तमिलनाडु के तंजावुर जिले को चावल के कटोरे के रूप में जाना जाता है। इसी जिले का एक गांव है चोलगंकुडिकाडु। जहां 52 साल के शिवजू सुब्बियान रहते हैं। सुब्बियान के पास दो एकड़ (0.8 हेक्टेयर) जमीन है। वह हर साल रबी (सर्दियों) के मौसम में धान उगाते हैं। लेकिन पिछले साल नवंबर के आखिर में, तमिलनाडु और उसके पड़ोसी राज्यों में आए चक्रवात निवार के कारण उनकी फसल बरबाद हो गई थी।
सुब्बियान ने प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के तहत अपनी फसल का बीमा कराया हुआ था। समय पर अपने प्रीमियम का भुगतान भी किया था। उन्हें पूरी उम्मीद थी कि फसल का मुआवजा बिना किसी परेशानी के मिल जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आज वह बड़ी मुश्किल से अपने चार सदस्यों के परिवार का खर्च उठा पा रहे हैं।
हालांकि, एक साल गुजर गया है। लेकिन सुब्बियन को अभी भी बीमा कंपनी से दावा राशि मिलने का इंतजार है। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, ” मेरी आमदनी मुश्किल से 2000 रुपये है। मैंने इस साल अपनी परिवार की जरुरतों को पूरा करने के लिए कई दूसरे किसानों से कर्ज लिया है। मुझे अभी तक अपनी फसल के बीमा का पैसा नहीं मिला है। ”
सुब्बियन अकेले नहीं हैं। तंजावुर जिले में उनकी तरह धान उगाने वाले कई किसान इस समस्या से जूझ रहे हैं। इन किसानों की पिछले नवंबर में चक्रवात निवार के दौरान पूरी फसल खराब हो गई थी। लेकिन उन्हें अभी तक उनकी बीमा दावा राशि नहीं मिल पाई है। अकेले चोलगंकुडिकाडु गांव के एक सौ चालीस किसान मुआवजे का इंतजार कर रहे हैं। आसपास के गांवों में भी कई किसान हैं, जो मुआवजे की आस लगाए बैठे हैं।
सुब्बियान ने गांव कनेक्शन को बताया कि उन्होंने पिछले साल तंजावुर सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक को अपनी रबी फसल के बीमा के लिए 1.5 प्रतिशत (1450 रुपये) का प्रीमियम चुकाया था। किसान आईडी, आधार समेत सभी जरुरी डिटेल्स देने के बाद, बैंक ने 24 नवंबर 2020 को एक मैनुअल रसीद जारी की।
लेकिन जब सुब्बियान ने इस साल मार्च में मुआवजा राशि के लिए आवेदन करने की कोशिश की, तो उनके दावे को ये कहते हुए खारिज कर दिया गया कि उनकी डिटेल्स को योजना के लिए कभी भी सूचीबद्ध नहीं किया गया था।
उन्होंने गांव कनेक्शन से शिकायत करते हुए कहा, “बैंक अधिकारियों ने मेरी मदद करने से इनकार कर दिया है। मुझे तो ये भी नहीं पता कि मेरी फसल का कौन सा बीमा किया गया था। मैंने भी बाकी लोगों की तरह अपने कागज और पैसे बैंक को दिए थे। इसके बावजूद मुझे कोई मुआवजा नहीं मिला।”
फसल बीमा योजना क्या है?
प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना भारत सरकार की प्रमुख फसल बीमा योजना है जिसे 13 जनवरी, 2016 को शुरु किया गया था। इस योजना को देश भर में सबसे कम प्रीमियम पर किसानों के लिए एक व्यापक जोखिम समाधान प्रदान करने के मकसद से शुरू किया गया था।
केंद्रीय योजना का उद्देश्य कृषि क्षेत्र में स्थायी उत्पादन का समर्थन करना है। इसके अंतर्गत फसल के खराब होने या आकस्मिक घटनाओं से होने वाले नुकसान की स्थिति में किसानों को आर्थिक सहायता दी जाती है, ताकि किसानों की आय को स्थिर किया जा सके और खेती से उनका भरण-पोषण सुनिश्चित हो सके।
इस योजना में खाद्य और तिलहन फसलों को शामिल किया गया है। किसानों द्वारा भुगतान किया जाने वाला निर्धारित प्रीमियम खरीफ फसलों के लिए दो प्रतिशत और रबी फसलों के लिए 1.5 प्रतिशत है। किसान के हिस्से के बाद बची बीमा किस्त केंद्र और राज्य सरकार की ओर से बराबर सब्सिडी देकर वहन की जाती है।
इस फसल बीमा योजना में स्थानीय आपदाएं, कम बारिश या प्रतिकूल मौसमी परिस्थितियों के की वजह से बुवाई के बाद अंकुरण खराब होने, पककर तैयार खड़ी फसल के नुकसान या कटाई के बाद के नुकसान को कवर किया जाता है। कटाई के बाद अधिकतम दो सप्ताह तक ही फसल को बीमा के अंतर्गत कवर किया जा सकता है। .
