इस साल राजस्थान और हरियाणा जैसे कई राज्यों में गुलाबी सुंडी ने कपास की खेती बर्बाद कर दी है, यही नहीं कई दूसरे रोगों और कीटों की वजह से भी कपास किसानों को अक्सर नुकसान उठाना पड़ता है। ऐसे में किसान कपास की देसी प्रजाति की बुवाई करके नुकसान से बच सकते हैं।
कई अध्ययनों से पता चला है कि देसी कपास की प्रजाति ‘गोसिपियम आरबोरियम’ कपास की पत्ती मोड़ने वाले वायरस रोग से सुरक्षित है। साथ ही कीटों (सफ़ेद मक्खी, थ्रिप्स और जैसिड्स) और बीमारियों ( बैक्टीरियल ब्लाइट और अल्टरनेरिया रोग) के प्रभाव को सहन कर सकती हैं, लेकिन ग्रे-फफूंदी रोग के प्रति संवेदनशील है।
देसी कपास की प्रजातियाँ नमी को भी सहन कर सकती हैं। यह जानकारी आठ दिसंबर को राज्यसभा में कृषि और किसान कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने एक सवाल का जवाब दिया है।
देश के विभिन्न कपास उत्पादक क्षेत्रों या राज्यों में व्यावसायिक खेती के लिए जारी की गई 77 जी अरबोरियम कपास किस्मों में से, वसंतराव नाईक मराठवाड़ा के वैज्ञानिकों ने चार लंबी रोएंदार किस्में विकसित की हैं। ये किस्में पीए 740, पीए 810, पीए 812 और पीए 837 हैं।
कृषि विद्यापीठ (वीएनएमकेवी), परभणी (महाराष्ट्र) की स्टेपल लंबाई 28-31 मिमी है; और बाकी 73 किस्मों की मुख्य लंबाई 16-28 मिमी की सीमा में है।
कई राज्यों में कपास की खेती की जाती है, इनमें पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, ओडिशा जैसे राज्य हैं।
वसंतराव नाइक मराठवाड़ा, कृषि विद्यापीठ, परभणी भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद – ऑल इंडिया कॉटन रिसर्च प्रोजेक्ट ऑन कॉटन के परभणी केंद्र, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च ऑन कॉटन टेक्नोलॉजी, नागपुर केंद्र ने ऊपरी आधी औसत लंबाई, जिनिंग आउट टर्न, माइक्रोनियर वैल्यू सहित कताई परीक्षणों के लिए देसी कपास की किस्मों का परीक्षण किया है।
देसी कपास स्टेपल फाइबर की लंबाई बढ़ाने के लिए अनुसंधान जारी हैं, साल 2022-23 के दौरान इन किस्मों के 570 किलोग्राम बीजों का उत्पादन किया गया। अगले बुआई सत्र में बुआई के लिए किसानों के पास पर्याप्त मात्रा में बीज उपलब्ध हैं।