जैविक खेती से लहलहाएगी फसल, पर्यावरण रहेगा सुरक्षित

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जैविक खेती से लहलहाएगी फसल, पर्यावरण रहेगा सुरक्षितकिसानों को अपनानी होगी जैविक खेती। 

सीतापुर। प्रतिस्पर्धा के इस युग में यदि आपका उत्पाद बाजार के अन्य उत्पादों की तुलना में गुणवत्ता (स्वाद, रंग,चमक, ताजगी, जहरमुक्त) में अन्य से बेहतर होगा तो दाम ज्यादा मिलेगा और बाजार में प्राथमिकता से बिक भी जाएगा। कृषि लागत में वृद्धि का प्रमुख कारण है कि किसानों का बीज खाद दवा पर निर्भर हो जाना। यदि बाजार में इनका मूल्य बढ़ता है तो निश्चित ही किसान की लागत बढ़ जाती है। इसलिए जैविक कृषि अपनाकर लागत में कमी के साथ-साथ मृदा स्वास्थ्य एवं पर्यावरण को सुरक्षित रख कर अधिक मूल्य प्राप्त किया जा सकता है।

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क्या है जैविक खेती

प्रकृति ने हम सबको ऐसे ऐसे उपहार माध्यम संसाधन दिए हैं कि यदि हम उनका विवेकपूर्ण सदुपयोग कर लें तो हमें बाहर से किसी भी प्रकार के रसायन रासायनिक उर्वरक रासायनिक कीटनाशक का बिना प्रयोग किए कम श्रम, कम लागत में गुणवत्ता युक्त उत्पाद प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए किसी पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं है।

जैविक कृषि का उद्देश्य

-प्राकृतिक संसाधनों एवं फसल अवशेषों का सदुपयोग

-मृदा स्वास्थ्य संतुलन

-पर्यावरण संरक्षण

-मित्र शत्रु जीव अनुपात संतुलन

-गुणवत्ता युक्त एवं विषमुक्त उत्पाद

-जहर मुक्त खेती

-कृषि में टिकाऊपन

जैविक कृषि का महत्व

-मृदा स्वास्थ्य में अनवरत सुधार

-जल की बचत

-कृषि एवं पशुपालन सामंजस्य से लाभ

-फसल अवशेषों का सदुपयोग

-पारिस्थितिकी तंत्र का विकास

-कम लागत अधिक लाभ

-विपणन समस्या से निजात

कैसे करें पोषक तत्व प्रबंधन

पौधे भूमि से पानी एवं पोषक तत्व वायु से कार्बन डाइऑक्साइड तथा सूर्य से प्रकाश ऊर्जा ग्रहण करते हैं

आधारीय पोषक तत्व कार्बन, हाइड्रोजन आक्सीजन

प्राथमिक पोषक तत्व नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश

दुतियक पोषक तत्व कैल्शियम, मैग्नीशियम, सल्फर

सूक्ष्म पोषक तत्व आयरन, जिंक, कॉपर, मैंगनीज, बोरोन, मोलिब्डेनम, क्लोरीन, निकिल

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कैसे करें इनकी आपूर्ति

-हरी खाद ढांचा सनई का भरपूर प्रयोग करें ।

-गोबर की सड़ी खाद (छह माह गड्ढे में सड़ी) 100 कुंतल प्रति एकड़ प्रयोग करें।

-केंचुआ खाद 25 कुंतल प्रति एकड़ प्रयोग करें।

-नाडेप कम्पोस्ट (3 मीटर लंबा 1.8 मीटर चैड़ा 0.9 मीटर मोटा ) से वर्ष में 6 टन प्रति पिट खाद प्राप्त की जा सकती है जिसका प्रयोग 2 हेक्टेयर क्षेत्रफल में किया जा सकता है ।

-अनाज एवं सब्जी वर्गीय व तिलहन फसलों में नाइट्रोजन की आपूर्ति हेतु एजोटोबैक्टर 100 मिलीलीटर प्रति एकड़ देसी खाद में मिलाकर प्रयोग करें ।

-दलहन वर्गीय फसलों में नाइट्रोजन की आपूर्ति हेतु राइजोबियम फसल विशेष 100 मिलीलीटर प्रति एकड़ प्रयोग करें ।

-मोटे अनाजों में नाइट्रोजन की आपूर्ति हेतु एस्पाईरिलम 100 मिलीलीटर प्रति एकड़ प्रयोग करें ।

