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मोटे अनाजों में छिपा है पोषण का खजाना, जिन्हें अब ‘श्री अन्न’ के नाम से जानते हैं

भारत में कई तरह के मोटे अनाजों का उत्पादन होता है, इन्हें अब "श्री अन्न" के नाम से जाना जाता है, साथ ही भारत को ग्लोबल हब फॉर मिलेट बनाया जा रहा है, चलिए जानते हैं इन मोटे अनाजों की क्या खूबियां होती है।
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भारत सरकार की पहल पर वर्ष 2023 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष (इंटरनेशनल ईयर आफ मिलेट्स) के रूप में घोषित किया गया है। जिसकी शुरुआत एक जनवरी से हो गई है। 

अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स ईयर के चलते पूरे विश्व में मोटे अनाजों के प्रति किसानों और आम नागरिकों में जागरूकता पैदा की जा रही है। भारत सरकार इस दिशा में कई कार्यक्रम आयोजित कर रही है। इसका प्रमुख उद्देश्य लोगों में मोटे अनाजों के प्रति जागरूकता पैदा हो और किसान मोटे अनाज की खेती की ओर आगे आएं। भारत में मोटे अनाज वह भूले बिसरे अनाज हैं, जिनको किसानों द्वारा भुला दिया गया था अब एक बार पुनः किसानों को अपने खेतों में मोटे अनाजों को उगाने के प्रति जागरूक किया जा रहा है, जिससे मोटे अनाज खेत से लेकर आम आदमी की थाली मैं आ सकें।

भारत के लगभग 21 राज्यों में विभिन्न मोटे अनाजों की खेती की जाती है। जबकि विश्व के 131 देशों में किसी न किसी रूप में मोटे अनाजों की खेती होती है। वर्ष 2019 के आंकड़ों के अनुसार विश्व में अफ्रीका में 489 लाख हेक्टर, अमेरिका में 53 लाख हेक्टेर और एशिया में 162 लाख हेक्टर मैं मोटे अनाजों की खेती होती है। इसमें अकेले भारत में 138 लाख हेक्टर भूमि पर में मोटे अनाजों की खेती की जा रही है।

संपूर्ण एशिया एवं अफ्रीका के देशों में 59 करोड़ लोग आज भी परंपरागत रूप से मोटे अनाज को अपने भोजन में शामिल करते हैं। देश के पांच प्रमुख राज्यों में क्रमशः राजस्थान में बाजरा-ज्वार, कर्नाटक में ज्वार-रागी, महाराष्ट्र में रागी-ज्वार और उत्तर प्रदेश व हरियाणा में बाजरा की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है।

मोटे अनाज स्वास्थ्य और पोषण की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं। इसलिए आज मोटे अनाजों को सुपरफूड और पोषक अनाज कहा जा रहा है। बाजरा जैसे मोटे अनाज को भविष्य का अनाज तक कहकर संबोधित किया जा रहा है. इससे बखूबी यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि मोटे अनाज स्वास्थ्य और पोषण की दृष्टि से आने वाले भविष्य में कितना महत्वपूर्ण योगदान देने की क्षमता रखते हैं. भारत में बाजरा, ज्वार, सवा, कुटकी, कोदो, रागी, कंगनी, चीना, कुट्टू एवं चौलाई प्रमुख रूप से, मेजर एवं माइनर मोटे अनाज पैदा किए जाते हैं।

वित्त मंत्री ने बजट पेश करते हुए मोटे अनाजों पर कहा, “मोटे अनाज जिसे श्रीअन्न भी कहते हैं, इसे भी बढ़ावा दिया जा रहा है। हम दुनिया में श्रीअन्न के सबसे बड़े उत्पादक और दूसरे सबसे बड़े निर्यातक हैं। छोटे किसानों ने नागरिकों की सेहत को मजबूत करने के लिए श्रीअन्न उगाया है और बड़ी भूमिका निभाई है। सरकार कपास की प्रोडक्टिविटी बढ़ाने के लिए पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप को बढ़ावा देगी। इससे किसानों, सरकार और उद्योगों को साथ लाने में मदद मिलेगी।”

