गुरेज़ घाटी, जम्मू और कश्मीर। भारी बर्फ़बारी से देश दुनिया से छह महीने तक कटे रहने वाले कश्मीर की गुरेज़ घाटी में सर्दियों ने दस्तक दे दी है; फिर भी आलू किसान बेफिक्र हैं।
वजह है एक खास तकनीक जिससे यहाँ के किसान अपनी सब्जियों को कई महीनों सुरक्षित रख लेते हैं।
समुद्र तल से लगभग 8,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित उत्तरी कश्मीर के इस हिस्से में आलू जैसी सब्जियों का भंडारण कमाल से कम नहीं है। “आलू की खुदाई के बाद उसे ज़मीन में गहराई तक दबा देते हैं; हमारे पूर्वज यही किया करते थे और हम भी ऐसा ही करते हैं। ” बागतोर गाँव के 48 साल के किसान अब्दुल खालिक ने गाँव कनेक्शन को बताया।
खालिक ने कहा कि महीनों तक दबाए रखने के बाद भी आलू ताज़ा और पौष्टिक बने रहते हैं।
यहाँ रहने वाले लोगों ने सदियों से खुद को सुरक्षित रखने और भरण-पोषण करने के तरीके और साधन ईजाद किए हैं। दुनिया अब उनकी प्राचीन कृषि तकनीकों को बेहतरीन तकनीक के रूप में पहचान रही है जो जलवायु परिवर्तन से पैदा हो रहीं चुनौतियों का जवाब देने में मदद कर सकती हैं।
खालिक उन सैकड़ों किसानों में से एक हैं, जो सर्दियों के लंबे महीनों के दौरान आत्मनिर्भर होने और भोजन से भरपूर रहने के लिए, अभी भी अपनी खेती और भंडारण तकनीकों में पैतृक ज्ञान और परंपराओं को जीवित रखते हैं।
सर्दियाँ आते ही यहाँ किसान काम पर लग जाते हैं। वे गहरी खुदाई करते हैं और आलू को गड्ढों में घास या पुआल से ढककर रखते हैं जिससे अनुकूल तापमान और आर्द्रता बनी रहती है।
कृषि विज्ञान केंद्र, गुरेज़ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. बिलाल ने गाँव कनेक्शन को बताया, “किसान जमीन में गहराई तक जाते हैं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उन्हें कितनी उपज का भंडारण करना है; गुफानुमा भूमिगत भंडारण स्थान में कभी-कभी पाँच हज़ार किलोग्राम तक आलू रखे जा सकते हैं।”
“जमी हुई बर्फ के नीचे आलू को संरक्षित करने का तरीका एक बेहतरीन अभ्यास है जो गुरेज़ में लोगों को क्षेत्र में जलवायु परिस्थितियों से लड़ने और सर्दियों के मौसम में ताजे आलू का उपयोग करने में मदद करता है; लोग बीज के लिए भी आलू को जमीन के नीचे दबा देते हैं, क्योंकि मिट्टी के नीचे का तापमान बाहर की तुलना में अधिक रहता है। ” वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया।
गुरेज घाटी में फसल का मौसम केवल चार से पाँच महीने का होता है, और बर्फबारी खत्म होने के तुरंत बाद, लोग अगले फसल चक्र के लिए फिर से अपने कृषि क्षेत्रों में आलू बोते हैं। ” उन्होंने कहा।
डॉ. बिलाल के अनुसार, गुरेज़ घाटी अपने उच्च गुणवत्ता वाले आलू के लिए जानी जाती है और सालाना 15,000 टन आलू का उत्पादन करती है। उन्होंने बताया, “यहाँ के किसान मिट्टी को समृद्ध करने के लिए जैविक खाद, जंगल के कूड़े और पौधों के अवशेषों का उपयोग करते हैं और इससे आलू के पौधों को आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं।”
लगभग छह महीनों तक, इस क्षेत्र में भारी बर्फबारी से घाटी की ओर जाने वाले ऊंचे दर्रे और पहाड़ी सड़कें बंद हो जाती हैं।
यहाँ उगाई जाने वाली उपज दुर्लभ है क्योंकि बड़ी मात्रा में आपूर्ति बाहर से आती है, जिससे यह और भी ज़रूरी हो जाता है कि यहाँ जो भी उगाया जाए उसे यथासंभव लंबे समय तक बढ़ाया जाए।
“गुरेज़ में तापमान कभी-कभी शून्य से 20 डिग्री सेल्सियस नीचे चला जाता है और सब्जियों का भूमिगत भंडारण सर्दियों में उन्हें ताज़ा रखने का एक प्रभावी तरीका है; हमारे पूर्वजों ने इसे सफलतापूर्वक किया था और हम भी ऐसा ही करते हैं। ” गुरेज़ घाटी के बागतोर गाँव की शाहमीमा बेगम ने गाँव कनेक्शन को बताया।
“सर्दियों के दौरान आलू हमारे लिए पोषण का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं; जमी हुई धरती के नीचे आलू को रखना न केवल उन्हें ताज़ा रखने के बारे में है, बल्कि यह हमारे पूर्वजों की यादों को जीवित रखने का भी एक तरीका है।” गुरेज़ घाटी के 46 वर्षीय किसान मोहम्मद नियाज़ ने गाँव कनेक्शन को बताया।
गुरेज की तुलैल घाटी के किल्शाय गाँव के मुखिया मोहम्मद हुसैन के अनुसार, गुरेज घाटी के लगभग 40,000 लोग सर्दियों के लिए भंडारित सब्जियों पर निर्भर थे। “हर घर आलू का भंडारण करता है, यह उनकी जीवन रेखा है,” 49 वर्षीय मोहम्मद हुसैन ने गाँव कनेक्शन को बताया।
उन्होंने कहा, “ये तकनीक प्राकृतिक रूप से आलू को संरक्षित करती हैं, उनकी ताजगी और पोषण मूल्य बनाए रखती हैं और लागत प्रभावी हैं। वे स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों का उपयोग करती हैं और ऊर्जा की खपत को कम करती हैं।”
डॉ. बिलाल ने बताया कि पेप्सिको जैसी दिग्गज कंपनी ने अपने लेज़ चिप्स ब्रांड के लिए गुरेज़ किसानों से सीधे आलू खरीदने की योजना बनाई है।
आलू की खेती 8,000 साल पहले दक्षिण अमरीका के एंडीज में शुरू की गई थी। 1500 साल के बाद ये यूरोप आया जहाँ से यह पश्चिम और उत्तर की ओर फैला और फिर से अमरीका पहुँचा। कहते हैं भारत में ये 500 साल पहले जहाँगीर के दौर में आया था।