किसानों को लूट रहा स्टेट बैंक

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किसानों को लूट रहा स्टेट बैंक

लखनऊ। किसान क्रेडिट कार्ड योजना (केसीसी) संचालित करने वाली अन्य बैंकों से इतर देश की सबसे बड़ी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, लाखों छोटे-मंझोले किसानों से एक हज़ार रुप ज्य़ादा वसूल रही है। यह उदाहरण भर है ग्रामीण क्षेत्रों में बिना सरकारी अंकुश के संचालित व्यावसायिक बैंकों की मनमानी का।

लखनऊ में रबी गोष्ठी के दौरान फैजाबाद जिले के बांसगाँव से आए एक किसान उमानाथ शुक्ल (45 वर्ष) ने जब यह मामला उठाया तो सभी आवाक रह गए। कृषि उत्पादन आयुक्त ने मामले को संगीन मानते हुए प्रदेश के सभी डीएम से जांच करके बैंक का सर्कुलर जारी करने को कहा।

मामला तब सामने आया जब उमानाथ शुक्ल अपना 35,000 रुप का कर्ज चुकाने मिल्कीपुर तहसील की एसबीआई ब्रांच पहुंचे। तय देय राशि से जब बैंक ने शुक्ल को 1050 रूपए अतिरिक्त चुकाने को कहे, तो उन्होंने उस समय तो रुपए चुका दिए, लेकिन अपनी पासबुक पर लिखित ब्योरा ले लिया। 

पासबुक के अनुसार बैंक ने सालाना शुल्क के रूप  में '500 रुप इंस्पेक्शन चार्ज (निरीक्षण शुल्क) व '550 रुप एकाउंट कीपिंग (खाता रखने का शुल्क) लिए थे।  ''मैं तुरंत इलाहाबाद बैंक और बैंक  ऑफ बड़ौदा भी गया, वहां पता चला कि अन्य बैंकों में यह अतिरिक्त शुल्क नहीं है।'' उमानाथ शुक्ल ने बताया। 

एक हज़ार रुप का अतिरिक्त शुल्क सिर्फ फैजाबाद ही नहीं बल्कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों व कस्बों में केसीसी योजना से लाभान्वित 22 प्रतिशत से ज्यादा परिवार चुका रहे हैं। 

केसीसी के तहत खेती के लिए कर्ज उपलब्ध कराने वाले लगभग 45,950 व्यावसायिक बैंक शाखाओं में से 22 फीसदी अकेले एसबीआई की हैं। इससे मिलने वाले कर्ज पर देश भर में लगभग एक लाख किसान परिवार आश्रित हैं। इसके बाद उमानाथ शुक्ल ने मुख्य सचिव आलोक रंजन से भी मामले की शिकायत की। इसके बाद मुख्य सचिव ने बैंकों की बैठक में मुद्दा उठाने की बात कहकर, फैजाबाद के जिलाधिकारी अनिल ढींगरा से सभी साक्ष्य मांगे, जो उन्होंने उपलब्ध कराए। इस विषय पर गाँव कनेक्शन ने फै जाबाद केडीएम अनिल ढींगरा से बात करने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं हो सकी।

पूरी प्रक्रिया के बाद अपने गाँव में किसी ठोस फैसले का इंतज़ार कर रहे शुक्ल को, उनकी एसबीआई ब्रांच के मैनेजर का हाथ से लिखा पत्र आया। इस पर कहा गया, ''उपरोक्त वार्षिक कटौतियां एक समान रूप से हमारे केन्द्रीय कार्यालय द्वारा निर्धारित कंप्यूटरीकृत प्रणाली द्वारा सभी केसीसी खातों में कि जाती है।"

''दरअसल एसबीआई अपने नियमों में केसीसी कर्ज को आम लोन ही मानती है, जबकि ज्य़ादातर बैंकें कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं वसूलतीं। इस सिलसिले में हमने एसबीआई के उच्चाधिकारियों को भी लिखा है,'' फैजाबाद के जिला अग्रणी बैंक प्रबंधक ओम प्रकाश शुक्ल ने बताया। 

भारत सरकार द्वारा देश के हर जि़ले में संचालित अग्रणी बैंक योजना के तहत जिला अग्रणी बैंक प्रबंधक की नियुक्ति होती है जो जि़ले की बैंकों के वित्तीय लेन-देन पर नज़र रखते हैं और किसानों की सहायता करते हैं।

वर्ष 2012 तक देश में लगभग 13.5 लाख किसानों के पास किसान क्रेडिट कार्ड था। इनकी संख्या तेजी से बढ़ाने पर केंद्र सरकार का जोर है, लेकिन इस तरह के मामले सामने आने पर बैंकों की मंशा साफ दिखती है।

बैंकों की मनमानी अतिरिक्त शुल्क तक ही नहीं सीमित। नए केसीसी को बनवाने के लिए किसान को अन्य दस्तावेजों के साथ एक अनापत्ति पत्र देना होता है, जिसे तैयार करवाने में बैंक को किसान की सहायता करनी होती है। लेकिन सभी बैंकों ने अपने जो वकील तय किए हैं, वे किसानों से तय शुल्क से अधिक फीस लेकर पत्र बनाते हैं। एक लाख तक की क्रेडिट लिमिट वाले अपने केसीसी के लिए पत्र बनवाने में शुक्ल ने वकील को मजबूरन 800 रुप दिए थे, क्योंकि पत्र अंग्रेज़ी में था।

 

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