सुपौल/अररिया (बिहार)। 30 दिसंबर की रात को 3:00 बजे ही गुदरी बाजार सुपौल में स्थित एक प्राइवेट दुकान पर सुपौल के बीना बभनगामा गांव के वार्ड नंबर 14 के शंकर यादव 3 बोरी यूरिया के लिए लाइन में लगे थे। जिन्हें 31 दिसंबर के दिन 12 बजे सिर्फ एक बोरी यूरिया मिली। अब वो 2.50किलो/कट्ठा (22 कट्टा- एक एकड़) यूरिया देने के बजाय 0.83किलो/कट्ठा यूरिया अपने खेतों में देंगे। शंकर को इस एक बोरा यूरिया के लिए 330 रूपये देने पड़े। जबकि सरकार के द्वारा यूरिया के लिए न्यूनतम मूल्य 266.50 रुपए है। साथ ही 1 किलो जिंक जबरदस्ती लेना पड़ा। क्योंकि जिंक के बिना यूरिया नहीं दी जा रही है। जिंक का दाम 70 रुपए किलो है।
शंकर यादव बताते हैं कि, “खेत में पटवन हुए सात-आठ दिन हो चुका है। खेत में इतनी नमी हैं कि अगर यूरिया नहीं देंगे तो गेहूं भी नहीं हो पाएगा। पिछले 7 दिनों से यूरिया पागल की तरह खोज रहा हूं। 500 रुपए बोरी भी मिलती तो ले लेता। लेकिन कहीं मिल नहीं रही है। इससे पहले सुपौल में भी 2 दिन लाइन में लगा था लेकिन नहीं हो पाया। अब जो मिला इसी में पूरे खेत में यूरिया छीट दूंगा।”
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उसी सुपौल जिला के किसनपुर प्रखंड के मझारी गांव के 73 वर्षीय किसान रुपेश मंडल बताते हैं, “266 रुपए प्रति बोरी मिलने वाला यूरिया 400-500 रुपए और 1,230 रुपए प्रति बोरी मिलने वाला DAP 1500-1600 में किसान लेगा तो ऐसे खेती करने से क्या फायदा?”
रुपेश मंडल के दो बेटे हैं, जो गुजरात के सूरत शहर में मजदूरी करते हैं। वह इस उम्र में लाइन लगातार उर्वरक लेने में असमर्थ हैं इसलिए अपने बेटे के कहने पर उन्होंने लगभग दोगुने रेट पर यूरिया और डीएपी खरीदकर डाला है।
रुपेश मंडल बताते हैं, “हमारे पास गेहूं की खेती के लिए करीब 80 कट्ठा (22 कट्ठा- 1 एकड़) जमीन है। हमने गेहूं के इस सीजन में करीब 4 बोरी डीएपी 1500/बोरी खरीदा। जो हमें गांव में ही ब्लैक (कालाबाजारी) से मिला था। साथ ही हमने 5 बोरी यूरिया भी उसी व्यक्ति के माध्यम से 400 रुपए प्रति बोरी के हिसाब से लिया था।” इसका मतलब है कि वो अब इसी सीजन में यूरिया-डीएपी के नाम पर 1750 रुपए अतिरिक्त चुका चुके हैं।
बिहार देश धान उत्पादक प्रमुख राज्यों में शामिल है, जहां की करीब 76 फीसदी आबादी कृषि कार्यों में लगी है। प्रदेश में करीब 79.46 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य में खेती होती है। बिहार में 104.32 लाख किसानों के पास कृषि भूमि है, जिसमें 82.9 प्रतिशत भूमि जोत सीमांत किसानों की है, 9.6 छोटे किसानों के हैं और केवल 7.5 फीसदी किसानों के पास ही दो हेक्टेयर से ज्यादा की जमीन है। पूरे राज्य में 10 लाख टन यूरिया की सालाना खपत है।
उवर्रक मंत्रालय के आंकड़ों केबिहार में 1 अक्टूबर 2021 से 31 दिसंबर 2021 तक 750.000 हजार मीट्रिक टन की जरुरत थी, जिसके मुकाबले 654.874 हजार मीट्रिक यूरिया की आपूर्ति हुई। वहीं 323.548 हजार मीट्रिक टन की जगह 311.404 हजार मीट्रिक टन डीएपी की उपलब्धता रही है जबकि इसी अवधि 156.452 एनपीकेस की 241.048 हजार मीट्रिक टन की आपूर्ति हुई, 127.741 की जगह 84.095 हजार मीट्रिक टन एमओपी की उपल्धता रही है। सभी नाइट्रोजन और फॉस्फेटिक उर्वरकों को मिलाकर बात करें तो 1 अक्टूबर से 31 दिसंबर तक 1337.419 हजार मीट्रिक टन के मुकाबले 1284.182 हजार मीट्रिक टन की उपलब्धता रही है।
