लखनऊ। ऑस्ट्रेलिया की वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी से पर्यावरण प्रबंधन में ग्रेजुएशन करने वाली पूर्वी व्यास की ज़िंदगी उनके एक फैसले ने पूरी तरह बदल दी। अब वह पूरी तरह से जैविक विधि से खेती करने वाली किसान बन चुकी हैं। वह अगली पीढ़ी के किसानों और युवाओं को सिखा रही हैं कि किस तरह खेती करके भी अच्छी ज़िंदगी बिताई जा सकती है।
1999 में अपना पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद पूर्वी ऑस्ट्रेलिया से लौटकर भारत आ गईं और उन्होंने कुछ गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर स्थिरता और विकास के लिए काम करना शुरू कर दिया। 2002 में उन्हें प्रसिद्ध पर्यावरणविद् बीना अग्रवाल के साथ एक प्रोजेक्ट पर किसान समुदाय के लिए काम करने का पहला मौका मिला। इस रिसर्च के लिए वह दक्षिणी गुजरात के नेतरंग और देडियापाड़ा जैसे आदिवासी इलाकों में गईं। (देखिए वीडियो)
यह भी पढ़ें : खेती-किसानी की कहावतें जो बताती हैं कि किसान को कब क्या करना चाहिए
यहां रहने से मुझे समझ में आया कि शहर में रहने वाले लोगों की पर्यावरण के प्रति गंभीरता की बातों और उनके रहन-सहन में पर्यावरण को शामिल करने के बीच कितनी गहरी खाई है, और इसमें मैं भी शामिल हूं। इस विरोधाभास ने मुझे बहुत दुखी किया और मैंने एक ऐसे तरीके की खोज करना शुरू कर दिया जिससे मैं उस तरीके को अपना सकूं जिसे गाँव के ये लोग अपना रहे हैं।
यहां से मिली प्रेरणा
पूर्वी को अंदाज़ा भी नहीं था कि बस कुछ ही दिनों बाद उन्हें उनकी इस समस्या का समाधान मिल जाएगा। उनकी मां और दादी हमेशा से ही किचन गार्डन को महत्व देती थीं। वह रसोई के कामों में इस्तेमाल होने वाली जड़ी बूटियां और कुछ मसाले घर में ही उगाती थीं। अपने परिवार की इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए पूर्वी की मां ने अहमदाबाद से 45 किलोमीटर दूर मतार गाँव में अपने 5 एकड़ के खेत में कुछ सब्जियों और फलों की खेती करना शुरू कर दिया। वह हर सप्ताह के अंत में इस खेत में जाकर फसल की देखरेख करती थीं।
शुरू कर दिया खेती करना
पूर्वी कहती हैं कि एक बार जब मैं अपने सप्ताहांत पर अपने घर आई तो मां ने मुझसे कहा कि मैं उन्हें मतार तक छोड़ आऊं। वह कहती हैं कि यही वह दिन था जिसने मेरी ज़िंदगी बदल दी। अहमदाबाद में जिस खुली और ताज़ी हवा के लिए पूर्वी तरसती थीं, मतार में उन्हें वही हवा अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। वह बाताती हैं कि यही वह चीज़ थी जिसे मैं शहर में खोज रही थी। यहीं से उन्होंने निर्णय लिया कि वो अपनी नौकरी छोड़कर पूरी तरह से किसान बन जाएंगी। (वीडियो देखिए )
कठिन थी किसानों की दुनिया
गाँव कनेक्शन से हुई बातचीत में पूर्वी बताती हैं कि किसानी की दुनिया में शुरुआती दिन पूर्वी के लिए बहुत कठिनाइयों भरे थे। उन्हें खेती-किसानी के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी लेकिन पूर्वी ने हार नहीं मानी और वह पूरी लगन के साथ खेती की बारीकियों को समझती रहीं। वह कहती हैं समय के साथ मैंने खेती की कई तकनीकों के बारे में सीख लिया। मैंने यह भी जाना कि उर्वरकों और कीटनाशकों के इस्तेमाल से फसल को कितना नुकसान होता है इसलिए मैंने जैविक खेती के नए तरीकों की खोज करना शुरू किया। साल 2002 में यह इतना ज़्यादा प्रचलित नहीं था।
