महोबा, उत्तर प्रदेश। गंगी देवी की साड़ी में भले ही कई पैबंद लगे हों, लेकिन यह उनकी परेशानियों के आगे कम ही हैं। उन्हें अपने खेत की सिंचाई करने वाले बिजली के पंप पर हर साल 6,000 रुपये खर्च करने पड़ते हैं। जबकि उनकी आर्थिक स्थिति काफी खराब है। उन्होंने कहा, “पैसों की इतनी तंगी है कि कोई अभी मुझसे दस रुपये भी माँगे तो मेरे पास नहीं होंगे।”
महोबा ज़िले के बिलबाई गाँव की 55 साल की किसान को उस समय गहरे अंधकार में एक रोशनी की किरण नज़र आई, जब उन्होंने सौर सिंचाई पंपों के बारे में सुना। उन्हें पता चला कि ये पंप सूरज की ऊर्जा पर चलते हैं और चलाने की कोई लागत नहीं है। लेकिन, जब उन्होंने कृषि विभाग के एक अधिकारी से इसके बारे में पता किया तो, उन्हें तुरंत एहसास हो गया कि सोलर पंप उनके या उनकी तरह के किसानों के लिए नहीं हैं।
दरअसल, गंगी देवी की हिम्मत उस समय जवाब दे गई जब उन्हें बताया गया कि उत्तर प्रदेश के सूखाग्रस्त बुंदेलखंड क्षेत्र में अपनी तीन बीघा भूमि पर सौर सिंचाई पंप (एसआईपी) स्थापित करने के लिए लगभग 80,000 रुपये की अग्रिम लागत आएगी। उन्होंने कहा कि उनके पास इतने पैसे नहीं हैं।
यह अकेले गंगी देवी की हताश की कहानी नहीं है बल्कि इस क्षेत्र में कई छोटे (एक हेक्टेयर और दो हेक्टेयर के बीच की भूमि वाले) और सीमांत किसानों (एक हेक्टेयर से कम भूमि वाले) की दुर्दशा है। इन सभी को अपनी सिंचाई लागत में कटौती करने के लिए सौर सिंचाई पंप की जरूरत तो है, लेकिन वे इसके लिए पहले पैसा देने में असमर्थ हैं।
केंद्र सरकार अपनी पीएम-कुसुम (प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान) योजना के तहत डीज़ल पंपसेटों को बदलने के लिए एसआईपी के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रही है। लेकिन नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा दर्ज़ किए गए आंकड़े बताते हैं कि, “2022 तक 20 लाख एसआईपी स्थापित करने के अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्य के मुकाबले, 2021-22 तक सिर्फ 334,886 पंप ही स्थापित किए गए हैं।”
इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (आईईईएफए) की जून 2021 की रिपोर्ट में कहा गया है कि सौर पंपों की फायनेंसिंग एक समस्या बनी हुई है।
पीएम-कुसुम के तहत, केंद्र और राज्य सरकारें 60 प्रतिशत सब्सिडी (राज्य सरकार 30 प्रतिशत और केंद्र सरकार 30 प्रतिशत) देती हैं, और 40 प्रतिशत का भुगतान लाभार्थी किसान द्वारा किया जाता है। 40 में से 30 प्रतिशत के लिए बैंक लोन देता है।
रिपोर्ट में कहा गया है, “फिर भी, पंप की अग्रिम लागत में निवेश करना और औपचारिक बैंक लोन प्राप्त करना छोटे किसानों और सीमांत किसानों के लिए एक चुनौती बना हुआ है।”
सौर सिंचाई पंप की लागत 147,000 रुपये (2 हॉर्सपावर डीसी सबमर्सिबल) से लेकर 464,300 रुपये (10 हॉर्सपावर एसी सबमर्सिबल) तक होती है।
महोबा में भूलेख विभाग (राजस्व विभाग) के आंकड़ों के आधार पर, ज़िले के 157,887 किसानों में से 65 फीसदी छोटे और सीमांत किसान हैं। तो वहीं भूमिहीन किसानों की संख्या 11 प्रतिशत है।
राष्ट्रीय स्तर पर, छोटे और सीमांत किसान भारत के किसानों का 82 प्रतिशत हिस्सा हैं।
सौर पंपों को वित्तपोषित करना एक चुनौती
अधिकारी स्वीकार करते हैं कि किसानों का एक बड़ा तबका सौर सिंचाई पंप की अग्रिम लागत का खर्च उठा पाने में असमर्थ है। महोबा में कृषि विभाग के उप निदेशक और नोडल प्रमुख अभय सिंह यादव ने कहा, “यह एक बार में किए जाने वाला बड़ा पूंजी निवेश है, जो छोटे किसानों और सीमांत किसानों के लिए मुश्किल काम है।” उन्होंने कहा कि अगर सब्सिडी ज़्यादा होती है या किसान किस्तों में प्रारंभिक निवेश का भुगतान कर सकते हैं तो यह योजना ज़्यादा किसानों को अपनी ओर खींचती।