मोटे अनाजों से होने वाले स्वास्थ्य लाभ मैं मिलेट्स अनाज गैर एसिड बनाने वाले गैर ग्लूटीनस अत्यधिक पौष्टिक और आसानी से पचने वाले खाद्य पदार्थ हैं( बाजरा कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स जीआई से मुक्त होने के कारण यह लंबे समय तक ग्लूकोज की धीमी रिलीज में मदद करता है जिससे मधुमेह के जोखिम को कम किया जा सकता है। सीलिएक रोग से पीड़ित व्यक्ति आसानी से विभिन्न प्रकार के बाजरा को अपने भोजन में शामिल कर सकते हैं। बाजरा कैल्शियम, आयरन, जिंक, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, पोटेशियम जैसे खनिजों का समृद्ध स्रोत होता है। इसमें आहार फाइबर और विटामिन जैसे फोलिक एसिड, विटामिन बी-6, बीटा कैरोटीन और नियासिन की प्रशंसनीय मात्रा पाई जाती है. उच्च मात्रा में लेसिथिन की उपलब्धता तंत्रिका तंत्र को मजबूत करने के लिए उपयोगी होती है। इसलिए बाजरे के नियमित सेवन से कुपोषण को दूर करने में काफी हद तक मदद मिल सकती है।

हालांकि बाजरा टैनिन, फाइटोस्टेरॉल, पॉलीफेनोल्स और एंटीऑक्सीडेंट जैसे फाइटोकेमिकल्स से भरपूर होते हैं, लेकिन इनमें कुछ पोषण विरोधी तत्व होते हैं जिन्हें प्रसंस्करण के माध्यम से कम किया जा सकता है। बाजरा में अनुकूलन की व्यापक क्षमता होती है क्योंकि वह आंध्र प्रदेश के तटीय क्षेत्र से लेकर उत्तर पूर्वी राज्यों और उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों के मध्यम ऊंचाई तक आसानी से पैदा किये जा सकते हैं। बाजरा नमी, तापमान और भारी से लेकर रेतीली बंजर भूमि तक की मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है।

बाजरा मोटे अनाजों की श्रेणी में आता है लेकिन इसके पोषण संबंधी लाभ के कारण इसे आज पोषक अनाज भी कहा जा रहा है।

बाजरा को पोषण की दृष्टिकोण से देखें तो इसमें प्रोटीन, खनिज और विटामिन पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। बाजरा पोषण की दृष्टि से चावल और गेहूं से 3 से 5 गुना बेहतर है। बाजरा विटामिन-बी, कैल्शियम, आयरन, पोटेशियम, मैग्नीशियम, जिंक और ग्लूटेन फ्री होता है। जिन लोगों को गेहूं से एलर्जी होती है उनके लिए बाजरा एक आदर्श भोजन है। वजन कम करने वाले और मधुमेह रोगियों के लिए भी बाजरा उपयुक्त होता है।

पोषण के दृष्टिकोण से रागी भी एक महत्वपूर्ण छोटा मोटा अनाज है। फिटनेस के प्रति उत्साही लोगों द्वारा चावल और गेहूं के विकल्प के रूप में रागी का सेवन किया जा सकता है। यह प्रोटीन और अमीनो एसिड से भरपूर बाजरा का ग्लूटेन फ्री प्रकार है। बढ़ते बच्चों में रागी का सेवन उनके मस्तिष्क के विकास मैं महत्वपूर्ण योगदान देता है। रागी मैं कैल्शियम, आयरन और खनिज लवणों की मात्रा भी पाई जाती है। रागी एंटी ऑक्सीडेंट होने के कारण मानव शरीर के लिए आवश्यक अमीनो एसिड की मात्रा प्रदान करती है।

ज्वार का प्रयोग रोटियां और अन्य ब्रेड बनाने के लिए भारत में कई राज्यों में किया जाता है। ज्वार आयरन, प्रोटीन और फाइबर का एक समृद्ध स्रोत होता है। ज्वार में पोलिकोसेनॉल्स की उपस्थिति के कारण यह कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद करता है। ज्वार में ब्लूबेरी और अनार की तुलना में अधिक एंटी ऑक्सीडेंट पाए जाते हैं। यह कैलोरी और मैक्रोन्यूट्रिएंट्स से भरपूर होता है। ज्वार मेटाबॉलिज्म को बढ़ाने में भी मदद करता है।

फॉक्सटेल मिलेट जिसे भारत में ककुम या कंगनी के नाम से भी जाना जाता है. यह कार्बोहाइड्रेट से भरपूर होता है जो शरीर में रक्त शर्करा के स्तर को संतुलित करने में मदद करता है. इसमें आयरन की प्रचुर मात्रा पाई जाती है और यह समग्र प्रतिरक्षा के सुधार में महत्वपूर्ण योगदान देता है।

कुटकी एक लिटिल मिलेट्स की श्रेणी में आता है। यह विटामिन बी, कैल्शियम, आयरन, जिंक, और पोटेशियम जैसे आवश्यक खनिजों से परिपूर्ण होता है। लिटिल मिलेट्स कुटकी का उपयोग भारत के दक्षिणी राज्यों में कई पारंपरिक व्यंजनों को बनाने में बड़े पैमाने पर किया जाता है। यह चावल का एक स्वास्थ्यवर्धक विकल्प है और इससे वजन भी नहीं बढ़ता है।

