महोबा (उत्तर प्रदेश)। लखनऊ से करीब 230 किलोमीटर दूर खेतों में चमकते सोलर पैनल दूर से बता देते हैं ये महोबा है। उत्तर प्रदेश का वो गाँव जहाँ सबसे ज़्यादा सोलर पम्प लगे हैं। लेकिन गुजरात की तरह यहाँ के किसानों को इनसे बिजली के बदले एक रूपये का भी मुनाफा नहीं होता है। वजह है खुद यहाँ के किसान। ज़्यादातर को इसके बारे में पूरी जानकारी नहीं है।
जैतपुर ब्लॉक के महोबा में चिलचिलाती गर्मी में पारा बेशक 40 डिग्री के पार चला गया हो, खेतों के बीच गर्मी में खड़े सौर पम्प के पैनल होल्डर ख़ाली नज़र आ रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस गाँव में सोलर पम्प ने लोगों की जिंदगी आसान कर दी है। लेकिन सिर्फ़ सिंचाई तक। काँच से ढके इसके पैनल पर जब सूरज की रोशनी पड़ती है तो वह उसकी ऊर्जा को बिजली में बदल देती है जिससे सिंचाई के लिए लगे पम्प को किसानों के लिए चलाना आसान हो जाता है।
ऐसा ही बिना पैलन का सोलर होल्डर राजेंद्र तिवारी के खेत में लगा है जिसका सोलर सिंचाई पम्पसेट वहाँ से तीन किलोमीटर दूर महुआ भंड गाँव में उनके घर के पास लगा है।
गर्मी के महीनों में जब ज़मीन का पानी नीचे चला जाता है और उन दिनों कोई फ़सल नहीं बोनी होती है तब 25 साल के राजेंद्र सोलर पैनल को उतार कर ट्रक की मदद से अपने घर में सुरक्षित रख देते हैं।
“जब सोलर पम्प का इस्तेमाल नहीं होता है तब इनके पैनल की रखवाली वहाँ कौन करेगा?” तिवारी मुस्कुराते हुए कहते हैं। उन्होंने 1 लाख 10 हज़ार रुपए में 5 हॉर्स पॉवर का सोलर पम्प लगवाया है। उनकी तरह महोबा के कई किसान हैं जो बाद में अफ़सोस करने से बेहतर समय रहते पैनल को सुरक्षित रख लेने में समझदारी मानते हैं।
गाँवों में सिंचाई के लिए अबतक इस्तेमाल होते आ रहे डीज़ल पम्प सेट को हटाने में सोलर सिंचाई पम्प की बड़ी भूमिका रही है। केंद्र सरकार की पीएम कुसुम (प्रधान मँत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाअभियान) योजना से उन किसानों को सबसे ज़्यादा फायदा हुआ है जिन्हें सिंचाई के लिए काफी पैसे ख़र्च करने पड़ते थे। 2019 में पीएम कुसुम योजना के शुरू होने के बाद से प्रदेश के सूखा प्रभावित बुंदेलखंड के सात ज़िलों में से एक महोबा में सबसे अधिक 1 हज़ार 304 रजिस्टर्ड सोलर पम्पसेट लगे हैं।
लेकिन अधिकतर करीब छह महीने ये सोलर पम्प बंद ही रहते हैं। ख़ासकर अप्रैल और सितम्बर के बीच में। अप्रैल और मई में खरीफ की अगली फ़सल के लिए खेत को तैयार होने के लिए ख़ाली छोड़ना होता है। जबकि जून से सितम्बर सिंचाई की ज़रूरत मानसून से पूरी हो जाती है। इन महीनों में सोलर पम्प की कोई ज़रूरत नहीं पड़ती है।
महुआ भंड गाँव से 13 किलोमीटर दूर लमोरा गाँव में महेंद्र कुमार रायकुंवर 5 बीघा अपने खेत में लगे मूँग कटने का इंतज़ार कर रहे हैं। इसके बाद वे भी सोलर पैनल को लोहे के स्टैंड से निकाल कर वहाँ से आधा किलोमीटर दूर उसे अपने घर में सुरक्षित रख देंगे।
महेंद्र बताते हैं मार्च 2019 में उन्होंने तीन हॉर्स पॉवर का सोलर पम्प लगवाया था। उसके बाद से हमेशा फ़सल कटने के बाद परिवार के पाँच लोग मिलकर उसे उतारते और फिर लगाते हैं।
“फ़सल कटने के बाद बारिश शुरू हो जाती है फिर इन सोलर पैनल का कोई काम नहीं होता है, तो क्यों खेत में इसे छोड़े? पूरे समय इसकी सुरक्षा का ही तनाव रहेगा।” 32 साल के महेंद्र ने गाँव कनेक्शन को बताया।
नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने भी इस बात को महसूस किया है सिंचाई के लिए लगे इतने महँगे सोलर पम्प सेट साल में करीब 150 दिन काम में नहीं लिए जाते हैं।