गंगी देवी अपने परिवार को बस किसी तरह से पाल रही हैं। उसकी ज़मीन से उनके परिवार का पेट भरने के लिए मटर और मूंग की ही पर्याप्त पैदावार हो पाती है। पैसे कमाने के लिए, वह निर्माण स्थलों या ईंट भट्टों पर छोटे-मोटे काम करती हैं । सौर सिंचाई पंप में 80,000 रुपये का निवेश करना या इतने पैसे जुटाना तो उनके लिए सपने में भी संभव नहीं है।
बिलबाई गाँव के नरेश कुमार भी सोचते हैं कि सौर ऊर्जा से चलने वाला सिंचाई पंप उनकी मदद कर सकता है। उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा, “लेकिन, मैं इतना पैसा कभी नहीं बचा पाउँगा।” अगर नरेश एक सौर पंप का खर्च उठाने में सक्षम होते, तो वह अपने डीज़ल से चलने वाले सिंचाई पंप को चलाने के लिए 30 लीटर ईंधन पर खर्च होने वाली राशि को तुरंत बचा लेते।
सीमांत किसान ने कहा, “मुझे अपनी एकड़ ज़मीन की सिंचाई के लिए हर साल 10,000 रुपये खर्च करने पड़ते हैं।” इसके अलावा उन्हें डीज़ल से चलने वाले पंपसेट की मरम्मत के लिए भी बार-बार पैसा उधार लेना पड़ता है।
पिछले साल, नरेश कुमार सिर्फ तीन क्विंटल चना, एक क्विंटल सरसों और अपने परिवार के लिए खाने लायक साग-सब्जियाँ ही उगा पाए थे, क्योंकि वे खेतों की ढंग से सिंचाई नहीं कर सके थे। बारिश का पैटर्न भी बदल रहा है। उन्होंने कहा, “पिछले साल, मैंने उपज से सिर्फ 15,000 रुपये कमाए थे और उसी पैसे से मुझे अपने परिवार के पाँच लोगों का भरण-पोषण करना था।”
उप निदेशक कृषि, महोबा के कार्यालय की तरफ से उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के आधार पर, पीएम-कुसुम के तहत सौर पंप के लिए पंजीकरण कराने के बाद 47 किसानों ने इस योजना को अपनाने का विचार छोड़ दिया।
पीएम-कुसुम पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करने के दस दिनों के बाद कन्फर्मेशन टोकन जारी होता है। पुष्टि के बाद, एक किसान को एक सप्ताह के भीतर कुल राशि का अपना हिस्सा (40 प्रतिशत) जमा करना होता है।
ड्रॉप-आउट दर को कम करने के लिए फरवरी 2023 से 5,000 रुपये की नॉन-रिफंडेबल राशि जमा करने की एक नई प्रणाली लागू की गई है।
अभय सिंह यादव ने गाँव कनेक्शन को बताया, “कई किसान वित्तीय सीमाओं के कारण पंजीकरण के बाद सोलर पंप लगाने का विचार छोड़ देते हैं। इससे लक्ष्य पाने की समय-सीमा बाधित होती थी।”
पॉवरिंग लाइवलीहुड्स, काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू), नई दिल्ली के फेलो और निदेशक अभिषेक जैन ने दोहराया कि सौर पंपों का वित्तपोषण एक बड़ी समस्या है जहाँ बहुत काम करने की ज़रूरत है ।
जैन ने कहा कि वित्त प्रवाह की कमी पीएम-कुसुम की तरफ किसानों के न जाने का एक प्रमुख कारण है।
कम क्षमता के सोलर पंप की ज़रूरत
महोबा में, कृषि विभाग को 3 हॉर्स पावर (एचपी) और 5 हॉर्स पावर के सौर सिंचाई पंप लगाने का लक्ष्य दिया गया है, जो काफी महँगे हैं और छोटे किसानों के लिए निवेश के लायक नहीं हैं। 3 एचपी के पंप की कीमत 193,460 रुपये है, किसान का हिस्सा 77,384 रुपये है और 5 एचपी के पंप की कीमत 273,137 रुपये है जिसमें किसान का हिस्सा 109,255 रुपये है। किसानों ने कहा कि वे कम क्षमता (2 एचपी या उससे कम) के सिंचाई पंप चाहते हैं क्योंकि उनके पास सिंचाई की कम जरूरतों के साथ छोटी जोतें हैं।
महोबा के जैतपुर प्रखंड के लमोरा गाँव के लखनलाल कुशवाहा के पास 1.2 हेक्टेयर ज़मीन है। वह सिंचाई का कोई साधन नहीं होने के कारण अपनी ज़मीन का एक हिस्सा परती छोड़ देते हैं। एक सौर सिंचाई पंप उनके लिए गेम चेंजिंग हो सकता है। वह कभी-कभी अपनी डीज़ल मोटर का उपयोग करते हैं और बाकी समय सिंचाई के लिए पानी खरीदते हैं और इसके लिए 600 रुपये प्रति बीघा (0.14 हेक्टेयर) का भुगतान करना पड़ता है।
