यूपी: आलू की कीमतों में गिरावट, कोल्ड स्टोरेज के लिए कतार में लगे हताश किसान

होली के त्योहार की खिलखिलाहट भी उत्तर प्रदेश में आलू किसानों के चेहरे पर खुशी लाने में विफल रही है। घटती कीमतें, कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं की कमी और बढ़ते तापमान ने उन्हें मझधार में छोड़ दिया है।

Virendra SinghVirendra Singh   10 March 2023 7:36 AM GMT

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बाराबंकी, उत्तर प्रदेश। 6 मार्च की सुबह अरविंद कुमार वर्मा बाहुबली कोल्ड स्टोरेज पहुंचे गए थे, लेकिन फिर भी, उन्हें आलू उतारने की इजाजत नहीं दी गई। सीतापुर जिले के सुल्तानपुर ब्लॉक के रहने वाला यह किसान अपनी आलू की फसल का स्टॉक करने के लिए 45 किलोमीटर की दूरी तय करके यहां आया था।

40 वर्षीय वर्मा ने गाँव कनेक्शन को बताया, “अधिकारियों ने 11 बोरियों के लिए टोकन जारी किए थे, जबकि मैंने 1,500 बोरियों के बराबर आलू खेत से खोदकर निकाला है। एक दिन बाद होली थी तो मुझे अपनी फसल की रखवाली के लिए कोल्ड स्टोरेज में रात बितानी पड़ी।"

कुछ ऐसी ही कहानी बाराबंकी में रहने वाले किसान रोहित कुमार वर्मा की है। उन्होंने पिछले सप्ताह अपनी आलू की खुदाई की तो उन्हें कुछ मुनाफे की उम्मीद थी। लेकिन जब वह कोल्ड स्टोरेज पहुंचे तो उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया।


अंकबा गाँव के रोहित कुमार वर्मा ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैंने एक एकड़ जमीन पर आलू लगाए और इतने आलू उगाए कि एक हजार बोरा भर जाए (हर बोरी में 50 किलो आलू होता है)। लेकिन, अभी बेचने के लिए बाजार की कीमतें बहुत कम हैं और मुझे कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं की सख्त जरूरत है। लेकिन मुझे अपनी उपज को स्थानीय भंडारण में रखने की इजाजत नहीं मिली है।” वह मार्च की शुरुआत में तेजी से बढ़ती गर्मी को लेकर खासे चिंतित हैं। यह गर्मी उनके आलू को खराब कर सकती है।

उत्तर प्रदेश के सैकड़ों हजार आलू किसानों को इस साल भारी नुकसान का डर सता रहा है। उत्तर प्रदेश भारत का सबसे अधिक आलू उत्पादक राज्य है, इसके बाद पश्चिम बंगाल और बिहार का नंबर आता है। वर्मा के मुताबिक, पिछले साल थोक बाजार मूल्य 600 रुपये से 1,000 रुपये प्रति क्विंटल (100किलोग्राम) के बीच था। इस सीजन में यह 300 रुपये प्रति क्विंटल यानी 3 रुपये प्रति किलो से ऊपर नहीं गया है। इससे तो आलू की फसल की उत्पादन लागत भी कवर नहीं पा रही है।

वर्मा आगे कहते हैं, “इन कम कीमतों के कारण संकट पैदा हो गया है। कोई भी किसान अपनी उपज बेचना नहीं चाहता है। हम सभी अपनी उपज का कुछ हिस्सा कोल्ड स्टोरेज में रखने की उम्मीद में वहां जा रहे हैं। लेकिन, इस साल भंडारागारों ने घोषणा की है कि वे पिछले साल की तुलना में 15 फीसदी कम आलू लेंगे।'

राज्य के दो प्रमुख आलू उत्पादक क्षेत्रों- सीतापुर और फर्रुखाबाद जिले- के किसान भी परेशान हैं।

पिछले तीन सालों में आलू की कीमतें अच्छी थीं। इसलिए ऐसा लग रहा था कि होली के त्यौहार से पहले उन्हें अपनी फसल की अच्छी कीमतें मिल जाएगीं। लेकिन होली भी उत्तर प्रदेश के आलू किसानों के लिए खुशी लाने में विफल रही है। कम कीमत, कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं की कमी और बढ़ते तापमान ने उन्हें संकट में डाल दिया है। कई किसानों ने इस बार अधिक पैसे कमाने की उम्मीद में अपना उत्पादन काफी बढ़ा दिया था।


सीतापुर के रामपुर मथुरा ब्लॉक के एक किसान हरिनाम मौर्य ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैं आमतौर पर 12 एकड़ जमीन पर आलू की खेती करता हूं। लेकिन इस साल मैंने 15 एकड़ जमीन में आलू बोया है। लाखों अन्य किसानों ने भी ऐसा ही किया। अब, कोल्ड स्टोरेज में जगह कम पड़ रही है और अधिकारियों की तरफ से भी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है।"

