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कमज़ोर खेत का टॉनिक, जैविक खाद

India

लखनऊ जैविक खाद बनाने के वैसे कई तरीके हैं, लेकिन हम आपको बताने जा रहे हैं कि नाडेप विधि द्वारा जैविक खाद कैसे बना सकते हैं।

क्या है नाडेप कम्पोस्ट 

इसमे ईटों का एक ढांचा बनाते हैं, जिसका आकार दो मीटर चौड़ा, 3.5 मीटर ल बा तथा एक मीटर ऊंचा होता है। इसकी दीवारों में कुछ छेद छोड़े जाते हैं, ताकि समय-समय पर आवश्यकता पडऩे पर पानी का छिड़काव किया जा सके एवं वायु संचार होता रहे। इस ढ़ांचे के अंदर खेत, खलिहान, घर से प्राप्त फसल अवशेष, गोबर, पानी एवं मिट्टी की मात्रा के साथ सड़ाया जाता है। इस विधि से सड़ी खाद बहुत उच्च गुणवत्ता की होती है, तथा बेकार पदार्थों का प्रयोग हो जाता है।

ढांचा भरने की विधि एवं सामग्री

विधि

  • 40-50 किग्रा गोबर 100-150 लीटर पानी में घोल कर ढांचे की तह पर डाल देते हैं।
  • आठ इंच मोटी कचरे की तह दबा-दबा कर बिछाते हैं फिर 30-40 किग्रा गोबर 100-125 लीटर पानी का घोल कचरे के ऊपर डालते हैं उसके बाद लगभग 100 किग्रा मिट्टी को ऊपर बिछाते हैं। यह प्रक्रिया ढांचे की ऊंचाई से 10-12 इंच ऊपर भरने तक दुहराते हैं।
  • बाद में गोबर एवं मिट्टी की मोटी परत लगाकर ढांचे को ऊपर से बंद कर देते हैं। 70-80 दिन बाद गड्ढे के ऊपर 15-20 छेद मोटे डन्डे की सहायता से बना देते हैं, तथा 10 लीटर गौ मूत्र, दो किग्रा गुड एवं 100 ग्राम हवन की राख को मिलाकर घोल तैयार कर लेते हैं। फिर घोल को छेदों में डालकर छेदों को पुन: बन्द कर देते हैं उसके बाद 30-40 दिन के बाद खाद तैयार हो जाती है।

खाद निकालने एवं रखने की विधि

खाद को निकालकर चाल लेते हैं तथा बगैर सड़े पदार्थ को अलग कर लेते हैं और किसी छायादार स्थान में खाद को ढक कर रखते हैं। बगैर सड़े पदार्थ को पुन: भराई में प्रयोग करते हैं। इस प्रकार एक बार में लगभग 30 कुन्तल खाद तैयार हो जाती है।

नाडेप कम्पोस्ट प्रयोग के लाभ

यदि किसी भी खेत में वर्ष में एक बार फसल लेने के पूर्व नाडेव कम्पोस्ट का प्रयोग किया जाए तथा लगातार तीन वर्ष तक प्रयोग किया जाए तो खेत एवं फसल पर निम्नांकित प्रभाव पड़ता है।

  • चौथे वर्ष रासायनिक ऊर्वरक का प्रयोग बन्द किया जा सकता है।
  • भूमि मे पानी धारण करने की क्षमता बढ़ जाती है तथा गेहूं जैसी फसल को एक पानी का देने से पैदावार पूरी प्राप्त होती है।
  • फसलों में कीट/व्याधि के प्रकोप को 50-75 फीसदी तक कम किया जा सकता है।
  • फसलों से प्राप्त उपज का स्वाद अच्छा होता है। बाजार में 10-20 फीसदी अधिक मूल्य पर बेची जा सकती है।
  • जमीन को ऊसर/बंजर होने से बचाया जा सकता है।
  • खेती की लागत 20 फीसदी घटाई जा सकती है।

संकलन : विनीत बाजपेई

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