यह भी पढ़ें : एक महिला इंजीनियर किसानों को सिखा रही है बिना खर्च किए कैसे करें खेती से कमाई
खेती की ज़रूरतों को किया पूरा
सबसे पहले अपने खेत से शुरुआत करने के साथ ही उन्हें समझ आ गया कि जैविक खेती करके पर्यावरणीय असंतुलन को काफी हद तक कम किया जा सकता है। उन्होंने यह भी निष्कर्ष निकाला कि यह किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के लिए फायदेमंद है क्योंकि इसमें लागत लगभग नगण्य थी और उत्पादन बहुत स्वस्थ था। उन्होंने अपने ही खेत में एक आत्मनिर्भर मॉडल बनाया, जहां खेती के उत्पादों से जीवन की सभी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता था। इसके बाद पूर्वी ने एक डेयरी फार्म की शुरुआत की, जो जैविक खेती के लिए बहुत ज़रूरी था। एक समय में उनके पास 15 भैंस, छह गाय, छह बकरियां थीं और उनकी डेरी से गाँव में सबसे ज़्यादा दूध सप्लाई होता था।
इस तरह कमाया मुनाफा
उन्होंने हर उस चीज़ को पैदा करना शुरू किया जो ज़मीन और उस जगह की भौगोलिक स्थिति उन्हें वहां उगाने देती, जैसे अनाज, फल, आयुर्वेदिक औषधीय पौधों, फलियां, फूलों और सब्जियां। यह एक ऐसा मॉडल था जिससे किसान लगातार पैसा कमा सकते हैं। एक किसान दूध बेचकर रोज़, फूल बेचकर सप्ताह में, सब्ज़ी बेचकर 15 दिन में, फल बेचकर महीने में और अनाज बेचकर साल में पैसे कमा सकते हैं। बाकी चीजों के लिए, पूर्वी ने गांव में वस्तु विनिमय प्रणाली को पुनः शुरू कर दिया है, जहां लोग अपने उत्पाद के बदले उत्पाद ले सकते हैं, पैसे नहीं। पूर्वी कहती हैं कि अब हम अपने खाने के लिए ज़रूरत की 75 से 80 प्रतिशत चीज़ें खुद ही उगा लेते हैं। इससे हमें काफी फायदा हुआ है।
गाँव कनेक्शन से बात करते हुए पूर्वी बताती हैं कि हम खेत की मेड़ों पर फूल की खेती करते हैं, इन्हें मंदिर में या किसी पार्टी के लिए लोग खरीद लेते हैं। इसके अलावा हम अपने घर पर ज़रूरत के लिए जो सब्ज़ियां उगाते हैं उनमें से कुछ बाज़ार में बेंचकर उनसे भी 15-20 दिनों में कुछ कमाई कर लेते हैं। इसी तरह हर सीज़न में आने वाले फल भी महीने के महीने बिक जाते हैं।
यह भी पढ़ें : मशरूुम गर्ल ने उत्तराखंड में ऐसे खड़ी की करोड़ों रुपए की कंपनी, हजारों महिलाओं को दिया रोजगार
जैविक खेती से किसानों को जोड़ना
गाँव कनेक्शन से हुई बातचीत में पूर्वी बताती हैं कि वे गुजरात के कुछ गाँवों की महिला किसानों को इस बात के लिए प्रेरित कर रही हैं कि वे अपने घर के जैविक तरीके से सब्ज़ियां, दालें और धान उगाती हैं उनके साथ ही अपने ग्राहकों के लिए भी इसी तरीके से फसल उगाएं। वह कहती हैं गुजरात में ज़्यादातर किसान अरहर, उड़द जैसी दालों की खेती जैविक तरीके से ही करते हैं लेकिन वे पूरी तरह से जैविक विधि से उगाई जाती हैं या नहीं ये नहीं कहा जा सकता। इसलिए हम उन्हें प्रेरित कर रहे हैं कि वे ग्राहकों के लिए भी पूरी तरह से जैविक विधि से खेती करें।