बर्नार्ड बाजरा जिसे सवा अथवा सनवा के नाम से भी जाना जाता है. यह उच्च मात्रा में आहार फाइबर से भरा होता है जो कि आंतों को बेहतर बनाने और वजन घटाने में काफी सहायता करता है। सवा कैल्शियम और फास्फोरस से भी भरपूर होता है जिससे हड्डियों को मजबूती प्रदान होने में सहायता मिलती है।

प्रोसो मिलेट को भारत में चीना के नाम से जाना जाता है। यह रक्त शर्करा के स्तर को संतुलित करने में मदद करता है क्योंकि इसमें कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है। इसको मधुमेह रोगियों के लिए दैनिक आहार में शामिल करना एक अच्छा विकल्प है।

कोदो मिलेट को कोदों के नाम से ही जाना जाता है. यह लेसिथिन अमीनो एसिड की उच्च मात्रा वाला मोटा अनाज है। यह तंत्रिका तंत्र को मजबूती प्रदान करता है। कोदो अन्य विटामिन और खनिजों के बीच विटामिन बी, विशेष रूप से नियासिन, बी-6 और फोलिक एसिड का एक शानदार स्रोत है। इसमें कैल्शियम, आयरन, पोटेशियम, मैग्नीशियम और जिंक जैसे मिनरल्स होते हैं। यदि इसका पोस्टमेनोपॉजल महिलाओं द्वारा नियमित रूप से सेवन किया जाए तो यह उनके उच्च रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल के स्तर जैसे हदय संबंधी विकारों से छुटकारा दिलाने में मदद करता है।

बकव्हीट जिससे भारत में कुट्टू के नाम से भी जाना जाता है। यह मिलेट्स अनाजों के सबसे आम प्रकारों में से एक है. भारत में अक्सर नवरात्र और अन्य उपवासों के दौरान इसका उपयोग फलाहार के लिए किया जाता है। कुट्टू मधुमेह के अनुकूल है और रक्तचाप को कम करने में भी मदद करता है। यह अच्छे हृदय स्वास्थ्य के लिए भी सहायक है और यदि आप अपना वजन कम करना चाहते हैं तो इसे अपने आहार में शामिल करना चाहिए। कुट्टू के सेवन से स्तन कैंसर, बच्चों में अस्थमा और पित्त की पथरी से भी बचाव होता है।

चौलाई एक तरह का बाजरा ही है जो मिलेट्स की श्रेणी में आता है। इसे राजगिरा, रामदाना, और चोला के नाम से भी जाना जाता है। चौलाई प्रोटीन और आहार फाइबर से भरपूर है। स्वस्थ आहार के लिए यह एक बहुत ही अच्छा स्रोत है। यह बालों को सफेद होने और झड़ने से रोकने में मदद करता है। चौलाई के नियमित सेवन से कोलेस्ट्रॉल के स्तर और हृदय रोग के जोखिम को भी कम किया जा सकता है। इसमें कैल्शियम, विटामिन और अन्य खनिज काफी मात्रा में पाये जाते हैं।

कई अध्ययनों से यह सिद्ध हो चुका है कि कोदो और अन्य माइनर मिलेट्स में 37 से 38 प्रतिशत तक आहार फाइबर होता है, जो कि अन्य अनाजों तुलना में बहुत ज्यादा है। फॉक्सटेल मिलेट अर्थात कंगनी पूरी दुनिया में चावल के विकल्प रूप में सबसे अधिक उपयोग किया जाता है। इसी तरह से टाइप-2 मधुमेह वाले लोगों के लिए भी कंगनी एक उपयुक्त उपयुक्त विकल्प है। इसमें आयरन की मात्रा अधिक होती है और यह रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में काफी मदद करता है।

मोटे अनाजों से होने वाले स्वास्थ्य लाभ को देखते हुए जरूरत इस बात की है कि लोगों में इनके प्रति जागरूकता पैदा की जाए, जिससे लोग इसे अपने भोजन में शामिल करने के लिए प्रोत्साहित हो सके। अगर बाजार में मोटे अनाजों की मांग बढ़ेगी तो निश्चित रूप से किसान इनकी खेती करने के लिए उत्साहित होंगे। जब किसानों को मोटे अनाजों का अच्छा भाव मिलेगा तो किसानों को इनकी खेती से फायदा होने के साथ ही साथ आम जनमानस का स्वास्थ्य भी बेहतर हो सकेगा।

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