सरसों आलू जैसी रबी की फसलों के लिए घातक है झुलसा और पाला, ऐसे करें बचाव

बदलते मौसम में आलू-टमाटर समेत सब्जियों वाली फसलों और दलहन-तिहलन वाली फसलों में रोग और कीट लगाने की आशंका बढ़ जाती है। जानिए क्या हो सकता है मौसम का असर, कैसे करेंगे अपनी फसल की सुरक्षा?

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मौसम में बदलाव के चलते शीत लहर और ठंडी हवाओं के चलने के साथ ही रबी की फसलों में झुलसा और पाला पड़ने की संभावना बढ़ जाती है, ऐसे में किसान कुछ बातों का ध्यान रखकर नुकसान से बच सकते हैं।

शीत लहर और पाले का फसलों और फलदार वृक्षों की उत्पादकता पर सीधा प्रभाव पड़ता है। फूल आने और बालियां/फली विकसित होने के दौरान फसलों के पालाग्रस्त होने की सबसे अधिक संभावना होती है। पाले के प्रभाव से पौधों की पत्तियाँ एवं फूल झुलसने लगते हैं। जिससे फसल प्रभावित होती है। कुछ फसलें बहुत अधिक तापमान या पाला सहन नहीं कर पाती हैं, जिससे उनके खराब होने का खतरा रहता है। यदि पाले के समय फसल की देखभाल न की जाए तो उस पर आने वाले फल या फूल झड़ सकते हैं। जिससे पत्तियों का रंग मिट्टी के रंग जैसा हो जाता है। यदि शीत लहर हवा के रूप में चलती रहती है तो इससे कोई नुकसान नहीं होता है, लेकिन यदि हवा रुक जाती है तो पाला पड़ता है, जो फसलों के लिए अधिक हानिकारक होता है।

पाले से सबसे ज्यादा नुकसान मटर, सरसों, धनिया के साथ मिर्च और बैंगन की फसल को हुआ है। ठंड के कारण सब्जियों के पौधे काले पड़ जाते हैं। लेकिन कुछ उपायों से किसान ठंड के कारण अपनी फसल को खराब होने से बचा सकते हैं।

कृषि विज्ञान केंद्र, सहारनपुर के प्रमुख और पादप रक्षा वैज्ञानिक डॉ. आईके कुशवाहा बताते हैं, "ये मौसम ही कीट और रोग लगने का है। मौसमी परिस्थितियां ऐसी हैं कि रोग और कीट बढ़ने के लिए अनुकूल है। आलू-टमाटर समेत दूसरी सब्जियों में झुसला रोग लग सकता है, पत्तियों के मुड़ने की प्रक्रिया, यानी रस चूसक भुनगे बहुत तेजी से लगेंगे। कोशिश करें नीम ऑयल का छिड़काव करें, कंडे की राख का इस्तेमाल करें। येलो स्टिकी ट्रैप लगा लें और रोग वाले पौधों को दबा दें।"


वो आगे कहते हैं, "दलहनी फसलों की बात करें तो चना, मटर, मसूर में जीवाणु झुलसा रोग, उकठा रोग, चने में फली छेदक कीट अंडे दे रहे होंगे, सरसों की बात करें तो माहू है सफेद मक्खी है, थ्रिप्स का प्रकोप तेजी से बढ़ेगा।" डॉ. आईके कुशवाहा हैं।"

नर्सरी के पौधों और सब्जियों की फसलों को बोरियों, पॉलिथीन या पुआल से ढक देना चाहिए। क्यारियों के किनारों पर हवा को रोकने के लिए बाड़ को हवा की दिशा में बांधकर फसल को पाला एवं शीत लहर से बचाया जा सकता है।

पाले की संभावना को ध्यान में रखते हुए ज़रुरत पड़ने पर खेत की सिंचाई कर देनी चाहिए। इससे मिट्टी का तापमान कम नहीं होता है।

सरसों, गेहूँ, चावल, आलू, मटर जैसी फसलों को पाले से बचाने के लिए सल्फ्यूरिक अम्ल (गंधक का तेजाब) के छिड़काव से रासायनिक सक्रियता बढ़ती है तथा पाले से बचाव के अलावा पौधे को लौह तत्व भी प्राप्त होता है।