कमाई का भरोसा
गाँव कनेक्शन से फोन पर हुई बात में पूर्वी ने बताया कि किसानों के सामने अपनी फसल की बिक्री और उसकी सही कीमत मिलने की सबसे बड़ी समस्या होती है। इसलिए हमने इस समस्या को खत्म करने की ओर ध्यान दिया। हम किसानों को ये भरोसा दिला रहे हैं कि अगर वे जैविक तरीके से खेती करके उत्पाद पैदा करेंगे तो हम उन्हें ग्राहकों से उन उत्पादों के सही दाम दिलाएंगे। इसके लिए हमने कुछ ऐसे ग्राहकों से सम्पर्क किया जो लगभग तीन-चार साल तक इन किसानों से उत्पाद ले सकें। ये ऐसे ग्राहक हैं जो पैसों से ज़्यादा सेहत को महत्व देते हैं। ये ग्राहक जैविक तरीके से उगाए गए उत्पादों के लिए कुछ ज़्यादा कीमत चुकाने को भी तैयार हैं। पूर्वी कहती हैं कि हमारी इस कोशिश से किसानों का हम में भरोसा बढ़ रहा है और वे जैविक खेती की ओर प्रेरित हो रहे हैं।
यह भी पढ़ें : तुलसी खेती से ये किसान बन रहा है लखपति
और फिर शहरी युवाओं को जोड़ा
खेतों में काम करते हुए पूर्वी हमेशा सोचती थीं कि कैसे शहरी युवाओं को अच्छी और स्वस्थ जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। फिर उन्होंने लोगों के खाने के तरीके पर एक मॉड्यूल तैयार किया। उन्होंने पंडित दीन दयाल उपाध्याय पेट्रोलियम विश्वविद्यालय के लिबरल आर्ट के छात्रों को अपने खेत में एक दिन के कार्यक्रम के लिए बुलाया। उन छात्रों को यह कार्यक्रम इतना पसंद आया कि उन्होंने मांग की कि इस तरह की खेतों की यात्रा को उनके पाठ्यक्रम का नियमित हिस्सा बनाया जाए।
युवा भी समझे पौष्टिक खाने के महत्व को
इसके बाद पूर्वी गांधी नगर और अहमदाबाद के कई कॉलेजों में जाकर गेस्ट फैकल्टी के तौर पर पढाने लगीं। उन्होंने खाने के बारे में सबकुछ पढ़ाना शुरू कर दिया। जैसे – हमारा खाने का तरीका, बाजार से परिभाषित हमारे भोजन विकल्पों के पीछे की राजनीति और पृथ्वी पर इन विकल्पों का प्रभाव। पूर्वी कहती हैं कि यह वाकई खुशी देने वाली बात थी कि छात्रों ने अपनी खाने की पसंद के बारे में सोचना शुरू कर दिया था। कई छात्रों ने फास्ट फूड खाना छोड़ दिया था, वे अब कोका-कोला भी नहीं पीते थे। उन्होंने यह पूछना भी शुरू कर दिया था कि मैकडोनाल्ड जैसे रेस्त्रां में मिलने वाला उनका खाना आखिर आता कहां से है और उसमें इस्तेमाल की गई सामग्री ताज़ी भी होती या नहीं। इनमें से कई छात्रों के परिवार भी अब पूरी तरह से जैविक खान-पान को अपना रहे हैं।
2000 से ज्यादा किसानों के साथ कर रही हैं काम
आज, पूर्वी मुनाफे की खेती के मॉडल पर 2,000 से अधिक किसानों के साथ पांच से छः गांवों को बदलने की दिशा में काम कर रही हैं। पूर्वी बताती हैं कि हम खाद्य मेला आयोजित करके इन किसानों को सीधे ग्राहकों से जोड़ने पर काम कर रहे हैं ताकि इन्हें फसल का मुनाफा मिल सके।
नोट – जो किसान पूर्वी से संपर्क करना चाहते हैं वे गाँव कनेक्शन के फेसबुक पेज पर मैसेज करके उनसे संपर्क के बारे में जानकारी ले सकते हैं।