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जलभराव में भी बड़े काम की है इस घास की खेती, पूरे साल दूर करता है हरे चारे की कमी

इस घास को नदी, नालों, तालाबों व गड्ढों के किनारे की नम जमीन और निचली जमीन में जहाँ पानी भरा रहता है, वहाँ आसानी से उगाया जाता है।
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बरसात के दिनों में अगर आपके सामने भी पशुओं के लिए हरा चारा जुटाना मुश्किल काम लगता है तो ये ख़बर आपके लिए है।

अब आप जलभराव में भी न सिर्फ पैरा घास को उगा सकते हैं बल्कि इससे पूरे साल अपने पशुओं की खुराक पूरी कर सकते हैं। इस घास को लगाने में ज़्यादा लागत नहीं आती है।

पैरा घास या अंगोला (ब्रैकिएरिया म्यूटिका) एक बहुवर्षीय चारा है। पैरा घास को अंगोला घास के अलावा कई नामों से जाना जाता है। यही नहीं यह घास नमी वाली जगहों पर अच्छी तरह उगती है।

भारतीय चारागाह और चारा अनुसंधान संस्थान के अनुसार इस घास को बाढ़ प्रभावित क्षेत्र और नमी वाली जगह पर लगाया जा सकता है। यह घास बहुत तेजी से बढ़ती है। जहाँ पर कुछ भी नहीं उगाया जा सकता है, वहाँ पर इस घास को लगाया जा सकता है।

हरे चारे के रूप में पशुपालक इसे इस्तेमाल भी कर रहे है। इस घास में 6 से 7 प्रतिशत प्रोटीन होता है। इसके अलावा ऐसी कई घासें पाई जाती है जिसमें प्रोटीन की मात्रा ज़्यादा होती है। जब कुछ भी नहीं मिलता तो किसान इसका प्रयोग कर सकते हैं।

पैरा घास के तने की लंबाई 1 से 2 मीटर होती है, और पत्तियाँ 20 से 30 सेंटीमीटर लंबी और 16 से 20 मिलीमीटर चौड़ी होती है। इसके तने की हर गांठ पर सैकड़ों की संख्या में जड़े पाई जाती हैं, जिससे इसकी बढ़वार अच्छी होती है। इसका तना मुलायम और चिकना होता है। यह घास एक सीजन में करीब 5 मीटर की लंबाई तक बढ़ सकती है। इस चारे में 7 फीसदी प्रोटीन, 0.76 फीसदी कैल्शियम, 0.49 फीसदी फास्फोरस और 33.3 फीसदी रेशा होता है।

मई से लेकर अगस्त तक इस घास को बोया जा सकता है। इस घास को नदी, नालों, तालाबों और गड्ढों के किनारे की नम ज़मीन और निचली ज़मीन में जहाँ पानी भरा रहता है, वहाँ आसानी से उगाया जाता है।

खेत की तैयारी

ज़्यादा उपज के लिए खेत की तैयारी अच्छी तरह से करनी चाहिए। खेत से खरपतवार हटा देना चाहिए। नदी और तालाबों के किनारे जहाँ जुताई गुड़ाई संभव न हो वहाँ पर खरपतवार और झाड़ियों को जड़ सहित निकाल कर इस घास को लगाना चाहिए।

रोपाई

उत्तर भारत क्षेत्रों में रोपाई का सही समय मई से अगस्त है। भारत के दक्षिणी, पूर्वी और दक्षिणी पश्चिम प्रदेशों में दिसंबर जनवरी को छोड़ कर पूरे साल इसकी रोपाई की जा सकती है। इसके बीज की पैदावार बहुत होने से ज्यादातर इससे कल्लों या तने के टुकड़ों से लगाया जाता है।

सिंचाई

घास की रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई की ज़रूरत होती है। गर्मी और सर्दी के मौसम में 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। बरसात के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है यह ऐसे क्षेत्रों में अधिक उपज देती है जहाँ पर अधिक पानी भरा रहता है। सूखे क्षेत्रों में इसकी पैदावार काफी कम हो जाती है।

निराई-गुड़ाई

पौष्टिक चारा लेने के लिए खेत को हमेशा खरपतवार रहित रखना चाहिए। घास लगाने के 2 महीने तक कतारों के बीच निराई-गुड़ाई करके खरपतवारों को हटा देना चाहिए। दूसरे साल से हर साल बारिश के बाद घास की कतारों के बीच खेत की गुड़ाई कर देनी चाहिए। इससे ज़मीन में हवा का संचार अच्छी तरह होता है और चारे की पैदावार में बढ़ोतरी होती है।

कटाई और उपज

इस घास की पहली कटाई बोआई के करीब 70-75 दिनों के बाद करनी चाहिए। इसके बाद बरसात के मौसम में 30-35 दिनों और गर्मी में 40-45 दिनों के अंतर पर कटाई करनी चाहिए। पैरा घास पत्तेदार और रसीली होने की वजह से इसका साइलेज भी बनाया जा सकता है। 20 सेंटीमीटर से नीचे इसकी कटाई नहीं की जा सकती है वरना इसके कल्ले भी कट जाते हैं और दोबारा से इसकी हरा चारा नहीं मिल पाता है।

इस घास को लगाने के लिए भारतीय चारागाह और चारा अनुसंधान संस्थान से संपर्क कर सकते हैं

फोन नंबर– 0510-2730666, 2730158, 2730385

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