कम लागत में ज्यादा मुनाफा देगी सहजन की खेती

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कम लागत में ज्यादा मुनाफा देगी सहजन की खेतीgaonconnection

लखनऊ। सहजन की खेती कम समय में मुनाफे का सौदा साबित होने वाली फसल है। कम लागत में तैयार होने वाली इस फसल की खासियत ये है कि इसकी एक बार बुवाई  के बाद चार साल तक बुवाई नहीं करनी पड़ती है। 

गुजरात के मोरबी जिले से पूरब दिशा से 30 किलोमीटर दूर चूपनी गाँव में  किसान प्रतिवर्ष 200 से 250 एकड़ खेत में सहजन की खेती करते हैं।

यहां के किसान पिछले 6 वर्षों से सहजन की खेती कर रहे हैं। उन्होंने इसकी शुरूआत एक एकड़ खेत से की थी और इसके बढ़ते मुनाफे को देखकर अब 250 एकड़ सहजन की खेती की जा रही है। सहजन 300 रोगों की रोकथाम कर सकता है |

चूपनी गाँव में रहने वाले किसान रवि सारदीय (42 वर्ष) बताते हैं,  “मैं पिछले तीन साल से सहजन की खेती कर रहा हूं। इसके एक एकड़ में खेती से किसान एक लाख से ज्यादा मुनाफा सिर्फ 10 महीने में कमा सकते हैं। ” 

रवि सारदीय ने  सहजन की एक नई प्रजाति की खोज की है जिसका नाम है “ज्योति-1” है। इस प्रजाति को लगाने से एक पौधे में 700 फलियां लगती हैं, जबकि दूसरी प्रजाति में सिर्फ 250 ही फलियां लगती हैं | 

रवि सारदीय आगे बताते हैं, “एक एकड़ खेत में सहजन के 250 ग्राम बीज की जरूरत होती है,लाइन से लाइन की दूरी 12 फिट और प्लांट से प्लांट की दूरी 7 फिट रखी जाती है, एक एकड़ खेत में 518 पौधे लगाए जाते हैं | 

अप्रैल महीने में बुवाई के बाद सितम्बर महीने में फलियां बाजार में बिकनी शुरू हो जाती हैं। ” 

गर्मी के मौसम में 10 रुपए किलो और सर्दियों के मौसम में 40 रुपए किलो के हिसाब से बिकती हैं। बारिश के मौसम को छोड़कर सहजन के पेड़ में दो बार फलियां लगती हैं और एक बार सहजन लगाने के बाद 4 साल तक लगातार पैदावार होती है। एक पौधे में लगभग 20 किलो तक सहजन की फलियां लगती हैं।

गोरखपुर में राष्ट्रीय बागवानी शोध एवं विकास संस्थान (एनएचआरडीएफ) के उप निदेशक डॉ रजनीश मिश्र बताते हैं, “करीब पांच हजार साल पहले आयुर्वेद ने सहजन की जिन खूबियों को पहचाना था, आधुनिक विज्ञान में वे साबित हो चुकी हैं।” 

देश के अपेक्षाकृत प्रगतिशील दक्षिणी भारत के राज्यों आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक में इसकी खेती होती है। तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय ने पीकेएम-1 और पीकेएम-2 नाम से दो प्रजातियां विकसित की हैं।”

औषधीय गुणों से भरपूर 

डॉ रजनीश मिश्र ने बताया कि सहजन को अंग्रेजी में ड्रमस्टिक कहा जाता है। इसका वनस्पति नाम मोरिंगा ओलिफेरा है। फिलीपीन्स,मैक्सिको, श्रीलंका, मलेशिया आदि देशों में भी सहजन का उपयोग बहुत अधिक किया जाता है। दक्षिण भारत में व्यंजनों में इसका उपयोग खूब किया जाता है। सेंजन, मुनगा या सहजन आदि नामों से जाना जाने वाला सहजन औषधीय गुणों से भरपूर है। इसके अलग-अलग हिस्सों में 300 से अधिक रोगों के रोकथाम के गुण हैं। इसमें 92 तरह के मल्टीविटामिन्स, 46 तरह के एंटी आक्सीडेंट गुण, 36 तरह के दर्द निवारक और 18 तरह के एमिनो एसिड मिलते हैं। 

पशुओं के चारे के रूप में उपयोगी

चारे के रूप में इसकी पत्तियों के प्रयोग से पशुओं के दूध में डेढ़ गुना और वजन में एक तिहाई से अधिक की वृद्धि की रिपोर्ट है। कुपोषण, एनीमिया (खून की कमी) में सहजन फायेदमंद होता है।  

रिपोर्टर - नीतू सिंह

 

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