देश के सबसे गरीब राज्यों में शामिल बिहार की भले ही 76 फीसदी आबादी कृषि कार्यों में लगी हो लेकिन यहां किसानों के पास सुविधाएं न के बराबर हैं। ये पूरा साल ही लगभग खाद संकट में बीता है। गेहूं सीजन से पहले धान के सीजन में किसान यूरिया के लिए भटक रहे थे, फिर गेहूं की बुवाई के वक्त डीएपी के लिए भटके। गांव कनेक्शन ने यूरिया की किल्लत और कालाबाजारी को लेकर 14 जुलाई को खबर प्रकाशित की थी। इसके अलावा गांव कनेक्शन ने 18 नवंबर को प्रकाशित खबर में बताया था आखिर देश में क्यों उर्वरक की किल्लत है। हालांकि इस दौरान भी केंद्रीय उर्वरक मंत्री मनखुख मंडाविया ने किल्लत से इनकार कर सिर्फ ट्रांसपोटेशन की दिक्कत की बात की थी।
“जिसने पूस की रात देखी ही नहीं, वो हल्कू का दर्द भला क्या जाने”
बिहार में खाद की स्थिति इतनी खराब हैं कि एक तरफ जहां पूरे बिहार में यूरिया के लिए किसान दिन-रात लाइन में लगे हुए हैं वहीं दूसरी तरफ बड़े-बड़े व्यवसाई दुकान बंद कर कर नववर्ष मनाने गए हुए हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शराब के मुक्ति के लिए परिवर्तन रैली निकाल रहे हैं। बिहार के अररिया और किशनगंज जिले में यूरिया के लिए छटपटाते किसानों पर हवाई फायरिंग हो रही है। उन पर आंसू गैस के गोले दागे जा रहे हैं।
बिहार के गरीब जिला किशनगंज के ठाकुरगंज प्रखंड के जागरुक किसान और किसान नेता मोहम्मद जाकिर जो अक्सर किसानों के हक के लिए आवाज उठाते रहते है, बताते हैं, “यूरिया का संकट अचानक पैदा नहीं होता। अखबार वाले लगातार यूरिया की कमी और इसको लेकर किसानों में बेचैनी की खबर से अवगत कराते हैं। कृषि मंत्री ने आश्वासन भी दिया था कि यूरिया की कमी तत्काल दूर होगी, लेकिन जिसने पूस की रात देखी ही नहीं, वो हल्कू का दर्द भला क्या जाने।”
“जिले में मात्र 20 से 25 प्रतिशत खाद ही आवंटित हो रहा है। मतलब प्रत्येक दिन 500 किसानों को खाद मिलनी चाहिए वहां 100 से 150 लोगों को ही खाद मिल पा रही है।” आगे मोहम्मद जाकिर बताते हैं।
किशनगंज के जिला कृषि पदाधिकारी प्रवीण कुमार झा फोन पर गांव कनेक्शन को बताते हैं कि, “पूरे बिहार में ही खाद का संकट है। हम लोगों को भी डिमांड से कम उपलब्ध हुआ है। इस सबके बावजूद जिले में खाद की कालाबाजारी न हो इसके लिए हम लोग प्रयास कर रहे हैं।”
खाद वितरण केंद्र पर भगदड़ में 7 महिलाएं घायल
पूरे बिहार में रबी फसल के सीजन में डीएपी खाद के बाद अब यूरिया की किल्लत से पूरे क्षेत्र में हाहाकार मचा हुआ है। 30 दिसंबर के दिन बिहार राज्य के अररिया जिला अंतर्गत नरपतगंज उच्च विद्यालय पर यूरिया के लिए करीब 3-4 हजार से ज्यादा किसानों की लंबी-लंबी कतारें लगी हुई थीं।
इस भीड़ में नरपतगंज के ही बालक राम पासवान भी थे। वो गांव कनेक्शन को बताते हैं कि, “लाइन रात के 3 बजे से ही लगना शुरू हो गया था। कड़ाके की ठंड के बावजूद बड़ी संख्या में महिलाओं भी आधी रात से लाइन में लगी थी. भीड़ इतनी ज्यादा थी कि आधे लोगों को लग रहा था कि उन्हें यूरिया नहीं मिलेगा। फिर जैसे ही वितरण केंद्र का गेट खुला, सैंकड़ों की भीड़ एक-दूसरे को कुचलते हुए आगे बढ़ने लगी। इस भगदड़ में 8 महिलाएं दबकर जख्मी हो गईं।”