-फास्फोरस की उपलब्धता बढ़ाने हेतु पी एस बी कल्चर 100 मिलीलीटर प्रति एकड़ प्रयोग करें ।

-पोटाश की उपलब्धता बढ़ाने हेतु के एस बी कल्चर 100 मिलीलीटर प्रति एकड़ प्रयोग करें ।

-जिंक की उपलब्धता बढ़ाने हेतु जिंक सोलुबिलाईजिंग बैक्टीरिया 100 मिलीलीटर प्रति एकड़ प्रयोग करें ।

-जीवाणुओं की सक्रियता बढ़ाने हेतु जीवामृत 500 लीटर प्रति एकड़ प्रयोग करें ।

-फसल अवशेष का सदुपयोग करने हेतु वेस्ट डी कंपोजर का प्रयोग करें।

खरपतवार प्रबंधन

खरपतवार फसल से पोषक तत्व, नमी, प्रकाश ,स्थान आदि के लिए प्रतिस्पर्धा करके फसल की वृद्धि, उपज एवं गुणों में कमी कर देते हैं। खरपतवारों की उपस्थिति जलवायु, मृदा की स्थिति, प्रकाश, नमी, पिछली बोई गयी फसल, खेत में उपलब्ध रिक्त स्थान इत्यादि पर निर्भर करती है। खरपतवारों को फूल निकलने की अवस्था से पहले ही समाप्त कर दिया जाना चाहिए, अन्यथा खरपतवार में एक बार फूल बन गया तो वह अगले सात वर्ष तक उस खेत में उगते रहेंगे। रासायनिक विधियों से खरपतवार प्रबंधन करने में अधिक लगत के साथ यह भय भी बना रहता है की यदि संस्तुति खरपतवारनाशी के साथ साथ सही मात्रा एवं सही प्रयोग विधि न अपनायी गयी तो सफल को काफी नुकसान उठाना पड़ता है।

बिना रसायन कैसे करें खरपतवार प्रबंधन

-ग्रीष्मकाल में मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करके खरपतवारो की जड़ो को खेत से बाहर करके जला दें।

-मृदा सौरीकरण अवश्य करे तथा फसल चक्र अपनाये। एक ही तरह की फसलों को बार बार न लगाए।

-आम एवं जामुन की पत्तियों को बुवाई से १ माह पूर्व खेत में बिछाकर पानी भर दे तथा सड़ने दे।

-फसल में जूट मल्चिंग का प्रयोग करे।

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-किसी भी फसल को 15-45 दिन तक खरपतवारमुक्त रखने हेतु निकाई गुड़ाई करते रहे इससे जड़ो में वायु संचार भी बना रहता है। खेतो में उग रहे खरपतवारो को बीज बनने से पहले ही समाप्त कर दे।

-एकल फसल के स्थान पे सहफसली करे या खेत में उपस्थित रिक्त स्थानों पर पालक, चैलाई, मूली, गाजर, धनिया या मौसम आधिरित फसलों का चुनाव कर लगाए।

-मूंग एवं लोबिया एक साथ लेने से खरपतवारो को प्रकाश की समस्या उत्पन्न हो जाती है फलस्वरूप धीरे धीरे समाप्त होने लगते है।

कैसे करें बिना रसायन कीट रोग प्रबंधन

-प्रकृति में यदि दुश्मन कीट है तो इनसे निपटने के किये हमें तमाम ऐसी विधियां एवं मित्र जीव भी दिए है यदि हम इनकी पहचान कर सदुपयोग करे तो हमें किसी भी प्रकार का रसायन प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं है।

-खेत को साफ-सुथरा एवं खरपतवार मुक्त रखें ।

-मृदा सौरीकरण एवं भूमि शोधन अवश्य करें ।

- बीज उपचार ट्राइकोडर्मा 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से करें ।

-पौध उपचार स्यूडोमोनास 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल कर 30 मिनट तक डूबा कर उपचारित करें ।

-नर्सरी लो टनल पॉली हाउस में उगाएं ।

सब्जियों की रोपाई से 1 माह पूर्व खेत के किनारे चारों ओर चार घनी कतार ज्वार बाजरा या मक्का की लगाएं ।

-मेड़ों के किनारे मौसमी फूलों के पौधे जैसे गेंदा सूरजमुखी गाजर राजमा सॉन्ग सरसों लोबिया अल्फाल्फा रोपित करें ताकि मित्र कीटों का आकर्षण किया जा सके ।

