अक्टूबर महीने में किसान आलू की बुवाई शुरू कर देते हैं, कई बार महँगा बीज-खाद लगाने के बाद भी थोड़ी सी लापरवाही से नुकसान उठाना पड़ जाता है। आलू में लगने वाली कुछ ऐसी बीमारियाँ हैं, जिनका प्रबंधन किसान पहले ही करके नुकसान से बच सकते हैं।
आलू में लगने वाली एक प्रमुख बीमारी पछेती झुलसा भी है। यह बीमारी 19वीं सदी के मध्य में कुख्यात आयरिश आलू अकाल के लिए ज़िम्मेदार थी, जिससे बड़े पैमाने पर फ़सल बर्बाद हुई और अकाल पड़ा। तब से, वैश्विक स्तर पर आलू उत्पादकों के लिए लेट ब्लाइट एक प्रमुख चिंता का विषय बना हुआ है।
भारत में आलू साल भर उगाई जाने वाली एक महत्त्वपूर्ण फ़सल है। आलू का प्रयोग लगभग सभी परिवारों में किसी न किसी रूप में किया जाता है। इसे सब्जियों का राजा कहते हैं। आलू कम समय में पैदा होने वाली फ़सल है। इस में स्टार्च, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन विटामिन सी और खनिज लवण काफी मात्रा में होने के कारण इसे कुपोषण की समस्या के समाधान का एक अच्छा साधन माना जाता है।
भारत में आलू की खेती लगभग 2.4 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती है। आज के दौर में इस का सालाना उत्पादन 24.4 लाख टन हो गया है। इस समय भारत दुनिया में आलू के क्षेत्रफल के आधार पर चौथे और उत्पादन के आधार पर पांचवें स्थान पर है। आलू की फ़सल को झुलसा रोगों से सबसे ज़्यादा नुकसान होता है। आलू की सफल खेती के लिए ज़रूरी है कि समय से आलू की पछेती झुलसा रोग का प्रबंधन किया जाए।
लेट ब्लाइट के लक्षण विशिष्ट और पहचानने में आसान होते हैं। जब वातावरण में नमी और रोशनी कम होती है और कई दिनों तक बरसात या बरसात जैसा माहौल होता है, तब इस रोग का प्रकोप पौधे पर पत्तियों से शुरू होता है। यह रोग 4 से 5 दिनों के अंदर पौधों की सभी हरी पत्तियों को नष्ट कर सकता है। पत्तियों की निचली सतहों पर सफेद रंग के गोले गोले बन जाते हैं, जो बाद में भूरे और काले हो जाते हैं।
पत्तियों के बीमार होने से आलू के कंदों का आकार छोटा हो जाता है और उत्पादन में कमी आ जाती है। इस के लिए 20-21 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान मुनासिब होता है। आर्द्रता इसे बढ़ाने में मदद करती है।
आलू की सफल खेती के लिए आवश्यक है इस रोग के बारे में जाने और प्रबंधन के लिए ज़रूरी फफूंदनाशक पहले से खरीद कर रख लें और समय से उपयोग करें नहीं तो रोग लगने के बाद यह आपको इतना समय नहीं देगा की आप तैयारी करें। पूरी फसल नष्ट होने के लिए 4 से 5 दिन बहुत है।
झुलसा रोग से कैसे करें बचाव
लेट ब्लाइट का प्रबंधन करना एक जटिल चुनौती है। फसल चक्र, प्रतिरोधी किस्मों को रोपना और अच्छी स्वच्छता बनाए रखने जैसी सांस्कृतिक प्रथाएं संक्रमण के जोखिम को कम करने में मदद कर सकती हैं। फफूंदनाशी लेट ब्लाइट को नियंत्रित करने के लिए एक सामान्य उपाय है, लेकिन जैसे-जैसे रोगज़नक़ प्रतिरोध विकसित करता है, उनकी प्रभावशीलता कम हो जाती है। एकीकृत कीट प्रबंधन (आईपीएम) दृष्टिकोण, जो विभिन्न रणनीतियों को जोड़ते हैं, अधिक टिकाऊ समाधान प्रदान करते हैं।
जिन किसानों ने अभी तक आलू की बुवाई नहीं की है वे मेटालेक्सिल और मैनकोज़ेब मिश्रित फफूंदीनाशक की 1.5 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर उसमें बीजों को आधे घंटे डूबा कर उपचारित करने के बाद छाया में सुखा कर बुवाई करें।
जिन्होंने फफूंदनाशक दवा का छिड़काव नहीं किया है या जिन खेतों में झुलसा बीमारी नहीं हुई है, उन सभी को सलाह है कि मैंकोजेब युक्त फफूंदनाशक 0.2 प्रतिशत की दर से यानी दो ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
एक बार रोग के लक्षण दिखाई देने के बाद मैनकोजेब देने से उसपर कोई असर नहीं होगा, इसलिए जिन खेतों में बीमारी के लक्षण दिखने लगे हों उनमें साइमोइक्सेनील मैनकोजेब दवा की 3 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। इसी प्रकार फेनोमेडोन मैनकोजेब 3 ग्राम प्रति लीटर में घोलकर छिड़काव कर सकते हैं।
मेटालैक्सिल और मैनकोज़ेब मिश्रित दवा की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर भी छिड़काव किया जा सकता है। एक हेक्टेयर में 800 से लेकर 1000 लीटर दवा के घोल की आवश्यकता होगी। छिड़काव करते समय पैकेट पर लिखे सभी निर्देशों का पूरा पालन करें।