इस समय सब्जियों की बुवाई में सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली बात होती है कि किस्मों का चयन मौसम के हिसाब से करें। बारिश में वायरस से होने वाले रोगों का प्रकोप ज्यादा रहता है, इसलिए कीट व रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए।
भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. सुधीर सिंह बताते हैं, “अगस्त-सितम्बर महीना सब्जियों की खेती के लिए बिल्कुल सही समय होता है, लेकिन इस समय कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए, जैसे कि इस समय नमी व अधिक तापमान अधिक होता है इसलिए सब्जियों की किस्मों का सही चयन करना चाहिए। संस्थान से कई उन्नत किस्में विकसित की गई हैं।”
इन किस्मों का करें चयन
लौकी: पूसा नवीन, पूसा संतुष्टी, पूसा संकर-3, अर्का बहार
करेला: पूसा नसदार
टमाटर: पूसा-120, पूसा रूबी, अर्का विकास, अर्का रक्षक, पूसा संकर – 4
मिर्च: पूसा ज्वाला, जवाहर -283, पूसा सदाबहार, अर्का लोहित, काशी अर्का
गोभी: पूसा अगेती, पूसा स्नोबाल 25, पंत गोभी-2 व 3 प्याज: एन-53, एग्रीफाउंड डार्करेड, भीमा सुदर
भिण्डी : पूसा सावन, वर्षा उपहार, अर्का अनामिका
खेती की तैयारी : खेत को अच्छी तरह से जुताई करके समतल करें, खरीफ के मौसम में पौधों की रोपाई मेड़ों पर ही करें। प्याज की खेती के लिए खेत में एक मीटर चौड़ी और 15 सेमी. उठी हुई पट्टियां बनाकर उन पर रोपाई करने से जल निकासी में आसानी होती है। कद्दूवर्गीय सब्जियों और टमाटर की फसल को खरीफ के मौसम में वर्षा के पानी से नुकसान होने की संभावना रहती है। इससे पौधों में कई प्रकार के रोग तथा उत्पाद की गुणवत्ता में भी हानि होने की संभावना रहती हैं इसलिए खेत में 10-15 फीट की दूरी पर बांस गड़ाकर उन पर लोहे के तार कस दिये जाते है। अब इन तारों पर प्रत्येक पौधों को सुतली की सहायता से बांध देते है। इससे पौधे सीधे बढ़ते है तथा इनमें लगने वाले फल भूमि के संपर्क में नहीं आ पाते हैं।
निराई-गुड़ाई : निराई-गुड़ाई से खेत साफ रहता है, जिससे मुख्य फसल की वृद्धि अच्छी रहती है। समय-समय पर खरपतवारों को निकालने से मुख्य फसल के पौधों को पानी और पोषक तत्वों के लिए प्रतिस्पर्धा नहीं करनी पड़ती है। खरपतवार नियंत्रण के लिए खुरपी, कुल्पा, वीडर का उपयोग किया जाता है। रसायनिक खरपतवारनाशकों का प्रयोग भी फसल विशेष को ध्यान रखते हुए किया जा सकता है। वर्तमान में 25 माइक्रोन मोटाई वाली प्लास्टिक मल्च फिल्म का प्रयोग खरपतवार की रोकथाम के लिए किसानों के बीच काफी लोकप्रिय है। इसमें फसल की रोपाई के पहले प्लास्टिक फिल्म को खेत में बिछा दिया जाता है और बाद में इनमें निश्चित दूरी पर छेद करके पौधों की रोपाई की जाती है।
सिंचाई : खरीफ में वर्षा को ध्यान में रखते हुए खेत में सिंचाई की जाती है। सामान्यतया 6-8 दिनों के में सिंचाई करते हैं। आजकल सिंचाई के लिए टपक सिंचाई ज्यादा लाभदायक है। इसमें पानी तथा उर्वरकों की बचत के साथ-साथ मजदूरों की भी कम आवश्यकता होती है। इसमें पानी सीधे पौधों की जड़ों के पास बूंद-बूंद के रूप में पहुंचता है।
पौधशाला/नर्सरी में रखी जाने वाली सावधानियां
टमाटर, मिर्च, गोभी, प्याज आदि पौध से उगाई जाने वाली प्रमुख सब्जियां है। अच्छी सफल फसल उगाने के लिए पौधा का स्वस्थ होना जरूरी होता है। इसलिए पौधशाला की मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में जैविक पदार्थ होने चाहिए। खरीफ में नर्सरी के लिए ऐसे स्थान का चयन करना चाहिए जहां पानी न भरता हो। क्यारी की लंबाई तीन मीटर, चौड़ाई एक मीटर और ऊंचाई 15 सेमी. होनी चाहिए। लंबाई आवश्यकतानुसार घटाई या बढ़ाई जा सकती है। इसमें 20-25 किग्रा. अच्छी तरह से गली-सड़ी गोबर की खाद को ट्राईकोडर्मा र से उपचारित कर, 200 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 15-20 ग्राम फफूंदनाशक डायथेन एम-45 और कीटनाशक क्लोरोपाईरीफास घूल (20-25 ग्राम) मिला देना चाहिए। बीज को 5 सेमी. दूर पंक्तियों में लगातार गोबर की खाद या मिट्टी की पतली तह से ढक दें। बीजाई के तुरंत बाद क्यारी को सूखी घास से ढक दें। इसके अतिरिक्त पौधशाला में कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए।
जब तक पौधे स्थापित न हो जाए, प्रतिदिन सिंचाई करें।
- नमी की अधिकता होने पर पदपगलन रोग की आशंका में पौधशाला में डायमीथेन एम-45 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर सिंचाई करें।
- हर सप्ताह खरपतवार व अवांछनीय पौधों की निकासी करें और हल्की गुड़ाई करें।
- पौधे उखाड़ने से 3-4 दिन पूर्व सिंचाई न करें लेकिन पौध उखाड़ने वाले दिन सिंचाई करने के बाद ही पौध को उखाड़े।
- रोपण से पूर्व पौधों को डायथेन एम-45 2 ग्रा./ली. या कार्बेन्डाजिम 2 ग्रा./ली. पानी के घोल में कुछ समय डुबाए रखें।
- स्वस्थ पौधों का ही रोपण करें और यह दोपहर बाद ही करें।