किताबों के लिए बच्चों का इंतज़ार हुआ और लम्बा

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किताबों के लिए बच्चों का इंतज़ार हुआ और लम्बाgaonconnection

लखनऊ। गर्मियों की छुट्टी खत्म होने के बाद एक बार फिर कल से स्कूल खुलने जा रहे हैं। लेकिन सरकारी स्कूलों में लाखों बच्चों को अगले कई दिनों तक बिना किताबों के पढ़ना पड़ेगा। सप्ताह की शुरुआत में किताब की छपाई के सरकारी टेंडर का जो मामला सुलझता दिख रहा था वो फिर अटक गया। जिन 22 प्रकाशकों को टेंडर दिया गया था, उनमें से आठ प्रकाशकों को फिर हटा दिया गया है। 

प्रदेश में 1.98 लाख प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों में पढ़ने वाले 1.96 करोड़ बच्चों के लिए इस बार लगभग 250 करोड़ रुपए की किताबों की छपाई होनी है, जो बच्चों को सरकार द्वारा मुफ्त दी जाती हैं। 

लम्बे समय से कानूनी पेंच में उलझी टेंडर प्रक्रिया को जब हरी झंडी दिखायी गयी तो बीते सोमवार को देर रात तक जारी टेंडर प्रक्रिया में 22 प्रकाशकों को किताबों की छपाई का टेंडर दिया गया। यह टेंडर 1.38 रुपए प्रति आठ पेज की दर से दिया गया। लेकिन टेंडर होने के दौरान आठ प्रकाशकों को टेंडर से बाहर कर दिया गया। टेंडर प्रक्रिया से बाहर किये गये प्रकाशकों में हाथरस के मेसर्स रावत प्रकाशन ने हाईकोर्ट में गुहार लगाई है।

इससे पहले भी टेंडर का मामला बीते कई महीनों से हाईकोर्ट में चल रहा था। इस बारे में पाठ्य पुस्तक अधिकारी अमरेन्द्र सिंह ने कहा कि जो प्रकाशक टेंडर से बाहर किये गये हैं वह टेक्निकल बिड में योग्य नहीं पाये गये इस कारण उनको टेंडर से बाहर किया गया है। यह पूछने पर कि कोर्ट जाने से क्या फिर से किताबों की छपाई की प्रक्रिया बाधित होगी? इस पर अधिकारी ने कहा कि अभी तक तो कोई आदेश प्राप्त नहीं हुआ है, आगे के बारे में कहा नहीं जा सकता। किताबों की छपाई के काम की शुरुआत के बारे में अमरेंद्र ने बताया कि तैयारी जारी है कोशिश है कि जल्द ही छपाई का काम शुरू किया जा सके। 

इस बारे में माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेशीय मंत्री डा. आरपी मिश्र जो कि क्वीन्स इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य हैं उन्होंने कहा कि किताबों की छपाई के टेंडर में इतने विवाद चल रहे हैं कि सितम्बर महीने तक भी बच्चों को किताबें मिलने के आसार नजर नहीं आ रहे हैँ। उन्होंने कहा कि यही सब वजहें हैं जो लोग सरकारी या सहायता प्राप्त स्कूलों को गम्भीरता से नहीं लेते हैं। सरकार खुद ही गम्भीर नजर नहीं आती है। किताबें, ड्रेस मिलने का कोई समय नहीं हैं, एमडीएम की गुणवत्ता पर हमेशा सवाल उठते ही रहे हैं। ऐसे में सरकार को दशा सुधारने के प्रयास करने चाहिये। जब यह मालूम है कि किताबों और ड्रेस बच्चों को वितरित की जानी हैं तो समय का ध्यान रखना भी जरूरी है।

रिपोर्टर - मीनल टिंगल

 

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