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-फसल के बीच बीच में प्रतिकर्षण पौधे जैसे मेंथा तुलसी रोपित करें फंदा फसल जैसे रेडी या गेंदा बीच-बीच में रोपित करें ।

-टी आकार का चिड़िया का अड्डा 12 से 15 प्रति एकड़ लगाएं ताकि पक्षी दुश्मन कीटों का विनाश कर सकें ।

-पीला चिपचिपा पाश या पीली पन्नी में जला हुआ डीजल या ग्रीस लगाकर 20 से 25 प्रति एकड़ लगाएं

-लाइट ट्रैप 1 प्रति एकड़ शाम 7ः00 से 9ः00 अवधि के बीच में लगाएं ।

-खेतों के किनारे घास फूस को जलाकर धुँआ करते रहें ।

विभिन्न सुंडियों को नियंत्रित करने हेतु फेरोमोन ट्रैप लगाएं ।

-घर पर वानस्पतिक कीटनाशी (नीम करंज शरीफा धतूरा मदार बेशर्म लहसुन काली मिर्च हींग) इत्यादि को पीसकर दोगुने गोमूत्र में मिलाकर 1 माह तक सड़ायें तत्पश्चात इसे 100 से 200 मिलीलीटर प्रति टंकी 5 से 7 दिन पर छिड़काव करते रहें ।

-रोगों से बचाव हेतु छांछ 2 लीटर प्रति टंकी प्रयोग करते रहें ।

-कंडे की राख पौधों एवं पत्तियों पर बुरकाव करते रहें ।

-रस चूसक कीटों एवं सुंडियों से बचाव हेतु नीम का तेल 5 मिलीलीटर प्रति लीटर डिटर्जेंट मिलाकर छिड़काव करें ।

-रस चूसक कीट, दीमक एवं गिडार से बचाव हेतु बिवेरिया बेसियाना 5 मिलीलीटर प्रति लीटर छिड़काव या गोबर की खाद में मिलाकर भूमि में प्रयोग करें।

-ट्राइकोडर्मा स्यूडोमोनास बिवेरिया घर में तैयार करने हेतु आप केचुआ खाद का प्रयोग करे ।

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-चना अरहर टमाटर एवम मूंगफली की सुंडियों हेतु एनपीके का प्रयोग करें तथा इसको घर में भी तैयार किया जा सकता है ।

-कद्दू वर्गीय सब्जियों एवं फलदार वृक्षों जैसे आम अमरूद पपीता में फल मक्खी नियंत्रण हेतु फल मक्खी पाश लगाएं ।

-खेतों के पास विभिन्न प्रकार की उग रही खरपतवारों का अर्क बनाकर फसल में प्रयोग करते रहें

-चूहों के नियंत्रण हेतु उल्लू का आवास बना कर पेड़ों पर टांगे।

जैविक खेती का पंजीकरण

किसान भाइयों जैविक खेती प्रमाणीकरण हेतु आप उत्तर प्रदेश राज्य जैविक प्रमाणीकरण संस्था, राजकीय उद्यान परिसर आलमबाग लखनऊ से संपर्क कर आवेदन कर सकते हैं या सीधे वेबसाइट www.upsoca.org पर कर आवेदन कर सकते हैं

दो तरीके से आवेदन किया जा सकता है

- व्यक्तिगत

- सामूहिक

भारत सरकार एवं प्रदेश सरकार के माध्यम से कृषकों के समूहों को जैविक कृषि अपनाने एवं बढ़ावा देने हेतु वित्तीय सहायता भी प्रदान की जाती है। इसके लिए जनपद के उप कृषि निदेशक, जिला कृषि अधिकारी जिला उद्यान अधिकारी या कृषि विज्ञानं केंद्र से किसान संपर्क कर सकते हैं।
डॉ. डीएस श्रीवास्तव, कृषि वैज्ञानिक

पंजीकरण हेतु आवश्यकताएं

-अगले फसल सत्र हेतु वार्षिक फसल योजना

-भूमि के दस्तावेज

-ऑपरेटर का पैन कार्ड

-ऑपरेटर का आधार कार्ड

-फार्म मैप जिसके आसपास के फार्मों की स्थिति परिलक्षित हो

-प्रक्षेत्र का जी पी एस डाटा

-पंजीकरण शुल्क 2700 प्रति हेक्टेयर

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