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महाराष्ट्र में सूखे की इस वज़ह के बाद आकस्मिक योजना के लिए तैयार रहें ये राज्य

जहाँ उत्तर भारत के कई राज्य भारी बाढ़ से जूझ रहें हैं, वहीं भारत के कुछ हिस्सों में किसान कम मानसूनी बारिश के कारण सूखे का सामना कर रहे हैं। स्काईमेट वेदर ने चेतावनी दी है कि आने वाले महीने में अल नीनो के कारण स्थिति और ख़राब हो सकती है।
Maharastra

महाराष्ट्र में किसान संगठन इस मानसून सीजन में कम बारिश के कारण राज्य में बढ़ते कृषि संकट की ओर ध्यान दिलाने के लिए अगले सप्ताह 26 जुलाई को राज्य भर में प्रदर्शन की तैयारी कर रहे हैं। अपनी अन्य माँगों के अलावा, वे कम खरीफ़ बुआई के कारण सूखा घोषित करने की माँग कर रहे हैं।

इस बीच निजी मौसम पूर्वानुमान वेबसाइट स्काईमेट वेदर की ताज़ा रिपोर्ट ने चिंता और बढ़ा दी है। स्काईमेट वेदर में मौसम विज्ञान और जलवायु परिवर्तन के उपाध्यक्ष महेश पलावत ने गाँव कनेक्शन को बताया कि मराठवाड़ा, विदर्भ, मध्य महाराष्ट्र, आंतरिक कर्नाटक, रायलसीमा और तेलंगाना में वर्षा की कमी का सामना करना पड़ रहा है। आने वाले समय में स्थिति और ख़राब हो सकती है।

महाराष्ट्र राज्य किसान सभा के महासचिव राजन क्षीरसागर कहते हैं , “कम बारिश के कारण किसानों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इस संकट को देखते हुए हम 24 जुलाई को मुंबई में अन्य किसान संगठनों के साथ मिलकर बातचीत करेंगे। हम दो दिन बाद 26 जुलाई को राज्य भर में प्रदर्शन की योजना बना रहे हैं।”

परभणी स्थित किसान नेता ने सवाल करते हुए कहा, “मराठवाड़ा में सोयाबीन किसान अपर्याप्त वर्षा के कारण अपनी फ़सल नहीं बो पाए हैं। सरकार कैसे घोषणा कर सकती है कि महाराष्ट्र में 80 प्रतिशत खरीफ़ बुआई हो चुकी है।”

क्षीरसागर 17 जुलाई को राज्य विधानसभा के मानसून सत्र के पहले दिन राज्य के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के उन बयानों का ज़िक्र कर रहे थे, जहाँ उन्होंने कहा था कि कम बारिश के बावज़ूद, पिछले साल की तुलना में खरीफ़ सीजन में 80 प्रतिशत बुवाई हो चुकी है।

लेकिन राज्य में किसान चिंतित हैं क्योंकि सामान्य से कम बारिश के कारण उनकी खरीफ़ फसलों की बुआई प्रभावित हो रही है।

भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार, महाराष्ट्र के 36 ज़िलों में से 18 में ‘कम’ वर्षा (-59 से लेकर -20 प्रतिशत कम) दर्ज़ की गई है, और दो ज़िलों – सांगली और हिंगोली – में ‘भारी कम’ वर्षा दर्ज़ की गई है ( इस दक्षिण पश्चिम मानसून के मौसम में 1 जुलाई से 18 जुलाई के बीच -99 प्रतिशत और -60 प्रतिशत बारिश दर्ज़ की गई है)।

राज्य के भीतर, मध्य महाराष्ट्र और मराठवाड़ा क्षेत्रों में -28 प्रतिशत और -26 प्रतिशत कम वर्षा दर्ज की गई है। दोनों ही आंकड़े कम वर्षा की श्रेणी में आते हैं।

क्षीरसागर ने कहा, “सरकार यह स्वीकार करने में झिझक रही है कि यह सूखा है। क्योंकि ऐसा करने पर उन्हें किसानों को फ़सल बीमा देने के लिए जवाबदेह होना पड़ेगा। ” उन्होंने कहा, “हम सरकार से मांग करते हैं कि सूखा घोषित किया जाए और उन किसानों को मुआवजा दिया जाए जो बारिश नहीं होने के कारण अपनी फ़सल नहीं बो सके हैं।”

पिछले महीने, गाँव कनेक्शन ने महाराष्ट्र से दो ग्राउंड रिपोर्ट की थी। इसमें उन किसानों की परेशानियों का ज़िक्र किया गया था, जो बारिश नहीं होने या कम होने के कारण खरीफ़ की फ़सल बोने में असमर्थ थे। जो लोग पहले ही बीज़ बो चुके थे, उन्हें भी बुआई में असफलता हाथ लग रही है।

सूखा प्रायद्वीपीय भारत

मानसून सीजन में कम बारिश सिर्फ महाराष्ट्र तक ही सीमित नहीं है। प्रायद्वीपीय भारत और पूर्वी भारत के कई अन्य राज्य भी मानसून की बारिश का इंतज़ार कर रहे हैं। यह उत्तर भारत के बिल्कुल विपरीत है जहाँ पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से बारिश से प्रभावित हैं और भारी बाढ़ का सामना कर रहे हैं।

