गाजर का बीज उत्पादन करने वाले किसान रखें इन खास बातों का ध्यान, मिलेगा बढ़िया उत्पादन

अगर आप भी गाजर का बीज उत्पादन करते हैं या फिर करना चाहते हैं तो आपको शुरू से कुछ खास बातों का ध्यान रखना चाहिए।

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गाजर का बीज उत्पादन करने वाले किसान रखें इन खास बातों का ध्यान, मिलेगा बढ़िया उत्पादन

गाजर एक महत्वपूर्ण कंद फसल होती है, जिसकी खेती से किसान कुछ ही महीनों में बढ़िया उत्पादन पा सकते हैं। लेकिन कई बार किसानों के सबसे बढ़िया बीज की समस्या आती है, ऐसे में किसान खुद ही बीज उत्पादन करके अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं।

किसानों के ऐसे ही कई सवालों के जवाब इस हफ्ते के पूसा समाचार में दिए गए हैं। आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान हर हफ्ते किसानों के लिए पूसा समाचार जारी करता है।पूसा संस्थान के बीज उत्पादन के प्रभारी डॉ ज्ञानेद्र सिंह गाजर बीज उत्पादन की जानकारी दे रहे हैं।

गाजर में बीज उत्पादन के दो तरीके होते हैं, एक तो सीड से सीड और दूसरे में पहले सीड से कंद तैयार कर ली जाते हैं फिर उससे बीज तैयार किए जाते हैं। इस प्रकिया में सबसे पहले हम कंद से बीज तैयार करते हैं तो सबसे पहले बीज से नर्सरी तैयार की जाती है और उन्हें मेड़ों पर लगाया जाता है, इससे उनमें कंद का विकास बहुत अच्छा होता है, कंद अच्छे बनने के बाद हमें कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।


जैसे कि कंद सर्पिल आकार की होनी चाहिए और एक जैसी होनी चाहिए। इसमें एक बात का और ध्यान में रखते हैं जिसमें एक साथ दो जड़ें निकली हों उनका चयन नहीं करते हैं।

अब गाजर की जड़ों का नीचे से दो इंच भाग और ऊपर से दो इंच हरा भाग लिया जाता, यही इसका सही तरीका होता है।]

इन कंदों की रोपाई के लिए मेड़ों की चौड़ाई और लंबाई का खास ध्यान रखना चाहिए। इसलिए मेड़ की चौड़ाई चार फीट, दोनों तरफ की नाली करीब डेढ़ फीट और मेड़ की ऊंचाई करीब छह इंच रखनी चाहिए। इससे जब हम इसमें पानी लगाते हैं तो जलभराव की समस्या नहीं आती है।

कंद को लगाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जब अब इसे मेड़ों पर लगाते हैं तो ये पूरी तरह से दबनी चाहिए। पौधों से पौधों की दूरी हम तीस सेमी और लाइन से लाइन की दूरी 60 सेमी रखते हैं।


इसको लगाते समय एक बात का ध्यान रखना चाहिए लगभग 800 मीटर दूरी तक कोई दूसरी बीज उत्पादन की फसल नहीं लगानी चाहिए। इसमें समय समय पर निगरानी करते रहें, क्योंकि कई बार ऐसे भी पौधे दिखते हैं, जिनमें कोई फूल नहीं होते हैं, उन्हें समय रहते निकाल देना चाहिए। अगर हम मधुमक्खियां की कॉलोनियां रखते हैं तो इससे उत्पादन और ज्यादा बढ़ जाता है।

जब दूसरी अम्बल या शीर्ष बीज पक जाएं और उनके बाद में आने वाले शीर्ष भूरे रंग के हो जाएं तो बीज फसल काट लेनी चाहिए। क्योंकि बीज पकने की प्रक्रिया एक साथ नहीं होती। इसलिए कटाई 3-4 बार करनी पड़ती है। सुखाने के बाद बीज को अलग कर लें और छंटाई करके वायुरोधी जगह पर इनका भंडारण करें।

औसतन 400-500 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर बीज उपज हो जाती है।

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