फर्रुखाबाद सिंह के किसान अन्नू सिंह गाँव कनेक्शन को बताते हैं, “मैं पिछले दो हफ्तों से कोल्ड स्टोरेज के चक्कर काट रहा हूं। इस गर्मी में आलू सड़ने लगे हैं।"

कोल्ड स्टोरेज की कमी- हमेशा बनी रहने वाली एक समस्या

भारतीय किसानों द्वारा उगाई गई फसल का एक बड़ा हिस्सा कटाई के बाद होने वाले नुकसान के चलते उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंच पाता है। और इसकी सबसे बड़ी वजह अपर्याप्त कोल्ड स्टोरेज सुविधाए हैं।

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार, भारत में हर साल 8.3 बिलियन अमरीकी डालर की कीमत के ताजे फलों और सब्जियों का नुकसान होता है।

केंद्र सरकार के भारतीय खाद्य निगम ने इन नुकसानों को 15 फीसदी आंका है। हालांकि नुकसान के आंकड़े अलग-अलग हैं, फिर भी वे तत्काल कार्रवाई की मांग करने के लिए काफी खतरनाक स्तर पर पहुंच चुके हैं।


कूल कोएलिशन के मुताबिक, भारत में हर साल अपर्याप्त भंडारण सुविधाओं और ऊर्जा बुनियादी ढांचे की कमी के कारण किसानों को फसल कटाई के बाद लगभग 12,520 मिलियन अमरीकी डालर का नुकसान उठाना पड़ता है। यह चिंताजनक है क्योंकि देश में लगभग 82 प्रतिशत किसान छोटे और सीमांत किसान हैं जिनके पास खेती के लिए दो हेक्टेयर से भी कम जमीन है।

अधिकारी ने पर्याप्त भंडारण क्षमता का दावा किया

बाराबंकी में जिला बागवानी अधिकारी महेश कुमार श्रीवास्तव ने कोल्ड स्टोरेज में जगह कम होने की आशंका को दूर करते हुए कहा कि जल्द ही और कोल्ड स्टोरेज भी चालू हो जाएंगे।

महेश कुमार श्रीवास्तव ने गाँव कनेक्शन को बताया, “बाराबंकी में लगभग 19,500 हेक्टेयर जमीन पर आलू की खेती की जाती है और वार्षिक उत्पादन लगभग 600,000 मीट्रिक टन है। जिले में 45 कोल्ड स्टोरेज चल रहे हैं, जिनकी भंडारण क्षमता लगभग 485,000 मीट्रिक टन है।" उन्होंने आगे कहा, “इसके अलावा इस साल पांच अतिरिक्त कोल्ड स्टोरेज का निर्माण किया गया है और वे इसी सप्ताह चालू हो जाएंगे। किसान जल्दबाजी न करें। प्रशासन सरप्लस आलू को स्टोर करने के लिए लगातार काम कर रहा है।”

जिला होर्टिकल्चर अधिकारी ने कहा, “हमारी भंडारण क्षमता का 50 प्रतिशत पूरा हो चुका है। कोल्ड स्टोरेज में अपनी उपज रखने वाले किसानों से हम पिछले साल की तुलना में 15 फीसदी कम आलू ले रहे हैं। क्योंकि इस साल कई किसानों ने पहली बार आलू का उत्पादन किया है और हमें उन्हें भी समान अवसर देना चाहते हैं।”

आवारा पशुओं का खतरा

अयोध्या जिले के भारतीय किसान यूनियन के जिलाध्यक्ष अनिल कुमार वर्मा ने गाँव कनेक्शन को बताया, “आलू के ज्यादा उत्पादन के पीछे आवारा मवेशियों के खतरे से इंकार नहीं किया जा सकता है। वे नियमित रूप से फसलों को बर्बाद करते रहे हैं। किसानों में डर इस कदर व्याप्त है कि वे खड़ी फसल(standing crops) बोने के लिए उत्सुक नहीं हैं।"

क्योंकि आलू जमीन के अंदर उगता है तो उसके आवारा मवेशियों द्वारा नुकसान पहुंचाए जाने की संभावना न के बराबर होती है। इसलिए आलू का अधिक उत्पादन हुआ है और इस वजह से कीमतों में गिरावट आई है।

भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में सैकड़ों हजारों किसान आवारा पशुओं से अपनी फसलों बचाने के लिए संघर्ष करते रहे हैं। 20वीं पशुधन गणना-2019 अखिल भारतीय रिपोर्ट के तहत संकलित आंकड़ों पर एक नजर डालने से राज्य में बढ़ती समस्या का पता चलता है।

जहां देश में 2012 से 2019 के बीच आवारा पशुओं की संख्या में 3.2 प्रतिशत की कमी आई है, वहीं इस दौरान उत्तर प्रदेश में 17.34 प्रतिशत की भारी वृद्धि दर्ज की गई है। 2019 के पशुधन जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में 11.8 लाख से ज्यादा आवारा मवेशी हैं।

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