आईएमडी के अनुसार, उत्तरी आंतरिक कर्नाटक और दक्षिण आंतरिक कर्नाटक मौसम उपविभागों में बारिश का अंतर -32 प्रतिशत और -35 प्रतिशत कम है।

जैसा कि अनुमान है, कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी के पानी का बंटवारा भी समाचारों की सुर्खियों में है। समाचार रिपोर्टों के अनुसार, कर्नाटक ने घोषणा की है कि कर्नाटक में पानी की कमी के कारण वह पड़ोसी राज्य तमिलनाडु को कावेरी का पानी छोड़ने की स्थिति में नहीं है।

स्थानीय समाचार रिपोर्टों में राज्य के कृषि मंत्री एन चेलुवरायस्वामी के हवाले से कहा गया, “तमिलनाडु कावेरी जल छोड़ने की मांग कर रहा है और उसने कावेरी निगरानी समिति से भी अपील की है। लेकिन, हम पानी छोड़ने की स्थिति में नहीं हैं। मुख्यमंत्री और जल संसाधन मंत्री के साथ चर्चा के बाद निर्णय लिया जाएगा।”

कृषि मंत्री ने कहा, “तमिलनाडु ऐसे समय में अपने हिस्से का पानी मांग रहा है, जब कर्नाटक पीने के पानी की कमी से जूझ रहा है। स्थिति तभी सही हो पाएगी, जब इस महीने अच्छी बारिश होगी।”

इस बीच, तेलंगाना के रायलसीमा में भी इस दक्षिण-पश्चिम मानसून में अब तक -33 प्रतिशत कम वर्षा हुई है। केरल में वर्षा का प्रतिशत -38 प्रतिशत नीचे है (मानचित्र देखें)।

पूर्वी भारत के राज्यों में भी परेशानी बढ़ रही है।18 जुलाई तक, बिहार, झारखंड और गंगीय पश्चिम बंगाल राज्यों में बारिश -36 प्रतिशत, -42 प्रतिशत और -36 प्रतिशत कम होने की सूचना है।

बिहार में धान की बुआई और रोपाई लक्ष्य से काफी कम है क्योंकि इसके 38 में से 31 ज़िले बारिश की कमी से जूझ रहे हैं।

सूखे के लिए तैयार रहें?

स्काईमेट वेदर में मौसम विज्ञान और जलवायु परिवर्तन के उपाध्यक्ष महेश पलावत ने गाँव कनेक्शन से कहा, “बंगाल की खाड़ी के ऊपर एक कम महत्वपूर्ण मौसम प्रणाली विकसित हुई है जिसके चलते कम बारिश हुई है। इस साल उत्तरी बंगाल की खाड़ी में मौसमी सिस्टम विकसित हुआ, जिससे झारखंड और छत्तीसगढ़ क्षेत्र में बारिश हुई। आने वाले दिनों में हमें तटीय तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भारी बारिश देखने को मिल सकती है। लेकिन तमिलनाडु, रायलसीमा, कर्नाटक के अंदरूनी हिस्सों में बारिश की कमी रहेगी।”

उन्होंने निष्कर्ष निकाला, “इसके अलावा, अल नीनो अगस्त में आएगा और मानसूनी बारिश और कम हो जाएगी। अगले दो दिनों में मराठवाड़ा और मध्य महाराष्ट्र में अच्छी बारिश देखने को मिल सकती है। लेकिन जल्द ही अल नीनो आने से पूरे देश में मानसून की बारिश कम हो जाएगी, इसलिए राज्यों को तैयार रहना चाहिए”।

अल नीनो से मतलब मध्य और पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के गर्म होने या समुद्र की सतह के औसत तापमान से ऊपर होना है। इसे अक्सर भारतीय उपमहाद्वीप में कम मानसूनी बारीश के साथ जोड़ा जाता है।

किसान संगठन सरकार से कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। 17 जुलाई को, महाराष्ट्र राज्य किसान सभा ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री, महाराष्ट्र विधान सभा के अध्यक्ष और परभणी के जिला मजिस्ट्रेट को संबोधित करते हुए एक पत्र लिखा और राज्य में तुरंत सूखा घोषित करने और सूखे की स्थिति के लिए राज्य में एक आकस्मिक योजना लाने के लिए कहा।

पत्र में कहा गया है कि जून में बारिश नहीं होने के कारण किसानों के लिए खरीफ़ फ़सलों की बुआई संभव नहीं हो सकी है। इसके अलावा 15 जुलाई तक बारिश न होने या कम होने से किसानों के सामने फ़सल की दोहरी बुआई की समस्या खड़ी हो गई है।

मानसून विधानसभा सत्र के पहले दिन, फडणवीस ने कहा था, “महाराष्ट्र ने मानसून में देरी के कारण एक आकस्मिक योजना बनाई है। राज्य दोहरी बुआई, फ़सल की विफलता और नकली बीज़ आपूर्ति जैसी स्थितियों के लिए तैयार है जो उत्पादन को प्रभावित करेगी। योजना चल रही है।”

लेकिन क्षीरसागर ने दोहराया कि “राज्य सरकार को महाराष्ट्र के लिए ख़ास आकस्मिक योजना तैयार करने की ज़रूरत है, न कि सिर्फ केंद्र सरकार के सुझाव स्वीकार करने की”।

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