मटका विधि से लौकी-खीरा जैसी फसलें बोने पर मिलेगी दोगुनी पैदावार, 2 महीने में एक बार देना होगा पानी

राजस्थान के एक प्रगतिशील किसान ने कद्दू लौकी समेत बेलदार सब्जियों को बोने का ऐसा जैविक जुगाड़ (तकनीकी विकसित) बनाया है कि काफी कम पानी में अच्छी पैदावार ली जा सकती है। पढ़िए पूरा तरीका
#agriculture technology

किसान अपने-अपने खेतों में कई बार ऐसे नायाब प्रयोग करते हैं तो दूसरे किसानों के लिए कमाई बढ़ाने का जरिया बन जाते हैं। राजस्थान के एक प्रगतिशील किसान ने कद्दू लौकी समेत बेलदार सब्जियों को बोने का ऐसा जैविक जुगाड़ (तकनीकी विकसित) बनाया है कि काफी कम पानी में अच्छी पैदावार ली जा सकती है।

राजस्थान में जोधपुर और पाली जिले के सीमा के पास बसे बिलाड़ा गांव के प्रगतिशील किसान राजाराम शीरवी राठौड़ ने पुराने मटकों जमीन में गाड़कर उनके पास पास लौकी उगाई हैं, जिसके बेलें आम बुआई की अपेक्षा न सिर्फ काफी तेजी से बड़ी हो रही हैं, बल्कि वो रोगमुक्त भी हैं। उन्होंने अपनी मेढ़ों के किनारे तीन-तीन फीट पर मटके गाड़े हैं।

ये भी पढ़ें- इस तरीके को अपनाकर लौकी की एक बेल से निकल सकती हैं 500 से 800 लौकी

मटके के आसपास लगाई गई लौकी की बेल। फोटो साभार 

फोन पर राजाराम राठौड़ गांव कनेक्शन को बताते हैं, “मटके में बुआई करने से पौधे काफी तेजी से बढ़ते हैं और ज्याद फल आते हैं। मेरे मटकों में जीवामृत और डीकंपोस्ट भरा है। इस विधि से एक बार घड़े में पानी भरने से वो करीब 2 महीने तक चलता है, बिना कि रासायनिक कीटनाशकों और उर्वरक के इस जैविक विधि में सामान्य तुलना में उत्पादन ज्यादा होता है।”

ज्यादा उत्पादन लेने के तरीकों के बारे में बताते हुए वो कहते हैं, ” किसी भी बेल वाली फसल से ज्यादा मुनाफे के लिए किसानों को चाहिए वो उसकी टूजी और थ्रीजी कटिंग कर दें। इसमें करना ये होता है कि जैसे ही लौकी की बेल दो-तीन फीट की हो उसके आगे का हिस्सा काट देना चाहिए। इससे उसमें पीछे की ज्यादा कलमें (बौंके) निकलेंगे। इसी तरह जब नई बेलें इसके आगे दो-दो फीट की हो जाएं एक बार फिर उनके आगे का हिस्सा काट देना चाहिए।’

राजाराम राठौड़ ने अपने घर के पुराने मटकों का प्रयोग किया है। लेकिन लगातार कद्दू, लौकी, करेला, लोबिया और तरोई जैसी बेल वाली फसलें लेने वाले किसान मटका विधि का प्रयोग कर सकते हैं। राजाराम गांव कनेक्शन को बताते हैं, मटके में उसके गले से थोड़ा नीचे चारों तरफ चार छेद कर देना चाहिए। फिर मटको को जमीन में दबा देना चाहिए। लेकिन इस दौरान ध्यान रखना चाहिए कि जहां छेद किए गए हैं वहां कोई छोटा पत्थर रख देना चाहिए ताकि उसमें बाहर की मिट्टी न जा पाए। इसी छेद के पास बीज बो देने चाहिए।’

मटके में वेस्ट डीकंपोजर या जीवामृत मिला पानी डालकर उसे ऊपर से ढक देना होता है। मटके में उसके गले तक भरे पानी से बीजों को नमी और माइक्रोन्यूटेंट मिलते रहते हैं, जिससे वो तेजी से बढ़ते हैं। राजाराम के मुताबिक इस विधि किसानों को अपने खेतों में मेढ़ों के पास बुआई करने से ज्यादा फायदा मिलेंगा, एक बार जमीन में दबाया गया मटका कई वर्षों तक काम करता रहेगा, बस उसमें पानी भरते रहने होगा। 

राजाराज राठौड़ का गांव जोधपुर में है लेकिन उनकी कुछ खेती पाली जिले में भी पड़ती है। करीब 150 बीघे खेत के मालिक राजाराम 2011 से जैविक खेती कर रहे हैं। अपने खेतों में वो जीरा, गेहूं, सौंफ, मिर्च, कपास लगाते हैं। मिर्च के साथ लौकी, तरोई, ककड़ी जैसी सहफसली खेती भी करते हैं। 

किसान से संपर्क-9461691944  (नोट- उपरोक्त विधि किसान द्वारा स्वविकसित है, गांव कनेक्शन इनके किसी दावे की पुष्टि नहीं करता।)

ये भी पढ़ें- एलोवेरा की खेती का पूरा गणित समझिए, ज्यादा मुनाफे के लिए पत्तियां नहीं पल्प बेचें, देखें वीडियो

ये भी पढ़ें- वैज्ञानिकों ने बनाया चलता-फिरता सौर कोल्ड स्टोरेज, अब नहीं खराब होंगी सब्जियां

ये भी पढ़ें- खरीफ सब्जियों की खेती का सही समय, बुवाई से पहले इन बातों का रखें ध्यान

Recent Posts



More Posts

popular Posts