दीर्घकालीन उपाय के रूप में फसलों की सुरक्षा के लिए शहतूत, शीशम, बबूल, खेजड़ी और जामुन आदि जैसे वायु अवरोधक वृक्षों को खेत की मेड़ों पर लगाना चाहिए, जो फसल को पाले और शीत लहरों से बचाते हैं।

500 ग्राम थायोयूरिया को 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव किया जा सकता है और 15 दिनों के बाद दोबारा छिड़काव करना चाहिए।

क्योंकि सल्फर (गंधक) पौधे में गर्मी पैदा करता है, इसलिए प्रति एकड़ 8-10 किलो सल्फर डस्ट डाला जा सकता है। या 600 ग्राम घुलनशील गंधक को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ फसल पर छिड़काव करने से पाले का असर कम होता है।

पाले के दिनों में मिट्टी की जुताई या जुताई नहीं करनी चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से मिट्टी का तापमान कम हो जाता है।

किसान क्या करें

पिछले कई महीनों से तैयार फसल में किसानों की काफी लागत और मेहनत लगी है, ऐसे में किसान अपनी फसल को लेकर फिक्रमंद हैं। पादप रक्षा वैज्ञानिक डॉ. श्रीवास्तव के मुताबिक फसल बचाने के लिए सबसे जरुरी है कि प्रतिदिन खेती की निगरानी की जाए। अगर पौधे के पत्ते में रोग दिखाई दें, तुरंत उन्हें उखाड़कर जमीन में दबा दें। वो कहते हैं, "ज्यादा रोग दिखे तुरंत विशेषज्ञों की सलाह लें और एहतियातन एक फफूंद नाशक का छिड़काव कार्बेंडाजिम मैनकोज़ेब (Carbendazim Mancozeb Fungicide ) या फिर मेटलैक्सिल और मैंकोजेब Metalaxyl plus Mancozeb) का छिड़काव कर दें। आलू की फसल में झुलसा के लिए अनुकूल मौसम है तो इन फंगीसाइड का 2 ग्राम प्रति लीटर में छिड़काव जरूर कर दें।"

इसके अलावा वो सरसों किसानों के लिए सलाह देते हैं कि "सरसों की फसल में सफेद पत्ती धब्बा जो रोग लगता है उसमें 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव कर लें या Carbendazim Mancozeb Fungicide ) का छिड़काव कर सके हैं।"

किसान क्या बिल्कुल न करें

अगर आपके इलाके में बारिश का पूर्वानुमान जताया गया है तो सिंचाई न करें। खेत में ज्यादा नमी होने पर सब्जियों वाली फसलों में खासकर नुकसान हो सकता है। कई रोग लग सकते हैं। कीटनाशक हो या रोग नाशक या फिर खरपतवार नाशक उनके छिड़काव का सबसे अच्छा मौसम होता है जब धूप खुली हो। अगर कोहरा है, बादल छाए हैं, बारिश की आशंका है तो कीटनाशक छिड़काव से भी परहेज करें।

अगर फसल में फूल आ गए गए हैं तो किसी प्रकार के रासायनिक कीटनाशक के प्रयोग से बचें। डॉ. श्रीवास्तव कहते हैं, "जिस भी फसल में फूल आ रहे हैं वहां रासायनिक छिड़कावों का इस्तेमाल न करें। वर्ना फूल की ग्रोथ (बढ़वार) रुक जाएगी। फूल झड़ जाएंगे, जिससे दाने और फल नहीं बन पाएंगे। ऐसे में प्राकृतिक तरीकों, धुआं, नमी, नीम का तेल और कंडों की राखा का इस्तेमाल करें।"

इसके अलावा खेत में मधुमक्खियां पाल रखी हैं, या वो उधर आती हैं तो दिन के वक्त रासायनिक छिड़काव न करें वर्ना वो मर जाएंगी। शाम को मधुमक्खियां छत्तों में लौट आती हैं उस वक्त प्रयोग करें।

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