसान सरप्लस स्टॉक के कारण होता है और ऐसा भंडारण क्षमता से अधिक, अनुचित भंडारण तरीकों का इस्तेमाल, अतिरिक्त स्टॉक के परिसमापन में बाधा और कोल्ड स्टोरेज के बुनियादी ढांचे में निवेश करने में निजी क्षेत्र की रुचि की कमी की वजह से है।

सितंबर 2020 में, भारत सरकार के तहत कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने देश की कोल्ड स्टोरेज क्षमता और बुनियादी ढांचे के बारे में एक बयान जारी किया। जारी की गई प्रेस रिलिज के मुताबिक, देश में खराब होने वाले फलों और सब्जियों के भंडारण के लिए 37.425 मिलियन मीट्रिक टन की संयुक्त क्षमता वाले केवल 8,186 कोल्ड स्टोरेज हैं। यह हम पहले ही बता चुके हैं कि 2020 की शुरुआत में देश में 12.6 मिलियन टन कोल्ड स्टोरेज क्षमता की कमी थी।

मौजूदा समय में 95 फीसदी कोल्ड स्टोरेज का स्वामित्व निजी क्षेत्र के हाथों में हैं, तीन प्रतिशत सहकारी समितियों के पास हैं, और बाकी का दो प्रतिशत सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के पास हैं।

अड़सठ प्रतिशत कोल्ड स्टोरेज क्षमता आलू के लिए इस्तेमाल की जाती है जबकि 38 प्रतिशत मल्टी-कमोडिटी कोल्ड स्टोरेज क्षमता है। ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में मल्टी-कमोडिटी रूम की जरूरत है क्योंकि किसान तेजी से डबल और मल्टीपल क्रॉपिंग की तरफ बढ़ते जा रहे हैं। इसके अलावा, कोल्ड रूम की उपलब्धता किसानों को एकल फसलों (आमतौर पर नकदी फसलों) से आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित भी करती है।

आगामी कोल्ड रूम्स को मल्टी-कमोडिटी स्टोरेज को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किए जाने की जरूरत है। योअर वीसीसीए कई तरह की बागवानी फसलों के भंडारण के लिए डिसेंट्रलाइज रूम की सुविधा के जरिए मल्टी-कमोडिटी रूम के इस मौजूदा अंतर को पूरा करता है।

मल्टी-कमोडिटी कोल्ड रूम ऑपरेट करने में सबसे बड़ी दिक्कत यह जानना है कि अलग-अलग तरह की फसलों के लिए क्या तापमान बनाए रखना है, किन फसलों को एक साथ स्टोर नहीं करना है, और विभिन्न प्रकार के फलों और सब्जियों को संभालने में विशेषज्ञता हासिल करना है। कोल्ड रूम संचालकों को इस जानकारी से लैस करने के लिए कोल्ड्टीवेट का नॉलेज हब बनाया गया है. यह हब अलग-अलग तरह की फसलों को स्टोर करने के लिए आदर्श तापमान क्या है, किन फसलों को एक साथ स्टोर नहीं करना है, और फसल के बाद के चरण में विभिन्न फसलों को कैसे संभालना है, इस सभी की जानकारी देता है।

बिहार के दरभंगा में मिथिला यूनियन के चेयरपर्सन एम के ठाकुर ने गांव कनेक्शन को बताया, “हमारे देश को अपने कोल्ड स्टोरेज सिस्टम में बड़े पैमाने पर विकास की जरूरत है। अधिकांश कोल्ड स्टोरेज केवल आलू स्टोर करते हैं, हमें मल्टी कमोडिटी स्टोरेज की जरूरत है और वह भी किसानों के आस-पास के इलाकों में।” मिथिला यूनियन एक कुशल आपूर्ति श्रृंखला नेटवर्क बनाने के लिए बिहार स्टेट वेजिटेबल प्रोसेसिंग एंड मार्केटिंग स्कीम के तहत काम करती है।

