पिछले 26 सालों से विकास चौधरी, हरियाणा के करनाल जिले में अपनी 28 हेक्टेयर (70 एकड़) जमीन पर गेहूं की खेती करते आए हैं। लेकिन आज तक उन्होंने फरवरी में इतनी गर्मी पड़ते कभी नहीं देखी।
करनाल के तरावड़ी गाँव में रहने वाले चौधरी ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हालांकि पिछला साल भी अप्रत्याशित रूप से गर्म था। मार्च में ही गर्म हवाएं चलने लगी थीं। लेकिन फिलहाल गर्मी को देखते हुए लग रहा है कि निश्चित रूप से इस बार भी यह गेहूं के दाने को पूरी तरह से पकने नहीं देगी और अनाज का आकार छोटा रह जाएगा।”
चौधरी ने आगे कहा, “पिछले साल मार्च में तापमान काफी बढ़ गया था। इससे उत्पादन पर खासा असर पड़ा और वो 28 क्विंटल प्रति एकड़ से घटकर 23 क्विंटल प्रति एकड़ (1 क्विंटल = 100 किलोग्राम) हो गया। मैंने पिछले साल 21 हेक्टेयर (52 एकड़) में गेहूं बोया था।” प्रति एकड़ पांच क्विंटल के अंतर से किसान को कम से कम 500,000 लाख रुपये का नुकसान होता है।
किसान ने बताया, “ फिलहाल तो हम ज्यादा सिंचाई करने और नमी की मात्रा बनाए रखने के लिए मिट्टी की सतह पर पराली फैलाने जैसे उपाय अपना रहे हैं।”
चौधरी के तरावड़ी गाँव से लगभग 700 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में 60 वर्षीय किसान मोहम्मद रियाज भी कुछ इसी तरह के संकट से जूझ रहे हैं।
चिरिया गाँव के रियाज ने गाँव कनेक्शन को बताया, “आमतौर पर गेहूं की फसल को सिंचाई के तीन चक्रों की जरूरत होती है। लेकिन इतनी गर्मी है कि मैं अपनी गेहूं की फसल को चौथी बार पानी दे रहा हूं। फसल अप्रैल तक कटने के लिए तैयार हो पाएगी। यानी मुझे फसल में कम से कम दो-तीन बार और पानी देना होगा। इससे डीजल पानी के पंपों से सिंचाई की मेरी लागत दोगुनी हो गई है। यह खर्च लगभग 4,200 रुपये हुआ करता था, लेकिन अब मुझे तकरीबन 9 हजार रुपये खर्च करने पड़ जाएंगे।”
मौसम की मार के बारे में किसानों की शिकायतें निराधार नहीं हैं। 23 फरवरी को भारत मौसम विज्ञान विभाग ने अपने एक प्रेस बयान में अगले पांच दिनों में उत्तर-पश्चिम, पश्चिम, मध्य और पूर्वी भारत के ज्यादातर हिस्सों में अधिकतम तापमान सामान्य से 3-5 डिग्री सेल्सियस अधिक रहने की संभावना जताई थी।
आईएमडी ने चेताया कि सामान्य से अधिक तापमान गेहूं की फसल पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
बयान में कहा गया था, “दिन में तापमान उच्च बने रहने से गेहूं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है क्योंकि गेहूं की फसल प्रजनन वृद्धि या फूल आने के करीब पहुंच रही है, जो ज्यादा गर्मी सहन नहीं कर पाती है। फूल और परिपक्वता के समय उच्च तापमान से उपज में कमी आती है। अन्य फसलों और बागवानी पर भी कुछ ऐसा ही असर पड़ सकता है।”
नवंबर तक गेहूं की फसल को थोड़ा पहले बोने की वैज्ञानिकों की सलाह के बारे में पूछे जाने पर किसानों ने गाँव कनेक्शन को बताया कि फसल बोने में देरी मानसून की बारिश के देर से आने के कारण होती है।
‘अरब सागर में एंटी-साइक्लोन इसके लिए जिम्मेदार’
दिलचस्प बात यह है कि 20 फरवरी को नई दिल्ली में 33.6 डिग्री सेल्सियस का अधिकतम तापमान 2006 के बाद से फरवरी के महीने में सबसे अधिक था. 2006 में 26 फरवरी को 34.1 डिग्री का उच्च तापमान दर्ज किया गया था।
