लखनऊ। अभी तक आपने सफेद और लाल आलू ही देखा होगा, लेकिन जल्द ही बाजार में नीला आलू भी मिलेगा। यही नहीं इस आलू की खेती में दूसरी किस्मों की तुलना में उत्पादन भी ज्यादा मिलेगा।
चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं तकनीकि विश्वविद्यालय के शाक-भाजी शोध केन्द्र ने केन्द्रीय आलू अनुसंधान केंद्र शिमला के साथ मिलकर आलू की नई किस्म ‘कुफरी नीलकंठ’ विकसित की है।
शाक-भाजी शोध केंद्र के विभागाध्यक्ष डॉ. अजय कुमार दुबे इस किस्म के बारे में बताते हैं, “इसकी पैदावार 400 से 450 कुंतल प्रति हेक्टेयर है, जबकि बाजार में कुफरी बहार, चिपसोना, कुफरी जवाहर, लाल आलू जैसी किस्में एक हेक्टेयर में लगभग 300 कुंतल उत्पादन होता है। वैसे बाजार में आने में समय लगेगा, लेकिन आने के बाद ये किसानों की पहली पसंद बन सकती है।
आलू किसानों को सबसे ज्यादा नुकसान झुलसा रोग से उठाना पड़ता है। लेकिन ये किस्म पछेती झुलसा के प्रति सहनशील होती है।
आलू का छिलका हल्का बैंगनी और गूदा क्रीमी सफेद रंग का है। आलू का साइज गोल और औसत वजन 60-80 ग्राम है। एंटी ऑक्सीडेंट एंथोसाइनिंन पिग्मेंट की उपस्थिति के कारण यह शरीर में फ्री रेडिकल्स (अत्याधिक प्रतिक्रियाशील अणु) को नियंत्रित करने की क्षमता रखता है, इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी।
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कुफरी नीलकंठ को तैयार करने का प्रोजेक्ट वर्ष 2015 को आया था। लगातार प्रयोग के बाद दिसंबर 2018 में इसका पूर्ण बीज बोया गया। इसी महीने इसकी खुदाई की गई अच्छा उत्पादन भी मिला है।
15 अक्टूबर से 5 नवंबर के बीच लगाया जा सकता है। इसकी खेती पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ में की जा सकती है। 90 से 100 दिन में ये फसल तैयार हो जाती है।
सीपीआरआई ने विभिन्न जलवायु क्षेत्रों के लिए अब तक 51 आलू की प्रजातियां विकसित की हैं। इन प्रजातियों को देश के अलग-अलग क्षेत्रों में लगाया जाता है। देश की जलवायु और भैगोलिक परिस्थितियां ऐसी हैं कि वर्ष भर कहीं न कहीं आलू की खेती होती रहती है। यूपी, पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब और हिमाचल आलू के उत्पादन में अग्रणी राज्य माने जाते हैं।
देश में सबसे ज्यादा आलू उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है। देश के कुल उत्पादन में 32 फीसदी हिस्सेदारी उत्तर प्रदेश की है। यहां 2016-17 के सीजन में 15076.88 मिट्रिक टन आलू का उत्पादन हुआ था। सीपीआरआई के मुताबिक, भविष्य में आलू सब्जी से कहीं ज्यादा होगा, ये खाद्य सुरक्षा के तौर देखा जाएगा। 2050 तक आलू की मांग 125 लाख टन के करीब होगी।