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किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो रही नैनो तकनीक; बढ़ा रहा फसलों का उत्पादन

तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय ने शोध के बाद ऐसा सॉल्यूशन विकसित किया है जो कि न सिर्फ प्रदूषण कम करेगा, बल्कि फसलों की उपज भी बढ़ाएगा, यही नहीं फल और सब्जियों को भी लंबे समय तक ताजा रखेगा।
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कोयम्बटूर, तमिलनाडु। कोयम्बटूर में 100 साल से भी पुराने तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय (TNAU) के परिसर में नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग देश में कृषि की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए नैनो सॉल्यूशन पर काम कर रहा है।

“खेती बहुत सारे इनपुट का इस्तेमाल किया जाता है जैसे कि उर्वरक, कीटनाशक, खरपतवारनाशी और कवकनाशी। लेकिन फसलें इनका लगभग 20 से 30 प्रतिशत ही उपयोग करती हैं। इसका बाकी हिस्सा मिट्टी में अवशेषों के रूप में रहता है या भूजल या वातावरण में मिल जाता है, ”अनुसंधान के निदेशक केएस सुब्रमण्यन ने कहा। वह 2017 और 2020 के बीच नाबार्ड (TANU) के चेयर प्रोफेसर भी थे।

सुब्रमण्यन देश के अग्रणी लोगों में से एक हैं जिनके पास नैनो-प्रौद्योगिकी कृषि सहायता के क्षेत्र में वर्षों का अनुसंधान और अनुभव है। 2017 में NABARD ने TNAU में नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग में नाबार्ड प्रोफेसर चेयर की स्थापना की। तीन साल (सितंबर 2017-अगस्त 2020) में एक करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता के साथ सुब्रमण्यम को तीन साल के लिए इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई।

टीएनएयू ने प्रदूषण को कम करने, फसलों की उपज बढ़ाने और फलों और सब्जियों की शेल्फ-लाइफ में सुधार करने के लिए नैनो-प्रौद्योगिकी समाधानों पर शोध और विकास किया है।

“नैनो प्रौद्योगिकी कृषि इनपुट की क्षमता में सुधार करती है। इन उत्पादों का उपयोग सटीक मात्रा और स्तर तक किया जा सकता है, प्रभावी लागत के साथ” निदेशक ने कहा।

“देश में एक लाख करोड़ रुपए से अधिक मूल्य के उर्वरकों का आयात किया जाता है और नैनो-उत्पाद सरकारी खजाने में भारी बचत ला सकते हैं, “सुब्रमण्यन ने कहा। “यूरिया की एक 500 मिलीलीटर की बोतल यूरिया के 50 किलो बैग के बराबर होती है। 500 एमएल यूरिया की कीमत अभी 240 रुपए है और यह एक एकड़ जमीन के लिए पर्याप्त है।

फलों और सब्जियों की सुरक्षा के लिए नैनो सॉल्यूशन

नैनो-उत्पाद का उपयोग करने के तात्कालिक लाभों में से एक भारी अपव्यय को कम करना था। भारत प्रति वर्ष 330 मिलियन टन फलों और सब्जियों के साथ दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। लेकिन प्रत्येक तीन में से एक फल (35 प्रतिशत) खराब हो जाता है।

टीएनएयू परियोजना ने सुब्रमण्यम को फलों को संरक्षित करने, उनकी शेल्फ लाइफ बढ़ाने और कचरे को कम करने के लिए नैनो-उत्पादों की एक श्रृंखला विकसित करने में सक्षम बनाया है। पूरे तमिलनाडु में आम और केले की खेती में प्रयोग जारी हैं। उन्होंने कहा, “अगर हम नुकसान का 10 प्रतिशत भी कम कर सकते हैं, तो इसका मतलब देश के लिए एक बड़ी बचत है।”

टीएनएयू द्वारा विकसित कुछ नैनो-उत्पादों में एक फॉर्मूलेशन शामिल है जो फलों और सब्जियों को ताजा रखता है। उनकी शेल्फ लाइफ बढ़ाता है और उन्हें कटाई के बाद होने वाली बीमारियों से बचाता है। इसे टीएनएयू ने यूनिवर्सिटी ऑफ गुएलफ, कनाडा के सहयोग से विकसित किया गया है।

“आम और केले उगाने वाले 5,000 से अधिक किसानों ने इस फॉर्मूलेशन का उपयोग किया और इससे उन्हें फायदा भी हुआ। ये कृष्णागिरी, थेनी, धर्मपुरी, डिंडीगुल और कन्याकुमारी जिलों के किसान थे। अस्सी प्रतिशत किसानों ने ने बताया उपज में बीमारी कम हुई है और इससे उन्‍हें काफी फायदा पहुंचा है, ”उन्होंने आगे कहा।

