लखनऊ। लॉकडाउन के चलते इस बार दूसरी फसलों के साथ लीची उत्पादन पर भी असर पड़ने वाला है, इसका देश के अलग-अलग हिस्सों में लीची के बाग में मधुमक्खी पालकों के न पहुंच पाना भी एक कारण है। लेकिन लीची किसान अभी से ध्यान दे कर लीची उत्पादन बढ़ा सकते हैं।
राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. विशाल नाथ लीची किसानों को सुझाव देते हैं, “यही सही समय होता है, जब मधुमक्खियां लीची के परागण में मदद करती हैं, बिहार के मधुमक्खी पालकों के साथ ही उत्तर प्रदेश से भी लोग आते हैं, जो इस बार नहीं आ पाएं, अगर मधुमक्खियां नहीं होंगी तो उत्पादन पर तो असर पड़ेगा ही।”
वो आगे कहते हैं, “लेकिन अभी किसान कुछ उपाय कर सकते हैं, पॉलीनेशन में मधुमक्खियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन इसके साथ ही कई और भी प्रजातियां हैं जो मदद करती हैं। जैसे कि हाउस फ्लाई है, ऐसे बहुत सी प्रजातियां हैं जो पॉलीनेशन में मदद करती हैं।”
“बाग में जो भी प्राकृतिक पॉलीनेटर हैं, उनको आकर्षित करने के लिए बागवानों को कुछ उपाय करना चाहिए, जैसे कि चीनी या गुड़ का शीरा बनाकर हर बागवान अपने बाग में रख ले, इससे बहुत सारी फ़्लाइंग इन्सेक्ट आकर्षित होंगे जो कि फूलों पर भी जाएंगे। इसके साथ ही जूट के किसी बोरे को भिगोकर उसमें भी शीरा लगा दें, “उन्होंने आगे कहा।
इस समय पूरे देश में एक लाख हेक्टेयर में लीची की खेती हो रही है, जिससे 7.5 लाख टन लीची का उत्पादन होता है। इसमें बिहार में 33-35 हज़ार हेक्टेयर में लीची की खेती होती है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे प्रदेशों में भी लीची की खेती होती है।
इसके साथ ही बाग में नमी बनाये रखने के लिए हल्की सिंचाई करें और सूखी पत्तियां या घास बिछाकर मल्चिंग करें। और फल को गिरने से बचाने के लिए शाही किस्मों के पौधों पर फ्लानोफिक्स 2 मिली को 5 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। और प्रति पौध के हिसाब से 300 ग्राम यूरिया और 200 ग्राम पोटाश का प्रयोग सिंचाई के समय पानी के साथ करें।
जैसे फल आते हैं, उनके साथ ही कई सारे नुकसानदायक कीट भी आ जाते हैं, फल बेधक कीट से बचाव के लिए थियाक्लोप्रिड 0.75 मिली या नोवाल्युरोन 1.5 मिली एक लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
साथ ही फल को फटने से बचाने के लिए बोरेक्स 4 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
रसायनों या दवाओं का छिड़काव उचित नमी की स्थिति में ही करें, तेज हवा चलते समय छिड़काव से बचें।