कुसुम योजना के तहत सौर सिंचाई पम्पसेट पर उत्तर प्रदेश में 60 प्रतिशत सब्सिडी (केंद्र और राज्य प्रत्येक से 30 प्रतिशत) है। बाकी पैसा उसे लेने वाले किसान को देना होता है।
महोबा के कुल 1,304 सोलर पम्प में से ज़्यादातर तीन हॉर्स पॉवर के हैं जो सरकार की तरफ से मिलने वाली सब्सिडी के साथ 116,710 रुपए में एक किसान को पड़ता है, जबकि पाँच हॉर्स पॉवर वाले सोलर पम्प की कीमत 163,882 रुपए है। राज्य और केंद्र सरकार की तरफ से करीब 15 करोड़ रुपए सब्सिडी के रूप में दिए जा रहे हैं।
हैरत की बात ये है कि करीब 6 महीने सोलर पम्प के इस्तेमाल नहीं होने को ज़्यादातर किसान घाटे का सौदा तो मानते हैं लेकिन उससे दूसरा काम कैसे ले सकते हैं इसकी ठीक- ठीक जानकारी सभी को नहीं है।
काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट के फेलो और डायरेक्टर अभिषेक जैन हालाँकि पूरे साल ज़मीन के पानी के इस्तेमाल को सही नहीं मानते हैं। वे कहते हैं, “सोलर पैनल का बंद रहना एक अलग बात है, क्योंकि आपके पास बिजली तैयार करने का एक साधन तो है भले आप उसका बहुत इस्तेमाल नहीं कर रहे हो।
लमोरा गाँव के किसान स्वामी प्रसाद कहते हैं, “हम चाहते हैं कि कोई बताए बाकी 6 महीने जब सोलर पम्प नहीं चलते हैं उनसे कैसे पैसा कमाया जाए? सुना है चारा काटने और थ्रेसर चलाने में भी इसका इस्तेमाल हो सकता है।”
तिंदौली गाँव की लक्ष्मी देवी का भी यही कहना है। उन्होंने पाँच हार्स पॉवर का सोलर पम्प लगाया है, लेकिन उसका सिंचाई के आलावा दूसरा काम नहीं है।
सीईईडब्ल्यू के अभिषेक जैन के मुताबिक, केंद्र सरकार यूनिवर्सल सोलर पावर कंट्रोलर्स को बढ़ावा देकर कम उपयोग वाले सौर सिंचाई पम्पसेट की समस्या को हल करने की कोशिश कर रही है।
अंतर्राष्ट्रीय जल प्रबंधन सँस्थान में जल-ऊर्जा-खाद्य नीति के वरिष्ठ शोधकर्ता शिल्प वर्मा का मानना है कि सौर पीवी सिस्टम का ऑन-ग्रिड कनेक्शन ही उसकी पूरी क्षमता का इस्तेमाल है। गुजरात में किसानों को सोलर पम्प के साथ बिजली उत्पादन का भी पूरा फायदा मिल रहा है।
वर्मा ने गाँव कनेक्शन को बताया, “गुजरात सरकार की तरफ से शुरू की गई सूर्यशक्ति किसान योजना (एसकेवाई) इसी कड़ी का अगला कदम है जिससे किसानों को काफी फायदा हो रहा है।” एसकेवाई योजना के तहत, किसान सौर पीवी प्रणाली के जरिए पैदा अतिरिक्त बिजली को ग्रिड में फीड कर सकते हैं। उन्हें 25 साल के तय समझौते के मुताबिक पहले सात साल 7 रुपये प्रति यूनिट बिजली और अगले 18 साल 3.5 रुपये प्रति यूनिट कमाते हैं।
हाल ही में सीईईडब्ल्यू और विल्ग्रो की तरफ से आजीविका को मज़बूत बनाने पर एक सेमीनार का आयोजन किया गया। जिसमें विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा मॉडल भी प्रदर्शित किया गया।
सब्ज़ियों को ताज़ा रखने में इस्तेमाल होने वाला सोलर ड्रायर हो या ओड़िशा के टसर सिल्क धागे को लपेटने का काम, पारम्परिक बिजली की जगह अब सोलर पॉवर से मशीने चल रही हैं।
“सोलर पैनलों का इस्तेमाल नहीं करना एक समस्या है। जब किसान पैनल को हटा देते हैं और ऑफ सीजन में चोरी से बचने के लिए इसे अपने घर में रख देते हैं उससे रखरखाव का बोझ भी बढ़ता है।” उत्तर प्रदेश में पीएम-कुसुम के अतिरिक्त निदेशक कृषि और नोडल अधिकारी सुरेश कुमार सिंह ने कहा।
यह आर्टिकल इंटरन्यूज़ के अर्थ जर्नलिज़्म नेटवर्क के सहयोग से तीन पार्ट सीरीज का दूसरा भाग है। आप यहां पहला भाग पढ़ सकते हैं।