विशेष स्टिकर और छर्रों को भी विकसित किया गया है (वे पेटेंट के लिए पंजीकृत हैं)। स्टिकर/पेलेट को फलों वाले पैकिंग बॉक्स में रखा जा सकता है और यह भंडारण या परिवहन के दौरान सामग्री को ताजा रखने में मदद करता है।

बीज के लिए नैनो समाधान

नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग में प्रसंस्करण प्रयोगशाला में मशीनें गुनगुनाती हैं। सुब्रमण्यम ने शीशे से बंद उपकरण की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह बीजों की परत चढ़ा रहा है।

वैज्ञानिक ने समझाया, “कपास, हरी मूंग, भिंडी और धान के बीजों में सूक्ष्म नैनो-फाइबर लेपित होते हैं जिनमें सभी पोषण, कीटों से सुरक्षा, विकास नियामक आदि शामिल होते हैं।” उनके अनुसार ये पहले से तैयार और दुरुस्‍त किए गए बीज किसान के लिए बहुत मददगार होते हैं जिन्हें तब बीजों के उपचार और फफूंदनाशकों, कीटनाशकों आदि को संभालने की चिंता नहीं करनी पड़ती है।

नैनो-यूरिया

नैनो-यूरिया टीएनएयू में विकसित उत्पादों में से एक है जिसका पहले से ही तमिलनाडु के भवानी सागर क्षेत्र में दस एकड़ चावल और मक्का पर काफी सफलता के साथ उपयोग किया जा चुका है। सुब्रमण्यम ने कहा कि उपज में 10 से 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसके बाद भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने देश के 11,000 स्थानों पर परीक्षण किए जहां 650 कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से किसानों को नैनो-यूरिया वितरित किया गया।

हाल ही में मई 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कलोल, गुजरात में इफको द्वारा दुनिया के पहले नैनो यूरिया तरल संयंत्र का उद्घाटन किया। यह उत्पादकता को बढ़ावा देने और उनकी आय बढ़ाने में मदद करने के लिए था।

“इफको ने एक नैनो-यूरिया विकसित किया और यह TNAU द्वारा वैज्ञानिक रूप से मान्य और जैव-सुरक्षा-परीक्षण किया गया था। इसने फरवरी 2021 में उर्वरक नियंत्रण आदेश द्वारा देश में पहले नैनो-उर्वरक की अधिसूचना में मदद की” सुब्रमण्यम ने बताया।

जबकि कुछ नैनो उत्पाद प्रौद्योगिकी को पहले ही कृषि व्यापार निदेशालय-टीएनएयू को भेज दिया गया है, अन्य पायलट परीक्षणों के लिए तैयार हैं। टीएनएयू कीटनाशक कंपनियों और कृषि से संबंधित उद्योगों के साथ पायलट परीक्षण का भी समन्वय कर रहा है।

फसलों में बीमारियों का पता लगाने, मिट्टी में नाइट्रोजन और नमी की मात्रा को मापने, यह सुनिश्चित करने के लिए कि उत्पाद मनुष्यों और खेत जानवरों के लिए हानिकारक नहीं हैं, आदि के लिए नैनो-तकनीक को सूचीबद्ध किया जा रहा है।

सुब्रमण्यन ने कहा, “हम वर्तमान में नैनो-उपकरणों को किसानों से जोड़ने पर काम कर रहे हैं ताकि किसानों को उनकी फसलों में कोई कमी पाए जाने पर एसएमएस के माध्यम से सतर्क किया जा सके।”

क्या है चुनौतियां

नैनो-टेक्नोलॉजी में अपार संभावनाएं हैं। लेकिन, इसका सटीक उपयोग करने के लिए हमें कुछ चुनौतियों से पार पाना होगा,” वैज्ञानिक ने कहा।

उनके अनुसार, अनुसंधान और विकास को जारी रखने के लिए सबसे बड़ी चुनौती वित्तीय सहायता थी। दूसरी ऐसी नीतियां थीं जो वैज्ञानिक अनुसंधान के अनुरूप हों।

सुब्रमण्यम के अनुसार, प्रयोगकर्ता, किसान से लेकर नीति निर्माताओं, सरकार तक विभिन्न स्तरों के लोगों के बीच प्रयोगशालाओं में क्या हो रहा है, इसके बारे में जागरूकता होनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अगर लालफीताशाही पर अंकुश लगाया जाए तो अनुसंधान और विकास को फायदा हो सकता है। सरकारी धन को वास्तव में अमल में लाने में असाधारण रूप से लंबा समय लगा। उन्होंने चेतावनी दी, “यदि प्रक्रियाएं जटिल और बोझिल होती रहीं, तो नवाचार, प्रयोग और खोजें खत्‍म हो जाएंगी।”

नोट: यह खबर नाबार्ड के सहयोग से की गई है।

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