ग्रामीण भारत की आजीविका में क्रांति लाएगा बकरी पालन मॉडल

बकरी पालन का ये मॉडल ग्रामीण भारत में बकरी पालन को भविष्य का मजबूत आधार बनाने की दिशा में एक ठोस कदम साबित होगा।
Goat Farming India

भारत में बकरी पालन करने वाले लाखों किसानों के लिए एक अच्छी खबर है। हाल ही में हुए राष्ट्रीय बकरी शिखर सम्मेलन 2025 में सरकार, निजी कंपनियों और किसानों ने मिलकर बकरी पालन को बेहतर और टिकाऊ बनाने के लिए एक नई योजना बनाई।

इस सम्मेलन का आयोजन Passing Gifts ने किया, जो Heifer International की एक सहयोगी संस्था है। सम्मेलन में ICAR-CIRG और GIZ India ने भी भाग लिया। यह आयोजन सरकार, निजी क्षेत्र, विकास संस्थानों, किसान संगठनों, वित्तीय संस्थाओं और जमीनी स्तर के उद्यमियों को एक साथ लाया।

भारत में इस समय लगभग 14.8 करोड़ बकरियां हैं और करीब 3.3 करोड़ ग्रामीण परिवारों की आजीविका बकरी पालन पर निर्भर करती है। इसके बावजूद, यह क्षेत्र कई समस्याओं से जूझ रहा है। इनमें पशुओं के लिए बेहतर चिकित्सा सेवाओं की कमी, गुणवत्तापूर्ण चारे की अनुपलब्धता, कम उत्पादकता, और सीमित बाज़ार संपर्क जैसी समस्याएं प्रमुख हैं। सम्मेलन का उद्देश्य इन चुनौतियों का हल ढूंढना और एक बेहतर भविष्य की योजना तैयार करना था।

सम्मेलन में पशुपालन और डेयरी विभाग की सचिव, अल्का उपाध्याय ने बकरी पालन में छिपी असीम संभावनाओं को उजागर किया। उन्होंने कहा कि ग्रामीण भारत के आर्थिक बदलाव में बकरी पालन की बड़ी भूमिका हो सकती है, बशर्ते इसे एक संगठित और योजनाबद्ध तरीके से विकसित किया जाए। उन्होंने सुझाव दिया कि इस क्षेत्र के लिए एक राष्ट्रीय संसाधन संगठन बनाया जाए, जो नस्ल सुधार, तकनीकी सहयोग और ज्ञान साझा करने के कार्यों को एक साथ समन्वित कर सके। 

उन्होंने पश्चिम बंगाल के ब्लैक बंगाल बकरी क्लस्टर का उदाहरण देते हुए बताया कि अगर बकरी पालन को क्लस्टर आधारित मॉडल और डेटा के सहारे आगे बढ़ाया जाए तो टीकाकरण, कृत्रिम गर्भाधान और बाज़ार तक पहुंच में बेहतरीन सुधार लाया जा सकता है। इससे निजी निवेश भी आकर्षित होगा और योजनाओं का असर भी बढ़ेगा।

CIRG के निदेशक डॉ. मनीष कुमार चतली ने ‘विकसित भारत रोडमैप फॉर द बकरी सेक्टर’ नामक एक रणनीति पेश की, जिसका उद्देश्य उत्पादकता बढ़ाना, जलवायु लचीलापन मजबूत करना और विज्ञान व तकनीक आधारित नवाचारों के माध्यम से बकरी मूल्य श्रृंखला को आगे बढ़ाना है।

उन्होंने कहा कि यदि बकरी पालन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण और टिकाऊ तरीके अपनाए जाएं, तो यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान दे सकता है।

GIZ India की ओर से यह बताया गया कि उन्होंने भारत में इंडो-जर्मन परियोजनाओं के तहत कैसे बकरी पालन, मछली पालन और सहजन जैसे क्षेत्रों में आजीविका मॉडल तैयार किए हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मनरेगा और एनआरएलएम जैसी योजनाओं से जोड़कर इन मॉडलों को राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ाया जा सकता है। इसका उद्देश्य यह है कि ज्यादा से ज्यादा ग्रामीण परिवार इन मॉडलों का लाभ उठा सकें।

सम्मेलन में कई विषयों पर विचार-विमर्श हुआ, जैसे छोटे किसानों के लिए आसान वित्त व्यवस्था, गाँवों तक पशु चिकित्सा सेवाओं की पहुंच, और निजी व सरकारी क्षेत्र के बीच सहयोग को बढ़ावा देना। इन सभी चर्चाओं का मुख्य उद्देश्य बकरी पालन को अधिक व्यवस्थित और लाभकारी बनाना था।

Passing Gifts की कार्यकारी निदेशक रीना सोनी ने कहा कि उनका उद्देश्य महिलाओं और छोटे किसानों को केंद्र में रखकर बकरी आधारित आजीविका को सशक्त बनाना है। GIZ की वरिष्ठ सलाहकार मीखा हन्ना पॉल ने इसे एक सामूहिक प्रयास बताते हुए सभी सहयोगियों का धन्यवाद किया। वहीं, GIZ के फरहाद वानिया ने भारत में बकरी पालन, कृषि और एग्रोफॉरेस्ट्री से जुड़ी परियोजनाओं में जर्मन सहयोग को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता दोहराई।

सम्मेलन में Zappfresh, Licious, Chevon, NABARD, INFAH, ICAR-NRCM और गेट्स फाउंडेशन जैसे प्रमुख संगठनों ने भी भाग लिया। आखिर में यह निष्कर्ष निकला कि भारत को एक ऐसा राष्ट्रीय ढांचा तैयार करना होगा जो नीति, निवेश, नवाचार और समुदाय-आधारित कार्यों को एक साथ जोड़ सके।

 इस ढांचे के तहत PPP मॉडल को बढ़ावा मिलेगा, मिश्रित वित्त का उपयोग किया जाएगा और जोखिम कम करने वाले उपायों के ज़रिए निवेश को आकर्षित किया जाएगा। यह प्रयास ग्रामीण भारत में बकरी पालन को भविष्य का मजबूत आधार बनाने की दिशा में एक ठोस कदम साबित होगा।

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