पद्मश्री सुभाष पालेकर की सलाह: अपने घर की छत या फिर बगीचे में ऐसे लगाइए बीज वाले अंगूर की किस्में

अंगूर की कई सारी किस्में हैं, जिन्हें आप आसानी से अपने घर की छत पर या फिर बगीचे में लगा सकते हैं। पद्मश्री सुभाष पालेकर अंगूर की बीज वाली किस्मों को लगाने के तरीके बता रहे हैं।

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पद्मश्री सुभाष पालेकर की सलाह: अपने घर की छत या फिर बगीचे में ऐसे लगाइए बीज वाले अंगूर की किस्में

 महाराष्ट्र के पुणे में स्थित आघारकर अनुसंधान संस्‍थान ने अंगूर की नई किस्म एआरआई- 516 विकसित की है। सभी फोटो: अरेंजमेंट

बीज वाले (Seeded) गोल काले लाल बैंगनी रंग के अंगूर की रेड ग्लोब और एआरआई516 जैसी किस्मों में ज्यादा फायदेमंद होती है। इनके बीजों 90 प्रतिशत पोषण और औषधीय गुण होते हैं, जबकि बिना बीज वाले सीडलेस लंबे आकार के अंगूरों में कोई पोषण नहीं होता है। बल्कि वो रसायनिक खेती से पैदा होने के कारण जहरीले होते हैं और हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी घटाते हैं।

इसलिए हमें सिर्फ सुभाष पालेकर प्राकृतिक कृषि से उगाए गए बीज वाले गोल रंगीन रेड ग्लोब (Red Globe) और एआरआई 516 (ARI 516) अंगूर ही खाना है, उनको ही हमारे खेत में, छतपर या घर के इर्द-गिर्द खाली जगह पर बाग में लगाना चाहिए। इनके पौधे लगाते समय कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए।

अंगूर बेल किसी भी आधार पर चढ़ती और फैलती है। इसलिए अंगूर बेल चढ़ाने के लिए किसी भी पेड़ का या बांस का डंडा, या लोहे का खम्भा या सीमेंट का खंभा 9 बाय 4.5 अंतराल पर बाग में या शाक वाटिका में या छत पर लगाना चाहिए है। ऊपर बेल को फैलाने के लिए मंडप/मचान बनाना चाहिए।

अंगूर की रेड ग्लोब किस्म

बाग में या किचन गार्डेन में खंबे के पास एक फीट लंबा एक फीट चौड़ा एक फीट गहरा गड्ढा खोदना है, लेकिन छत बाग (terrace gardening) में सिर्फ छह इंच लंबा छह इंच चौड़ा छह इंच गहरे गमले का इस्तेमाल करना चाहिए, गड्ढे की मिट्टी गड्ढे के पास रखना है, उस मिट्टी में 25% घनजीवामृत, थोड़ा जीवामृत और 25% सूखे पत्ते मिलाकर उसका ढेर गड्ढे के पास करना है। 48 घंटे में वह सजीव नर्सरी मिट्टी बन जायेगी।

छत बाग (terrace gardening) में छांट कलम (bud stick) सीधे उस गड्ढे में लगाना है या छह इंच बाय साढ़े चार इंच आकार के पॉलीथिन के थैली में यह जीवाणू नर्सरी मिट्टी भरकर उस मिट्टी में लगाना है।

अंगूर की बेल प्रकाश संश्लेषक (photosynthetic) नहीं होती, प्रकाश संवेदनशील (photo sensitive) होती है, यानी बेल को प्रखर सूरज की रोशनी नहीं चाहिए, धूप छाव (dancing shadow) चाहिए। इसलिए बेल लगाने के पहले हल्की छाया का प्रबंधन करें।

अंगूर बेल की चार या पांच आंख वाली छांट कलम बीजामृत में कुछ सेकंड डुबोकर उपचार करें।