50 साल के किसान ने कहा, “मेरे पास 200 फीट गहरा बोरवेल है जिसमें सिर्फ दो इंच तक पानी है। मेरे पास एक छोटा सा खेत है और मुझे एक छोटी बिजली की मोटर की ज़रूरत है।”
स्वामी प्रसाद लमोरा गाँव में एक जन सुविधा केंद्र (ऑनलाइन सुविधा केंद्र) चलाते हैं। वह स्थानीय किसानों को सरकार द्वारा संचालित योजनाओं से अपडेट रखने का काम करते हैं।
उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “यहाँ कई किसानों के पास छोटी जोत है और उन्हें 2 एचपी के पंप की ज़रूरत है, लेकिन महोबा में यह उपलब्ध नहीं है।”
कृषि और उत्तर प्रदेश में अतिरिक्त निदेशक सुरेश कुमार सिंह पीएम-कुसुम के नोडल अधिकारी हैं। उन्होंने कहा, “महोबा बुंदेलखंड क्षेत्र में स्थित है, जहाँ भूजल स्तर कम है, और 2 हार्सपावर और उससे कम की छोटी मोटरें ज़्यादा पानी नहीं खींच पाती हैं।”
लेकिन सीईईवी के विशेषज्ञ अभिषेक जैन इसका खंडन करते हैं। “यह निश्चित रूप से काम करेगा। उनका यह कहना कि उपयुक्त सौर-पंप चाहिए, पूरे बुंदेलखंड के लिए सही नहीं बैठता है। हर 50 मीटर पर स्थिति बदली हुई है। तो उसी गाँव में बोरवेल हो सकते हैं जो 3 एचपी के लिए और 2 एचपी के बोरेवेल के लिए बेहतर अनुकूल हैं।”
उन्होंने आगे बताया कि सीईईडब्ल्यू ने एमएनआरई को 2 एचपी, 1 एचपी और सब-1 एचपी के छोटे पंपों पर ध्यान केंद्रित करने का सुझाव दिया, ताकि छोटे किसानों और सीमांत किसानों को भी इसमें शामिल किया जा सके। यह कृषि समुदाय का एक बड़ा हिस्सा हैं।
रेफ्रेंस मॉडल पर काम
एक सामाजिक उद्यम ‘खेथवर्क्स’ छोटी जोत वाले किसानों के लिए तकनीक और उत्पाद तैयार कर रहा है। इससे किसानों को बेमेल मानसूनी बारिश और महँगी पम्पिंग से निपटने में मदद मिल रही है।
झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के धालभूनगढ़ गाँव में एक हेक्टेयर से कम ज़मीन के मालिक अकली टुडू ने खेतवर्क्स द्वारा दिए गए 0.34 हॉर्स पावर के सौर पंप में 26,000 रुपये की रियायती राशि का निवेश किया है।
35 साल के किसान गॉँव कनेक्शन को बताते हैं, “जब सिंचाई की ज़रूरत नहीं होती है तो मैं इसे अपने झोले में डाल देता हूँ और घर ले जाता हूँ ।”
टुडू के पोर्टेबल पंप में पानी के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए पॉँच तरह की अलग-अलग स्पीड है, जिसमें भूजल की कमी को ध्यान में रखते हुए 65 फीट पर स्वचालित कटऑफ है।
खेतवर्क्स के संस्थापक विक्टर लेस्नीवस्की ने कहा, “हम विशेष रूप से खुले सतह के रिचार्जिंग क्षेत्रों में छोटे और सीमांत किसानों को लक्षित कर रहे हैं। मौज़ूदा समय में हम लगभग 4,500 किसानों के साथ जुड़े हुए हैं।”
गुजरात के आनंद ज़िले के खेड़ा गॉँव में सौर सिंचाई पंपों के ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल के लिए एक और आशाजनक मॉडल सामने आ रहा है। फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी द्वारा 2019 से यह योजना चलाई जा रही है, जहाँ किसानों का एक समूह इन पंपों की लागत और सेवा साझा करता है। यह योजना सामुदायिक सौर सिंचाई पंपों को बढ़ावा दे रही है।
फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी के परियोजना प्रबंधक, देवभाई गंभलया ने कहा, “हम भूजल पर नज़र रखने के लिए बोरवेल के बजाय इन पंपों के लिए खुले कुओं का इस्तेमाल करते हैं। हम उन जल स्रोतों का भी इस्तेमाल नहीं करते हैं जिनका जल स्तर 110 फीट से कम है।”
पीएम-कुसुम के तहत, एसआईपी के लिए आवेदन करने के लिए ज़िला स्तर के भूजल विभाग से भूजल की उपस्थिति को प्रमाणित करने के लिए एक एनओसी की ज़रूरत होती है, लेकिन भूजल की गहराई की कोई सीमा निर्धारित नहीं है।
(इंटरन्यूज़ के अर्थ जर्नलिज्म नेटवर्क के समर्थन से लिखे जा रहे तीन-भागों की सीरीज में ये आखिरी लेख है। आप यहाँ पहला और दूसरा भाग भी पढ़ सकते हैं।)