बाराबंकी (उत्तर प्रदेश)। सर्दियों में तैयार होने वाली सब्जियों की खेती की तैयारी अभी से शुरू कर देनी चाहिए। इस समय किसान फूल गोभी की खेती तैयारी शुरू कर सकते हैं। फूलगोभी की खेती कम लागत और अच्छा मुनाफा देने के कारण किसानों को खूब भा रही है।
बाराबंकी के तहसील फतेहपुर क्षेत्र के बड़े पैमाने पर फूलगोभी की खेती किसान कर रहे हैं। गोभी की खेती करने वाले किसान सुशील मौर्य बताते हैं, “अगेती फूल गोभी की खेती करने के लिए इसकी नर्सरी 10 जुलाई तक हम कर देते हैं जो 30 दिन बाद फर्स्ट अगस्त में लगभग तैयार हो जाती है नर्सरी होने के लिए खास तरीके से क्यारियां तैयार की जाती है।”
भारत में करीब तीन हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में फूलगोभी की खेती की जा रही है, जिससे लगभग 68,5000 टन तक का उत्पादन हो रहा है। उत्तर प्रदेश सहित उन सभी प्रदेशों में फूलगोभी की खेती की जाने लगी है। उत्तर प्रदेश के गोंडा और बाराबंकी में फूलगोभी की खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है।
वो आगे बताते हैं, “नर्सरी तैयार हो जाने के बाद खेतों में इसकी रोपाई लाइन बाई लाइन और पौधे से पौधे की दूरी 24 बाई 24 सेमी रखी जाती है खेत में पौधे की रोपाई के बाद नमी रहना बहुत ही जरूरी होता है नमी ना होने से पौधे सूख जाते हैं वैसे फूलगोभी की खेती में ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।”
एक एकड़ क्षेत्रफल में करीब 22000 पौधे की रोपाई की जाती है गोभी की फसल में शुरुआती दौर में कई तरह के कीट लगते हैं, जिसमें समय-समय पर कीटनाशक का इस्तेमाल करना भी जरूरी रहता है।
सुशील मौर्य आगे बताते हैं, “हम फूलगोभी की अलग-अलग प्रजाति की खेती करते हैं जिसकी नर्सरी एक एक माह के अंतराल पर करते रहते हैं और उसकी रोपाई करते हैं जिससे इसका उत्पादन करीब पांच माह तक हमें मिलता रहता है।”
एक एकड़ क्षेत्रफल में करीब 20 से 25000 रुपए की लागत लगती हैं और अगर बाजार में अच्छा रेट मिल जाए तो 100000 रुपए तक मुनाफा हो जाता है गोभी की फसल पौधा रोपाई के बाद 80 से 90 दिनों में फूल तैयार हो जाता है।
कृषि रक्षा विशेषज्ञ तारेश्वर त्रिपाठी बताते हैं, “गोभी की खेती करने से पहले मिट्टी की जांच करा लेनी चाहिए अगर मिट्टी का पीएच 7 पॉइंट 5 से कम है तो कई के रोग लगने की उम्मीद रहती है। अम्लीय मृदा में मिट्टी से होने वाले रोगों से बचाव के लिए 600 kg चूना प्रति एकड़ की दर से खेत की तैयारी के समय प्रयोग करें, जिससे कि फसल में कल्ब रूट, पौध विगलन, जड़ सड़न जैसे रोगो का प्रकोप कम होता है।”
खेत की तैयारी के समय ट्राईकोडर्मा व स्यूडोमोनास का प्रयोग करके मिट्टी को रोगजनक रहित बना लेना चाहिए। खेत से जल निकासी की उत्तम व्यवस्था करनी चाहिए और फसल में सिंचाई हल्की करनी चाहिए।
आगे बताते हैं, “हीरक पृष्ठ शलभ (हीरे जैसी पीठ वाली सुंडी) से बचाव के लिए गोभी की 25 पंक्तियों के बाद एक पंक्ति मोटे दाने के सरसों की गोभी की रोपाई के 12 दिन पहले व दूसरी पंक्ति रोपाई के 25. दिन बाद बो देने से कीट का प्रकोप सरसो पर होता है जिससे की कीटनाशकों का प्रयोग केवल सरसो पर करके गोभी को कीटनाशक प्रयोग से बचा सकते हैं।”