कृषि विशेषज्ञों की सलाह: मौसम को देखते हुए ही किसान करें खरीफ फसलों की बुवाई

यह खरीफ फसलों की खेती का सही समय होता है। ऐसे में किसानों के लिए जानना सबसे जरूरी है कि वो इस हफ्ते खेती-किसानी में क्या करें।

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कृषि विशेषज्ञों की सलाह: मौसम को देखते हुए ही किसान करें खरीफ फसलों की बुवाई

इस समय ज्यादातर प्रदेशों में मानसून आ गया है, मानसून आने के साथ ही किसान खरीफ की फसलों की बुवाई शुरू कर देते हैं। ऐसे में किसानों के लिए जानना सबसे जरूरी है कि वो इस हफ्ते खेती-किसानी में क्या करें।

आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान हर हफ्ते किसानों के लिए मौसम आधारित संबंधित कृषि सलाह जारी करता है।

वर्षा के पूर्वानुमान को ध्यान में रखते हुए सभी किसानों को सलाह है की किसी प्रकार का छिड़काव न करें और खड़ी फसलों व सब्जी नर्सरियों में उचित प्रबंधन रखें।

धान की नर्सरी अगर 20-25 दिन की हो गई हो तो तैयार खेतों में धान की रोपाई शुरू करें। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेमी और पौध से पौध की दूरी 10 सेमी रखें।

उर्वरकों में 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश और 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट/हेक्टेयर की दर से डाले, और नील हरित शैवाल एक पैकेट/एकड़ का प्रयोग उन्ही खेतों में करें जहां पानी खड़ा रहता हो, ताकि मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा बढाई जा सकें। धान के खेतों की मेड़ों को मजबूत बनाएं। जिससे आने वाले दिनों में वर्षा का ज्यादा से ज्यादा पानी खेतों में संचित हो सके।

धान की पौधशाला मे यदि पौधों का रंग पीला पड़ रहा है, तो इसमे लौह तत्व की कमी हो सकती हैं। पौधों की यदि ऊपरी पत्तियां पीली और नीचे की हरी हो तो यह लौह तत्व की कमी को दर्शाता है। इसके लिए 0.5% फेरस सल्फेट +0.25 % चूने के घोल का छिड़काव आसमान साफ होने पर करें।


मृदा में पर्याप्त नमी को ध्यान में रखते हुए किसान इस सप्ताह मक्का की बुवाई शुरु कर सकते है। संकर किस्में ए एच-421 व ए एच-58 और उन्नत किस्में पूसा कम्पोजिट-3, पूसा कम्पोजिट-4 की बुवाई शुरु कर सकते है। बीज की मात्रा 20 किलोग्राम/हैक्टर रखें। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60-75 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 18-25 से.मी. रखें। मक्का में खरपतवार नियंत्रण के लिए एट्राजिन 1 से 1.5 किलोग्राम/ हैक्टर 800 लीटर पानी में घोल कर छिडकाव करें।

कम समय में पकने वाली अरहर की किस्मों (पूसा 991, पूसा 992, पूसा 2001, पूसा 2002) की बुवाई 10 जुलाई तक मृदा में पर्याप्त नमी को ध्यान में रखते हूये की जा सकती है। बीज किसी प्रमाणित स्रोत से ही खरीदें। किसानों से यह सलाह है कि वे बीजों को बोने से पहले अरहर के लिए उपयुक्त राईजोबियम और फास्फोरस को घुलनशील बनाने वाले जीवाणुओं (पी एस बी) फँफूद के टीकों से अवश्य उपचार कर लें। इस उपचार से फसल के उत्पादन में वृद्धि होती है।

यह समय चारे के लिए ज्वार की बुवाई के लिए सही है, इसलिए किसान पूसा चरी-9, पूसा चरी-6 या अन्य सकंर किस्मों की बुवाई मृदा में पर्याप्त नमी को ध्यान में रखते हूये कर सकते है। बीज की मात्रा 40 किलोग्राम/हैक्टेयर रखें। लोबिया की बुवाई का भी यह सही समय है।

इस मौसम में किसान खरीफ प्याज, लोबिया, भिंडी, सेम, पालक, चोलाई आदि सब्जियों की बुवाई मृदा में पर्याप्त नमी को ध्यान में रखते हुए शुरू कर सकते है। बीज किसी प्रमाणित स्रोत से ही खरीदें।

कद्दूवर्गीय सब्जियों की वर्षाकालीन फसल की बुवाई करें लौकी की उन्नत किस्में पूसा नवीन, पूसा समृद्धि करेला की पूसा विशेष, पूसा दो मौसमी, सीताफल की पूसा विश्वास, पूसा विकास तुरई की पूसा चिकनी धारीदार, तुरई की पूसा नसदार और खीरा की पूसा उदय, पूसा बरखा आदि किस्मों की बुवाई मृदा में पर्याप्त नमी को ध्यान में रखते हुए कर सकते है।

फलों के नए बाग लगाने वाले गड्ढ़ों में गोबर की खाद मिलाकर 5.0 मि.ली. क्लोरपाईरिफॉस एक लीटर पानी में मिलाकर गड्ढ़ों में डालकर गड्ढ़ों को पानी से भर दें ताकि दीमक और सफेद लट से बचाव हो सके।

देशी खाद (सड़ी-गली गोबर की खाद, कम्पोस्ट) का ज्यादा प्रयोग करें ताकि भूमि की जल धारण क्षमता और पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ सके। मृदा जांच के बाद उवर्रको की संतुलित मात्रा का उपयोग करें खासतौर पर पोटाश की मात्रा बढ़ाएं ताकि पानी की कमी के दौरान फसल की सूखे से लड़ने की क्षमता बढ़ सके। वर्षा आधारित और बारानी क्षेत्रों में भूमि मे नमी संचयन के लिए पलवार (मल्चिंग) का प्रयोग करना लाभदायक होगा।

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