फरवरी में इस तरह के अभूतपूर्व उच्च तापमान दर्ज किए जाने के बारे में पूछने पर प्राइवेट मौसम पूर्वानुमान वेबसाइट स्काईमेट वेदर में मौसम विज्ञान और जलवायु परिवर्तन के उपाध्यक्ष महेश पलावत ने गाँव कनेक्शन को बताया कि भारत के उत्तरी मैदानों में गर्म हवाओं के आगमन का बड़ा कारण अरब सागर में एक एंटी-सिलोन का बनना है।
“उत्तर-पूर्वी अरब सागर के आसपास मंडरा रहा यह एंटी-साइक्लोन पाकिस्तान के सिंध और बलूचिस्तान क्षेत्रों से भारत के उत्तरी मैदानी इलाकों की ओर गर्म हवाएं भेज रहा है। इन हवाओं के चलते हिमालय से आने वाली ठंडी हवाएं भी कोई राहत नहीं दे पा रही हैं, जिसके कारण हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में इतनी गर्मी पड़ रही है, “पलावत ने गाँव कनेक्शन को बताया,
प्रतिकूल रूप से बदलती जलवायु के आलोक में बदलते मौसम के मिजाज के बारे में बात करते हुए, पलावत ने कहा कि कृषि क्षेत्र पर इसका खासा असर पड़ने वाला है।
उन्होंने कहा, “किसानों और सरकार दोनों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए लचीले उपायों के बारे में सोचने की ज़रूरत है। इस साल भी जिन किसानों ने समय से पहले गेहूं बोया था, वे देर से बोने वालों की तुलना में बेहतर स्थिति में हैं। किसानों को अपने कृषि कैलेंडर और खेती के समय को फिर से समायोजित करने की जरूरत है। सरकार को गर्मी प्रतिरोधी फसलों के साथ आना होगा।”
कृषि वैज्ञानिकों ने गेहूं की अगेती बुवाई और गर्मी सहने वाली किस्मों की वकालत की
करनाल स्थित भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान (IIWBR) के प्रधान वैज्ञानिक अनुज कुमार ने कहा कि तापमान के अचानक से बढ़ने की वजह से गेहूं की फसल पर पड़ने वाले प्रभाव की भविष्यवाणी करना अभी जल्दबाजी होगी।
उन्होंने कहा, “ लेकिन अगर ये गर्मी लंबे समय तक बनी रही, तो उपज निश्चित रूप से प्रभावित होगी। हालांकि मौजूदा समय में हम जिन गेहूं की किस्मों का इस्तेमाल कर रहे हैं वे गर्मी सहने योग्य हैं, मगर सिर्फ एक हद तक।”
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) गेहूं की एक नई किस्म ‘एचडी-3385’ लेकर आई है। इसके बारे में कुमार ने कहा कि यह काफी हद तक गर्मी झेल सकती है। लेकिन कोई भी किस्म अपने बढ़ने के महत्वपूर्ण चरण में लंबे समय तक गर्मी सहन नहीं कर सकती है।
उधर उत्तर प्रदेश में कृषि विज्ञान केंद्रों के वैज्ञानिक किसानों को प्रतिकूल जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अपने कृषि कैलेंडर में बदलाव लाने की सलाह दे रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के कृषि विज्ञान केंद्र के प्रधान वैज्ञानिक संदीप अरोड़ा ने गाँव कनेक्शन को बताया कि राज्य में बढ़ता तापमान न सिर्फ फसलों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है, बल्कि मिट्टी में फसल के अनुकूल सूक्ष्म कीटाणुओं को भी मार रहा है, जो फसलों के विकास के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।
अरोड़ा ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मौसम पिछले पांच सालों से अनियमित रहा है। ऐसे में किसानों को मौसम चक्र के बारे में सतर्क रहने की जरूरत है। किसानों की परंपरागत समझ के अनुसार जो फसल चक्र अपनाया जा रहा है, उसे मौजूदा परिस्थितियों के अनुसार बदलने की जरूरत है। किसानों को फरवरी-मार्च में गर्म मौसम की स्थिति से बचने के लिए साल की शुरुआत में अपनी फसल की बुवाई करनी होगी।”
