बच्चों को पढ़ाते-पढ़ाते एक दिन किसानों को प्राकृतिक खेती का ज्ञान देने लगेंगी, लीना शर्मा ने कभी नहीं सोचा था, लेकिन आज उन्हें हर कोई सफल किसान के रूप में जानता है।
हिमाचल प्रदेश के मंडी ज़िले के एक पहाड़ी गाँव पंज्याणू की रहने वाली लीना शर्मा शुरू से शिक्षिका बनना चाहती थीं, शादी होने के बाद पास के ही सरस्वती विद्या मंदिर में पढ़ाने लगीं, लेकिन एक ट्रेनिंग कार्यक्रम ने उनकी ज़िंदगी बदल दी।
40 वर्षीय लीना शर्मा गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “साल 2018 की बात है, मुझे बच्चों को पढ़ाते हुए दो साल हो गए थे, तभी पता चला कि पद्मश्री सुभाष पालेकर शिमला में आ रहे हैं, जहाँ पर छह दिनों की ट्रेनिंग होनी है। मेरे पति ने कहा कि अगर जाना चाहो तो तुम भी चली जाओ कुछ नया ही सीखने को मिलेगा।” अपनी चार साल की बच्ची को घर छोड़कर लीना छह दिनों के लिए प्राकृतिक खेती के प्रशिक्षण कार्यक्रम में चली गईं, जहाँ पर उन्हें प्राकृतिक खेती के लाभ के बारे में पता चला।
शिमला से लौटने के बाद लीना अपने खेत में काम करने लगीं और पूरी तरह से प्राकृतिक खेती अपना ली, उन्होंने तो खेती शुरू कर दी अब उन्हें दूसरों को भी प्राकृतिक खेती के लिए प्रेरित करना था, लेकिन ये सब उनके लिए इतना आसान नहीं था। लीना कहती हैं, “मैंने लोगों को प्राकृतिक खेती के बारे में समझाने की कोशिश की तो लोगों ने मेरा बहुत मजाक उड़ाया। कुछ लोग तो बोलने लगे दुनिया चाँद पर पहुँच गयी और ये अभी गाय के गोबर गौमूत्र, से खाद बना रही हैं।”
“ये सब मेरे लिए किसी संघर्ष से कम नहीं था, लेकिन मैंने भी सोच लिया था कि अब मुझे हार नहीं मानना है। मैंने लोगों को करके दिखाया कि प्राकृतिक खेती के अपने फायदें हैं, धीरे-धीरे लोगों को भी समझ में आया और आज लोग प्राकृतिक खेती के बारे में जानना चाहते हैं। ” लीना ने आगे कहा।
लीना शर्मा के पास पाँच बीघा ज़मीन है, जिसके लिए प्राकृतिक खेती में इस्तेमाल होने वाली चीज़ें जैसे जीवामृत, घनजीवामृत, बीजामृत खट्टी लस्सी, अग्निअस्त्र आदि खुद से ही बनाती हैं।
उन्होंने 20 महिला किसानों का एक समूह बनाया है। सभी महिला किसान संयुक्त रूप से काम करते हुए गाँव की करीब 80 बीघा ज़मीन पर प्राकृतिक खेती करती हैं। आसपास के इलाकों के 100 से अधिक किसानों ने भी प्राकृतिक खेती का तरीका अपनाया है।
प्राकृतिक खेती में इसके इस्तेमाल से लीना को पहले साल ही बहुत अच्छी फसल हुई। बेहतरीन परिणाम देखने के बाद पड़ोस की महिला किसानों ने भी प्राकृतिक खेती की तकनीक सीखकर इसे अपनाया।
46 साल की ममता भी पंजयाणू गाँव की रहने वाली हैं और रासायनिक नहीं प्राकृतिक खेती करती हैं। ममता गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “मेरे पास पाँच बीघा घर के पास ही ज़मीन है और पाँच बीघा दूसरे गाँव में; पहले मैं भी रासायनिक खेती करती थी, लेकिन अब मैं अपने प्राकृतिक खेती से बहुत खुश हूँ, क्योंकि हमारी बचत होती है और अच्छी फसल प्राप्त होती है।”
“हम जो चीजें पहले फेक देते थे आज उन्हीं चीजों से अच्छी खाद तैयार कर रहे हैं, हम सभी को लीना जी ट्रेनिंग देती हैं। ” ममता ने आगे बताया।
अब तो लीना अपने गाँव में ही कैंप लगाती हैं, जहाँ किसानों को प्राकृतिक खेती के बारे में बताती हैं। लीना कहती हैं, “मैं बीघा में खेती करती हूँ, जिसमें मटर, मक्की, बैंगन, शिमला मिर्च जैसी फसलें उगाती हूँ, अब हमारा खेत स्वस्थ है और हम भी।”