ठाकुर के मुताबिक, वर्किंग कैपीटल की कमी के कारण देश में कोल्ड स्टोरेज को चालू रखना बड़ा मुश्किल है। यह समस्या विशेष रूप से छोटे किसानों के बीच कोल्ड रूम को प्रोत्साहित करने और सक्षम बनाने के लिए बिजनेस मॉडल इनोवेशन की जरूरत को रेखांकित करती है। सौर चालित कोल्ड रूम की अग्रिम लागत काफी ज्यादा होने के बावजूद, ग्रिड-आधारित या जनरेटर-चालित कोल्ड रूम की तुलना में इन्हें ऑपरेट करना कम खर्चीला होता है।

मॉडल का मकसद किसानों के लिए बिक्री सुनिश्चित करने के लिए फॉरवर्ड मार्केट लिंकेज (कोल्ड रूम से उपभोक्ताओं तक) को एकीकृत करना है, जोकि कोल्ड रूम के लिए किसानों के बीच विश्वास को और मजबूत बनाने और रूम को चालू रखने के लिए राजस्व लाने के लिए जरूरी है।

रुचिका सिंह और श्वेता लांबा ने वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट, इंडिया में 2021 में प्रकाशित एक पेपर में फ़ूड लॉस एंड वेस्ट इन इंडिया: द नोन्स एंड द अननोन्स नामक एक पेपर में फसल की कटाई के बाद उसके नुकसान का विश्लेषण किया था।

सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हमने कटाई के बाद के नुकसान के तीन मुख्य कारणों की पहचान की: खराब भंडारण सुविधाएं, खराब परिवहन और कटाई तकनीक।”

इस बीच कनाडा की एक निवेश प्रबंधन कंपनी कोलियर्स ने 2023 तक भारतीय कोल्ड चेन सेक्टर में 14 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) का अनुमान लगाया है। ऊपर की ओर बढ़ता हुआ यह रूझान ऑनलाइन किराना, फार्मास्यूटिकल्स बिक्री में वृद्धि और COVID-19 टीकाकरण अभियान से प्रेरित है।

राज्यवार कोल्ड स्टोरेज नेटवर्क

इन कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं के राज्यवार वितरण में भारी असंतुलन है। राष्ट्रीय कोल्ड स्टोरेज क्षमता का लगभग 33 प्रतिशत उत्तर प्रदेश में स्थित है, लेकिन वहां इसका उपयोग बड़े पैमाने पर आलू के भंडारण के लिए किया जाता है।

अक्टूबर 2020 के एक पेपर, कोल्ड स्टोरेज इन इंडिया: चुनौतियां और संभावनाएं में बताया गया कि कोल्ड स्टोरेज (बागवानी उपज के लिए) का लगभग 15 प्रतिशत गुजरात में है। इसके बाद पंजाब, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और ओडिशा का नंबर आता है, जहां कोल्ड स्टोरेज की क्षमता राज्य की प्रति बागवानी उपज से कम से कम 100,000 टन अधिक होनी चाहिए। हालांकि, बड़ी मात्रा में निर्यात योग्य उत्पादों वाले महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में पर्याप्त कोल्ड स्टोरेज क्षमता नहीं है। बागवानी उत्पादों के मामले में कोल्ड स्टोरेज के मामले में बिहार, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में सबसे खराब स्थिति है।

देश में कोल्ड स्टोरेज सुविधाएं स्थापित करने के मुद्दे में सरकार की बढ़ती दिलचस्पी और विकेंद्रीकृत कूलिंग में बदलाव से इन सुविधाओं के राज्य-वार वितरण में असंतुलन को दूर करने में मदद मिल सकती है।

तीन हिस्सों वाली सीरीज का यह पहला भाग है, जिसे बेसल एजेंसी फॉर सस्टेनेबल एनर्जी के सहयोग से पूरा किया गया है। सीरीज की अगली दो स्टोरी मुजफ्फरपुर (बिहार) और राउरकेला (ओडिशा) में योअर वीसीसीए प्रोजेक्ट पर आधारित होंगी।

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