अरोड़ा की राय से सहमति जताते हुए उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में कृषि विज्ञान केंद्र के प्रधान वैज्ञानिक धीरज तिवारी ने बताया कि फिलहाल गेहूं की फसल जिस अवस्था में है, उसके लिए 20 डिग्री से 22 डिग्री सेल्सियस के अनुकूल तापमान की जरूरत होती है।
उन्होंने कहा, “हालांकि तापमान इन दिनों लगातार 30 डिग्री के आसपास मंडरा रहा है। मामले को बदतर बनाने के लिए हवाएं भी जिम्मेदार है। इतना अधिक तापमान गेहूं के दानों को सुखा देगा जिससे उपज पर खासा असर पड़ेगा। किसानों को जरूरत पड़ने पर अपने खेतों को पानी से नम रखने की जरूरत है और साथ ही इस बात का ध्यान भी रखना होगा कि जब गर्म हवा चल रही हो तो वे सिंचाई न करें।”
वैज्ञानिक ने कहा, “इसके अलावा किसानों को अपनी गेहूं की फसल को समय से थोड़ा पहले बोने की जरूरत है। नवंबर तक, बुवाई पूरी हो जानी चाहिए क्योंकि गेहूं को कटाई के लिए पकने में लगभग तीन महीने लगते हैं। इस तरह, किसान फरवरी-मार्च में गर्मी की मार से बच सकते हैं।”
किसानों ने गेहूं की बुवाई में देरी के लिए मानसून में देरी को जिम्मेदार ठहराया
नवंबर तक गेहूं की फसल को थोड़ा पहले बोने की वैज्ञानिकों की सलाह के बारे में पूछे जाने पर किसानों ने गाँव कनेक्शन को बताया कि फसल बोने में देरी मानसून में बारिश के देर से आने के कारण होती है।
उन्नाव के भगेड़ी खेड़ा गाँव के 42 साल के किसान रणधीर यादव ने शिकायत की कि नवंबर में गेहूं की बुआई करना उनके लिए असंभव है क्योंकि दिसंबर तक धान की कटाई नहीं हो पाई थी।
किसान ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मानसून की बारिश सितंबर तक नहीं आई थी। लगातार सिंचाई कर हमने किसी तरह धान की फसल को जिंदा रखा। हालांकि, जब धान की बात आती है तो बारिश का कोई विकल्प नहीं होता है। अक्टूबर तक खेत पानी में डूबे रहे और दिसंबर तक धान की कटाई नहीं हो सकी। मैं दिसंबर में गेहूं कैसे लगा सकता था? मुझे चिंता है कि मुझे धान और चावल में से किसी एक को चुनना पड़ेगा क्योंकि इस तेजी से बदलते मौसम में दोनों फसलों को बनाए रखना मुश्किल है।”
गेहूं उत्पादन पर उच्च तापमान के प्रभाव का आकलन करने के लिए समिति का गठन
केंद्र सरकार ने गर्म मौसम की स्थिति से होने वाले नुकसान का आकलन करने के लिए 20 फरवरी को एक समिति का गठन किया। समिति के गठन की घोषणा के बाद केंद्रीय कृषि सचिव मनोज आहूजा ने प्रेस को बताया कि समिति सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों का उपयोग करने की सलाह के साथ किसानों की मदद करने के लिए आगे आएगी।
समिति के सदस्यों में से एक, करनाल स्थित IIWBR के निदेशक ज्ञानेंद्र सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हम किसानों के लिए एक सलाह के साथ सिफारिशें तैयार कर रहे हैं ताकि गेहूं की फसल पर गर्मी के प्रभाव से निपटने के समाधान ढूंढे जा सकें। अगले सप्ताह की शुरुआत में समाधान लेकर आने की उम्मीद है।”
पिछले साल इसी तरह के मौसम ने भारत के गेहूं उत्पादन को 2.75 मिलियन टन या कुल उत्पादन का 2.5 प्रतिशत कम कर दिया था।
बाराबंकी में वीरेंद्र सिंह, उन्नाव में सुमित यादव, लखनऊ में ऐश्वर्या त्रिपाठी के इनपुट्स के साथ