लखनऊ रेलवे स्टेशन से करीब 14 किलोमीटर दूर कठौता में एक कृषि वैज्ञानिक ने ऐसा मंदिर बना दिया है जिसे देख कर हर कोई हैरत में पड़ जाता है।
इस अनूठे मंदिर में भगवान की मूर्ति की जगह है लौकी, जी हाँ वही लौकी जिसे हम आप हरी सब्जी के नाम पर खाते हैं। यहाँ लौकी के अलग-अलग आकार के फल मौजूद हैं; यहाँ तक कि इस मँदिर में लौकी से बने हुए हेलमेट, कप, शंख और तुम्भि भी मौज़ूद है।
इसे बनाने वाले कृषि वैज्ञानिक डॉ शिव पूजन कहते हैं,”नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या से रिटायरमेंट के बाद भी मैंने लौकी पर काम बंद नहीं किया, लोगों को इसके फायदे बताता रहता हूँ इसीलिए अपने घर में लौकी म्यूजियम भी बना रखा है, जिसे मैं लौकी माता का मँदिर कहता हूँ।” वो आगे कहते हैं, “अपने कार्यकाल में मैंने लौकी की दस प्रजातियाँ विकसित की, लेकिन मुझे असली पहचान मिली साल 2007 में जब मैंने लौकी की नरेंद्र शिवानी और नरेंद्र माधुरी किस्म को विकसित किया,जो 4 से 6 फीट तक बढ़ती है।”
इस मँदिर में डॉ शिव पूजन द्वारा विकसित लौकी की सभी प्रजातियाँ रखी हुई हैं, जिसे देखने और लौकी के बारे में जानने के लिए लोग अक्सर आते रहते हैं।
72 साल के डॉ शिव पूजन सिंह लौकी पुरुष के नाम से मशहूर हैं, कभी भी आप उनके घर पहुँचे तो आपको वे अपनी खेती की प्रयोगशाला में लौकी के पौधों से घिरे मिलेंगे।
मूल रूप से आज़मगढ़ के गौरा गाँव के रहने वाले प्रोफेसर शिव पूजन गाँव कनेक्शन से बताते हैं, अपने कार्यकाल के दौरान लौकी, कद्दू, परवल जैसी एक दर्जन से अधिक सब्जियों की नई प्रजातियाँ उन्होंने विकसित की।
“साल 1982 में बतौर प्रोफेसर मैं नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय ज्वाइन किया, शुरू में जब हमारे विभागाध्यक्ष ने हमें चुना और कहा कि आपको लौकी पर काम करना है, समझिए लौकी को हमने नहीं चुना था, लौकी ने हमको चुना था।” वे खुश हो कर गाँव कनेक्शन से कहते हैं।
वो आगे कहते हैं, “साल 1988 की बात है तब लौकी सबसे ज़्यादा नज़र- अंदाज़ की जाने वाली सब्जी थी, तब हमने कहा कि अगर आप चाहते हैं तो मैं इसी पर रिसर्च करूँगा।” प्रोफेसर शिव पूजन कहते हैं, “तब मैंने सोच लिया था कि लौकी के लिए कुछ करना है, लोग लौकी को भी जानेंगे और लौकी की वजह से मुझे जानेंगे।”
देश भर से किसान और किचन गार्डनिंग करने वाले नरेंद्र शिवानी, नरेंद्र शिशिर और नरेंद्र माधुरी के बीज मंगाते रहते हैं। प्रो शिव पूजन कहते हैं, “भले ही मैं रिटायर हो गया हूँ, लेकिन मेरी सामाजिक ज़िम्मेदारी बनती है कि मैं कुछ न कुछ करता रहूँ। जनता के पैसों से ही तो मुझे पेंशन मिलती है, इसलिए उनके लिए कुछ न कुछ करते रहना होगा।”
प्रोफेसर शिव पूजन का परिवार उन्हें जब आराम करने की सलाह देता है तो वो कहते हैं लौकी के साथ ऐसा जुड़ाव हो गया है कि अब ये छूटती नहीं है।
नई प्रजातियों के नाम पर वो कहते हैं, “विश्वविद्यालय के नाम और रिसर्चर के हिसाब से नाम रखा जाता है, जैसे नरेंद्र शिवानी, नरेंद्र शिशिर, नरेंद्र रश्मि या फिर नरेंद्र माधुरी जैसे नाम हैं। माधुरी खाने में बहुत स्वादिष्ट थी इसलिए इसका नाम माधुरी रखा, शिशिर जाड़े की पहली किस्म थी इसलिए इसका नाम ये रखा। शिवानी के नाम रखने की बात आयी तो लगा इसका क्या नाम रखा जाए, हमारा एक पीएचडी का शोध छात्र था, उसने कहा कि सर इसका नाम शिवानी रख दीजिए।”
अक्सर लौकी के वीडियो सोशल मीडिया पर दिखते हैं कि कैसे इंजेक्शन से लौकी का आकार बढ़ा दिया जाता है। प्रोफेसर सिंह कहते हैं, “ये सब सिर्फ अफवाह है, ऐसा कुछ नहीं होता है, लौकी सेहत के लिए फायदेमंद होती है अगर कोई इंजेक्शन वाली बात सच कर दे तो उसे मैं 50 हज़ार रुपए का इनाम दूँगा।”
प्रोफेसर शिवपूजन सिंह आजकल कुछ देसी किस्म की लौकी पर काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि जब तक रहेंगे लौकी पर कुछ न कुछ करते रहेंगे।