बाएं हाथ से छांट कलम (bud stick) को पकड़कर गड्ढे के बीचों-बीच इस तरह रखें ताकि कलम का निचला हिस्सा दो आंखें समेत गड्ढे में रहे और शेष दो आंख वाला ऊपर का नोक वाला पतला हिस्सा भूमि के सतह के ऊपर रहेगा और उसकी ऊपर की दो आंखें आकाश की तरफ देखती होंगी। बाद में दाहिने हाथ से सजीव नर्सरी मिट्टी को गड्ढे में कलम के चारों ओर दबा दबा के भर दें, मिट्टी भूमि के सतह से थोड़ी ऊपर आने दे ताकि वहां पानी संग्रहित न हो और जड़ें सुरक्षित रहे। बाद में उस मिट्टी पर चार उंगलियां घना आच्छादन डाले, ताकि मिट्टी के अंदर सूक्ष्म जीवाणुओं की गतिविधियों के लिए, उनकी संख्या तेजी से बढ़ने के लिए और उनकी जैव विविधता बढ़ाने के लिए आवश्यक सूक्ष्म पर्यावरण micro climate निर्माण हो, उन जीवाणू की और निकलने वाली जड़ों की तेज बारिश, लूं, शीतलहर, तेज तुफानी हवा, ओलावृष्टि, पक्षी, कीट इन बाह्य दुश्मनों से सूरक्षा हो। बाद में झारी से rose can पर्याप्त पानी और जीवामृत सम मात्रा में मिलाकर छिड़कें।


छत पर पॉलीथिन थैली में भरे जीवाणू नर्सरी मिट्टी में अंगूर की छांट कलम नीचे की चौड़े हिस्से की दो आंखें मिट्टी में रहेगी और शेष दो आंखें ऊपर आसमान को देखती सतह के ऊपर रहेगी इस तरह बीजामृत में कुछ सेकंड डुबाकर लगाना है माने मिट्टी में ठूंसना है। मिट्टी के ऊपर आच्छादन डालना है, ऊपर से झारे (rosecan) से पानी छिड़कना है और छांट कलम लगाये सभी थैलियों को पेड़ की छाया में एक साथ खड़ी रखना है। यह देखना है की वहां पानी इकट्ठा न हो। पानी रोज छिड़कना है, महीने में तीन बार ऊपर से प्रति थैली 50 मिली जीवामृत डालना है, महीने में दो बार दस लीटर पानी और 200 मिली जीवामृत मिलाकर पौधों पर छिड़काव करना है, जैसे ही कलम में चार पांच पत्ते निकलकर आयेंगे, जड़ें अच्छी निकलकर आयेंगी तब प्लास्टिक थैली को धीरे से फाड़कर कलम के जड़ों पर बीजामृत छिड़ककर पौधों को पहले से खोदे एक छह इंच लम्बा छह इंच चौड़ा छह इंच गहरे गड्ढे में उसी तरह लगाना है जैसे एक फूट लंबा एक फूट चौड़ा एक फुट गहरे गड्ढे में सीधे छांट कलम लगाये है। उसी तरह सजीव नर्सरी मिट्टी चारों ओर इर्द-गिर्द दबादबा के भरना, आच्छादन डालना और पानी का छिड़काव करना। सब कुछ उसी तरीके से करना है।

छांट कलम लगाने के बाद हर पौधे के नीचे मिट्टी पर पहले तीन महीने 200 मिली जीवामृत डालना है, बाद के दूसरे तीन महीने में प्रति पौधा 500 मिली जीवामृत डालना है, बाद के तीसरे तीन महीने प्रति पौधा 750 मिली जीवामृत डालना है, पौधा एक साल का होने के बाद प्रति पौधा एक लीटर जीवामृत देना है। दो साल के बाद दो लीटर जीवामृत प्रति पौधा डालना है।

छांट कलम को पत्ते निकलकर आने के बाद पहले तीन महीने दस लिटर पानी और 200 मिली जीवामृत मिलाकर पौधों पर छिड़काव करना है, दूसरे तीन महीने दस लीटर पानी और 500 मिली जीवामृत मिलाकर पौधों पर छिड़काव करना है, छह महीने के बाद दस लीटर पानी और एक लीटर जीवामृत मिलाकर पौधों पर छिड़काव करना है।

साभार: Spnf-सुभाष पालेकर अध्यात्मिक शेती

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