खाद की किल्लत से ज्यादा कालाबाजारी से त्रस्त है किसान
अररिया के सत्यम ठाकुर भी उस दिन नरपतगंज उच्च विद्यालय पर मौजूद थे। जिस दिन भगदड़ में 8 महिलाएं दबकर जख्मी हो गईं थीं। वो बताते हैं कि, “प्रशासन लोगों को बार-बार समझा रहा था कि भगदड़ ना मचाएं, लेकिन एक बार भी प्रशासन आश्वस्त नहीं कर रहा था कि सबको एक-एक बोरी यूरिया जरूर मिलेगा। क्योंकि हर बार 20% से 25% भीड़ को एक-एक बोरी यूरिया देकर बाकी को लौटा दिया जाता है। इससे कुछ दिनों पहले अररिया जिला के फारबिसगंज के सिरसिया में बने एक गोदाम में हजारों बोरे खाद और उर्वरक लोगों ने प्रशासन के हवाले किया है। ये खाद भी डेढ़ से दोगुनी कीमत पर ब्लैक मार्केटिंग हो जाती।”
सुपौल जिला के मरोना पंचायत, जो बांध के भीतर है, के 70 वर्षीय लल्लन यादव नाव के सहारे सुपौल शहर यूरिया लेने आए थे, वो बताते हैं कि, “बड़े-बड़े बयान नेताओं के द्वारा दिए जाते हैं। लेकिन धरातल पर खासकर यूरिया के लिए त्राहिमाम की स्थिति है। खास कर बिहार के बांध के भीतर वाले गांव में। हम लोगों की तरफ तो ब्लैक में भी नहीं मिलता है यूरिया। शहर में भी भ्रष्ट पदाधिकारियों और नेताओं की मिलीभगत से खाद की कालाबाजारी की जाती है। नहीं तो कुव्यवस्था की ऐसी तस्वीरें सामने नहीं आती।”
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खाद संकट- पक्ष विपक्ष ने क्या कहा?
खाद की किल्लत को लेकर गांव कनेक्शन ने बिहार कांग्रेस अध्यक्ष मदन मोहन झा से बात की। उन्होंने कहा, “मुख्यमंत्री साहब को शराब से फुरसत ही नहीं मिल रहा है। बिहार में यूरिया के लिए किसानों में हाहाकार मचा हुआ है। कोई भी जिला और प्रदेश अछूता नहीं है। लेकिन शराबबंदी के नशा में मदहोश मुख्यमंत्री को किसानों की आवाज सुनाई नहीं दे रही है।”
वहीं सुपौल के सांसद दिलेश्वर कामत, जो नीतीश कुमार की जेडीयू (जनता दल यूनाइटेड (यू) से ही हैं, वह बताते हैं कि, “जिले में किसानों के खाद की किल्लत का मामला हमने 6 दिसंबर को संसद के शून्यकाल के दौरान उठाया था। खुद मेरे संसदीय क्षेत्र सुपौल में खेती के लिए जितनी खाद की आवश्यकता है। उतनी उपलब्ध नहीं है। पूरे बिहार राज्य की यही स्थिति है। जल्द ही सरकार कुछ करेगी।”
9 दिसंबर को मुख्यमंत्री आवास पर उर्वरक किल्लत के संबंध में हाईलेवल की बैठक में कृषि अधिकारियों ने मुख्यमंत्री नीतिश कुमार को बताया था कि डीएपी,एनपीके और यूरिया समेत दूसरी रासायनिक उर्वरकों की आपूर्ति को लेकर केंद्र से हुई वार्ता के बाद काफी असर हुआ है। केंद्र ने सतत आपूर्ति के निर्देश दिए थे। इस बैठक में कृषि सचिव एन. सरवन कुमार ने कहा था, “डीएपी के विकल्प के रुप में एनपीके उर्वरक का उपयोग या एसएसपी और यूरिया के मिक्चसर के रुप में उपयोग तथा उर्वरक के सही मूल्य आदि को लेकर अखबारों में विज्ञापन दिए जा रहे हैं।”
लेकिन इन सबसे इतर अपने गेहूं के खेत में यूरिया झोंक रहे सुपौल के युवा किसान सुमन शाह कहते हैं, 266.50 रुपए वाली यूरिया 400 में मिलती है। एक बोरी यूरिया भी मारपीट (लाठीचार्ज) के बाद मिलती है। क्या ही खेती कर पाएंगे?