सिवाजू सुब्बियान ने इस केंद्रीय योजना के तहत ही अपनी धान की फसल का बीमा कराया था। उन्हीं की तरह चोलगंकुडिकाडु गांव में धान की खेती करने वाले एक अन्य किसान प्रभाकरण बालासुब्रमण्यन भी खासे परेशान हैं। इनकी दावा राशि भी पिछले एक साल से लंबित पड़ी है।
बेमेल डेटा और मुआवजे में देरी
बालासुब्रमण्यन ने गांव कनेक्शन को बताया, “जब भी हम फसल बीमा पोर्टल में अपनी डिटेल डालते हैं, तो लिखा आता है कि हमारे आवेदन का सत्यापन लंबित है।” वह आगे कहते हैं, “हमने समय पर अपने प्रीमियम का भुगतान किया और बैंक (तंजावुर सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक) ने जो भी डिटेल मांगी थी वो हमने उन्हें दी थीं। लेकिन अब बीमा अधिकारियों का कहना है कि हमने बैंक और क्लेम के लिए जो डिटेल (भूमि-अभिलेख) दी हैं वो अलग-अलग है। एक दूसरे से मेल नहीं खातीं। जिस कारण हमारा आवेदन अभी भी रुका हुआ है।”
बालासुब्रमण्यम द्वारा दिए गए विवरण के अनुसार, उन्होंने अपनी धान- II फसल के बीमा के लिए 1697 रुपये के प्रीमियम का भुगतान किया था। यह साल 2020 के रबी सीजन में भरा गया था। प्रीमियम का भुगतान इफको-टोकियो जनरल इंश्योरेंस कंपनी को किया गया था। उन्हें सरकार की तरफ से 21,948 रुपये की प्रीमियम सब्सिडी भी दी गई। बालासुब्रमण्यम के अनुसार, लेकिन वह बीमा दावे के लिए आवेदन नहीं कर सकते क्योंकि उसके विवरण को बैंक द्वारा संसाधित किया जाना बाकी है।
किसानों ने PMFBY योजना में नामांकित होने के लिए अपने सारी डिटेल्स बैंक को दी थीं। लेकिन बैंक ने जो जानकारी अपलोड की वो किसानों द्वारा उपलब्ध कराए गए विवरण से अलग थी।
बालासुब्रमण्यम जैसे कुछ मामलों में, स्वामित्व वाली भूमि के बारे में दिया गया डेटा गलत था जबकि सुब्बियन के मामले में विवरण बिल्कुल भी दर्ज नहीं किया गया था। इसलिए, जब उन्होंने बीमा कंपनी में अपनी-अपनी जमीन के दावे के लिए आवेदन करने की कोशिश की, तो उनके दावों को खारिज कर दिया गया। पोर्टल पर उपलब्ध कराए गए विवरण किसानों द्वारा मांगे गए दावे से मेल नहीं खाते।
खबरों के अनुसार, 28 अक्टूबर को कावेरी डेल्टा जिलों के किसान संघों के संघ ने केंद्र सरकार से इस योजना में कमियों को दूर करने का आग्रह किया था, जो किसानों के बजाय बीमा कंपनियों के पक्ष में थी।
ख़बरों के मुताबिक, फेडरेशन के महासचिव अरूपथी कल्याणम ने प्रधान मंत्री से किसानों के हितों की रक्षा के लिए योजना के तहत न्यूनतम मुआवज़े को बीमा राशि का 20 प्रतिशत तक रखने का आग्रह किया है। उन्होंने दावा किया कि तमिलनाडु में बीमा कंपनियों ने 1.3 मिलियन किसानों से 3,176.53 मिलियन रुपये के फसल बीमा प्रीमियम के तौर पर सीधे तौर पर कमाई की थी। सिर्फ 0.6 मिलियन किसानों को 15,970 मिलियन रुपये के मुआवजे का भुगतान किया था।
