किसानों को मिलेगा संरक्षित प्रजाति का मालिकाना हक

vineet bajpaivineet bajpai   20 Jan 2016 5:30 AM GMT

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किसानों को मिलेगा संरक्षित प्रजाति का मालिकाना हकगाँव कनेक्शन

सीतापुर। ऐसी कोई प्रजाति जो किसी क्षेत्र विशेष में कई वर्षों से लगती आ रही है एवं उस किस्म को एक समूह वर्ग कृषकों द्वारा संरक्षित किया गया है तो वह समूह वर्ग उस किस्म को पंजीकृत कराकर अपना मालिकाना हक प्राप्त कर सकता है या किसी एक किसान द्वारा वर्षों से संरक्षित की गई प्रजातियों को पंजीकृत कराकर भी अपना मालिकाना हक पा सकता है।

‘‘किसानों द्वारा विकसित एवं संरक्षित पौधों की किस्मों का बौद्धिक सम्पदा अधिकार दिलाने हेतु पौधा किस्म एवं कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम 2001 बनाया गया। कानून देर से बना पर विषय बहुत गंभीर है। इस कानून के द्वारा किसानों की प्राचीन किस्मों को बचाकर एवं उनके मौलिक अधिकारों को पहचान कर किसानों को मालिकाना हक दिलाना है।’’ डॉ रवि प्रकाश, रजिस्ट्रार, पीपीवी एवं एफआरए, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली ने कहा।

कृषि विज्ञान केन्द्र कटिया में आयोजित पौधा किस्म एवं कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण नई दिल्ली एवं कृषि विज्ञान केन्द्र कटिया द्वारा बौद्धिक सम्पदा प्रबन्धन एवं कृषक अधिकार संरक्षण पर एक दिवशीय कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमें रवि प्रकाश मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद थे।

भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ जे सिंह ने कृषकों को सम्बोधित करते हुए कहा, ‘‘वैश्वीकरण के इस दौर में पूरा विश्व सिमट कर एक वैश्विक गाँव बन गया है। जिसमें हमारा किसान और हमारी पीढ़ियों से सुरक्षित ज्ञान सुरक्षित नहीं रह गया है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘जिस प्रकार औषधिक निर्माण कम्पनियां एशिया और अफ्रीका के मानव को गिनीपिग समझकर अपनी दवाओं, टीकों और रसायनों का शोध कर अरबों का व्यापार कर रही हैं, उसी प्रकार भारतीय कृषि में रसायन, प्रजातियों, हार्मोन एवं टीकों को लेकर कृषकों के साथ धोखा हो रहा है।’’ 

जिला उद्यान अधिकारी विनय यादव ने कहा, ‘‘भारतीय कृषक प्रचार-प्रसार और इनाम के जाल में फंसकर अपनी कृषि का विनाश कर रहा है। वहीं दूसरी ओर कृषकों के मध्य वर्षों से प्रचलित पारम्परिक फसलें एवं प्रजातियां चोरी की जा रही हैं। ज्ञान आधारित प्रतिस्पर्धा के इस युग में बौद्धिक सम्पदा अधिकार नीतिगत उपकरणों के रूप में उभरें हैं, किन्तु इस क्षेत्र में भी भारत सहित सभी विकासशील देश अभी बहुत पीछे हैं।’’

वैज्ञानिक डॉ0 आनन्द सिंह द्वितीय ने कहा कि गुणवत्ता युक्त बीज ही कृषि विकास की कुंजी है। भारतीय परम्परागत ज्ञान अपार है तथा ग्रामीणजन के मन में इस तरह रचा बसा है कि वह उसे कोई ज्ञान या अभिमान नहीं मानते। हमारे रीति-रिवाज, परम्परा, उत्सव, सुख-दुःख के साथ हमारा पारम्परिक ज्ञान सम्मिलित है।

केन्द्र के पादप सुरक्षा वैज्ञानिक डॉ डीएस श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘हमारा देश 1 जनवरी 1995 से विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) का सदस्य है और इसलिए व्यापार सम्बन्धी बौद्धिक सम्पदा अधिकारों के करार (ट्रिप्स एग्रीमेण्ट) का अनुसरण करने के लिए बाध्य है। पिछले 10 वर्षों में प्राकृतिक जैविक सम्पदा के मामले में सर्वाधिक धनी विकासशील देश ही इस प्रकार की बायोपायरेसी के ज्यादा शिकार रहे हैं, क्योंकि हममें अपनी जैविक धरोहर की रक्षा के प्रति जागरूकता की कमी रही है।’’

उपस्थित कृषकों महिलाओं, युवाओं एवं प्रसार कार्यकर्ताओं को कार्यक्रम के बारे में जानकारी देते हुए केन्द्र के प्रसार वैज्ञानिक शैलेन्द्र सिंह ने कहा, ‘‘कृषि विज्ञान केन्द्र कटिया के माध्यम से पीपीवी एवं एफआरए अधिनियम 2001 के प्रावधानों का प्रचार करने के लिए प्रशिक्षण गोष्ठी, फिल्म शो, रैली एवं निबन्ध लेखन जैसे विविध कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है।

डॉ0 सौरभ वैज्ञानिक गृहविज्ञान ने कहा कि ग्रामीण महिलाओं का कृषि एवं गृह प्रबन्धन में इसी पारम्परिक ज्ञान का सदुपयोग हमेशा से किया गया है, किन्तु आज प्रतिस्पर्धा के इस युग में इस पारम्परिक ज्ञान को चिन्हीकृत एवं प्रमाणित करने की आवश्यकता है।

 

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