जब अपने गाँव-घर पर रहकर खेती से जुड़ा कोई व्यवसाय शुरू कर कमाई कर सकते हैं; तब नौकरी की तलाश में बाहर जाने की क्या ज़रूरत है? यूपी के बाराबंकी जिले के दौलतपुर गाँव के किसान अमरेंद्र सिंह की पहचान उनके जिले ही नहीं पूरे प्रदेश में है। करीब 14-15 साल पहले उन्होंने परंपरागत खेती छोड़कर आधुनिक खेती शुरू की, जिससे उन्हें फायदा भी हुआ। आज वो अपनी यात्रा साझा कर रहे हैं, जिससे दूसरे लोग भी इसे अपना सकें।
फसल विविधीकरण की अहमियत
कृषि के क्षेत्र में कदम रखने वाले किसी भी नए व्यक्ति के लिए सबसे महत्वपूर्ण सलाह यह है कि वे एक ही फसल पर निर्भर न रहें। विभिन्न फसलों को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लगाकर खेती की जाए, ताकि अगर एक फसल में नुकसान हो, तो दूसरी फसल से उसकी भरपाई की जा सके। इससे न केवल आपकी ज़रूरतें पूरी होती हैं, बल्कि दूसरी जगह जाकर नौकरी करने की मजबूरी भी खत्म हो जाती है।
केले और सहफसली खेती
मेरी खेती की यात्रा की शुरुआत केले की खेती से हुई। इसके साथ मैंने सहफसल के रूप में हल्दी, शिमला मिर्च, स्ट्रॉबेरी, और आचारी मिर्च जैसे फलों और सब्जियों की खेती की। सहफसली खेती से न केवल हमारी लागत कम हुई, बल्कि मुनाफा भी बढ़ा। केले के साथ जिमिकंद और फूलगोभी जैसी फसलें भी लगाई जा सकती हैं, जिससे लागत में कमी आती है और लाभ दोगुना हो जाता है।
युवाओं को गाँव में रोजगार
मैंने देखा कि हमारे गाँव के कई युवा रोजगार की तलाश में बाहर जा रहे थे। इसलिए मैंने उन्हें खेती में शामिल किया और उन्हें समझाया कि खेती से उनकी सभी ज़रूरतें पूरी हो सकती हैं। इसके बाद कई युवा इस दिशा में आगे बढ़े और आज हमारे साथ हज़ारों किसान जुड़े हुए हैं, जो फल और सब्जियों की खेती कर रहे हैं।
बाजार की समझ और फसल चयन
खेती करते समय सबसे महत्वपूर्ण है कि आप अपने आसपास के बाजार की मांग को समझें। किस फसल की मांग ज्यादा है और उसे कब बाजार में बेचा जा सकता है, यह ध्यान में रखना जरूरी है। फसलों का चुनाव मौसम के अनुसार करें और समय पर बाजार तक पहुंचाएं। खासकर सर्दियों में शिमला मिर्च, आचारी मिर्च, और गोभी जैसी फसलें लाभकारी साबित होती हैं।
फसल की लागत और मुनाफा
सहफसल के रूप में की गई खेती से मुनाफा बढ़ता है। उदाहरण के लिए, अगर केले की खेती के साथ हल्दी या जिमिकंद की खेती की जाए, तो लागत का 80% तक सहफसल से ही निकल आता है। इससे केले की खेती में जो लागत लगती है, वह भी कम हो जाती है और लाभ बढ़ता है। इसी तरह, तरबूज और खरबूजे की खेती को स्ट्रॉबेरी के बेड पर किया जा सकता है, जिससे एक ही समय में दो फसलों की पैदावार होती है।
चुनौतियां और सफलताएँ
जब मैंने केले और तरबूज की खेती शुरू की, तो शुरुआत में हमें बाजार ढूंढने में बहुत कठिनाई हुई। लोगों को यह समझाना भी चुनौती थी कि ये फसलें किस तरह की हैं और इतनी महंगी क्यों हैं। लेकिन जैसे-जैसे लोगों ने हमारे उत्पादों को चखा, उनकी समझ बढ़ी और हमारी फसलों की मांग भी बढ़ती गई। आज हमारे फसलें उत्तर प्रदेश के कई जिलों में बिकती हैं और हमारे साथ हजारों किसान जुड़ चुके हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में भी सुधार हुआ है।
खेती में सफल होने के लिए फसल विविधीकरण, सहफसल की खेती, और बाजार की मांग का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। अगर शुरुआत छोटे स्तर से की जाए और सही समय पर फसल को बाजार तक पहुंचाया जाए, तो खेती से अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है।