फसल बीमा योजना ग्रामीण ऋण को कैसे प्रभावित करती है? इसका मूल्यांकन करते हुए शोधकर्ता रुचिबा राय ने ‘प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना: भारत की फसल बीमा योजना का एक आकलन’ शीर्षक से अपने पेपर में लिखा है कि PMFBY योजना की प्रभावशीलता पर बीमा कंपनियों और नियामकों को बहुत ध्यान देने की जरूरत है। रुचिबा राय ORF आनलाइन की एक सहयोगी शोधकर्ता हैं। पेपर में कहा गया है, ” मुआवजे के लिए किए गए दावों को सही तरीके से नहीं देखा जा रहा है। बीमा कंपनियां किसानों को लाभ पहुंचाए बिना ज्यादा मुनाफा कमा रही हैं। इनकी जांच नहीं की जा रही है। यह वित्तीय क्षेत्र की विश्वसनीयता को खत्म कर देगा। एक विश्वसनीय वित्तीय क्षेत्र के बिना, ग्रामीण बैंकों की शाख दांव पर लग जाएगी। यह स्थिति ग्रामीण-ऋण को प्रभावित करेगी और कृषि उत्पादकता में और गिरावट ला सकती है।”
इसके अलावा, एक अन्य खबर के अनुसार, पांच सालों में इस योजना से 83 मिलियन किसानों को फायदा हुआ है। हालांकि छोटे किसानों का एक बड़ा हिस्सा अभी भी फसल बीमा नेटवर्क से बाहर है। योजना में खरीफ की फसल के लिए 2018 में सीमांत किसानों का प्रतिशत 18.08 था जो 2020 में घटकर 16.55 प्रतिशत हो गया। जबकि छोटे किसानों की भागीदारी 63-68 प्रतिशत के बीच है।
गांव कनेक्शन ने तंजावुर के जिला कलेक्टर दिनेश पोनराज ओलिवर से बात करने की कोशिश की। लेकिन उन्होंने इस मुद्दे पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। उन्होंने इस बारे में बीमा कंपनी इफको टोकियो से संपर्क करने के लिए कहा। लेकिन कई बार प्रयास करने के बाद भी इफको टोकियो के क्षेत्रीय प्रमुख एस. शिवराज से बात नहीं हो पाई। वह टिप्पणी करने के लिए उपलब्ध नहीं थे।
चक्रवात से राहत नहीं
सुब्बियन भाग्यशाली रहे जिन्हें उनकी फसल के नुकसान के लिए राज्य सरकार से निवार चक्रवात राहत राशि के तौर पर 15,000 रुपये पर मिल गए। लेकिन मुर्गेशन दुरईमानिकम जैसे कई किसानों को तो राहत राशि भी नहीं मिल पाई है।
दुरईमानिकम के पास चोलगंकुडिकाडु गांव में करीब तीन एकड़ जमीन है, जहां वह धान की खेती करते हैं। बीमा के लिए उन्होंने 1,500 रुपये का प्रीमियम दिया था। 40 वर्षीय किसान के अनुसार, पिछले नवंबर में आए चक्रवात के कारण उनकी धान की फसल बर्बाद हो गई थी। दुरईमानिकम ने गांव कनेक्शन को बताया कि न तो उनकी बर्बाद हो चुकी फसल के लिए कोई राहत राशि का भुगतान किया गया और न ही उन्हें अपनी फसलों के लिए कोई मुआवजा मिला है।
दुरईमानिकम अपने परिवार में अकेले कमाने वाले हैं। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, ” खेत के अलावा, मेरे पास गाय भी हैं, जिससे मेरी थोड़ी-बहुत आमदनी हो जाती है। इस साल भी फसल से कुछ अच्छी कमाई होने की उम्मीद कम ही है। पिछले हफ्ते से बारिश हो रही है। अगर बारिश नहीं रुकी तो हमारी फसल बर्बाद हो जाएगी।”
अनुवाद: संघप्रिया मौर्या